ए आर आज़ाद
अब सवाल उठना लाजमी है कि रोजा किस पर फर्ज है और रोजे से किसे छूट है। तो रोजा का सिद्धांत कहता है कि रोजा हर बालिग पर फर्ज है। अब फिर एक सवाल है कि बालिग कौन है? क्योंकि भारत में 18 साल के युवा और युवती को बालिग कहा जाता है। और इस आशय में देखें तो 18 साल से कम उम्र के लोगों को रोजा रखने की इजाजत नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं है। इस्लाम में बालिग होने की एक उम्र तय कर दी गई है। इस्लाम में सात साल का बच्चा बालिग है। यानी एक मुसलमान वह चाहे बच्चा ही क्यों न हो अगर उसकी उम्र सात साल है तो वह रोजे रखने के लिए उपयुक्त है। यानी उसपर रोजा फर्ज है। और इसी तरह सात साल से 90 सवाल का वह मुसलमान जो शरीर से पुष्ट है उसपर रोजा फर्ज है। रोजा में उन लोगों को छूट है जो बीमार हैं। जिन्हें सफर पर जाना है। जो प्रिग्नेंट हैं। देखने में लगने वाला सख्त रोजा कितना आसान और दिल के लिए सकून भरा है वह वही महूसस कर सकता है, जिसने कभी रोजा रखा है।
रोजेदारों के लिए रोजा रहना सिर्फ भूखे रहना नहीं होना चाहिए। बल्कि भूखे-प्यासे रहने के साथ-साथ बुराई से भी दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। इस महीने लोगों को एक दूसरे की गीबत से बचना चाहिए। लोगों की शिकायत से बचना चाहिए। लोगों के काम आना चाहिए। लोगों की मदद करनी चाहिए। अपने से कमजोर लोगों पर ध्यान देना चाहिए। और राह ए खुदा पर जमकर खर्च करना चाहिए। अपनी आंखों का भी रोजा रखना चाहिए। यानी किसी बुरी चीज पर नजर गराए नहीं रहना चाहिए। अगर सामने अचानक कोई चीज आ भी जाए तो फौरन अपना रुख बदल लेना चाहिए या नजरें नीची कर लेनी चाहिए। रोजा के साथ-साथ इबादत भी जरूरी है। इस दौरान नमाजों का खास ख्याल रखना चाहिए। तस्वीह पढ़नी चाहिए। कुरआन पढ़ने चाहिए। और अगर आपको कुरआन पढना नहीं आता है तो छोटी-छोटी दुआएं पढ़ते रहना चाहिए। और सिर्फ अपने लिए ही नहीं, अपने लोगों के लिए भी अपने देश के लिए भी और दुनिया के अमन व अमान के लिए भी दुआएं मांगनी चाहिए।
रमजान को पवित्र महीना माना गया है। दरअसल इसी महीने इस्लाम धर्म के पर्वतक यानी पैगम्बर ए इस्लाम मुहम्मद मुस्तफा स.अ.व. को कुरआन की पहली बही नाजिल हुई थी। यानी आप कह सकते हैं कि इसी महीने कुरआन की पहली आयत वजूद में आई थी। आपको बता दें कि आयत का मतलब श्लोक होता है।
इस महीने के रोजा शुरू होने से पहले चांद का नजर आना जरूरी है। दरअसल इस्लाम का हर पर्व चांद पर मुनहसर होता है। यानी जिस शाम रमजान का चांद आसमान पर अवतरित हो जाता है। उस रात से इबादत का लम्हा शुरू हो जाता है। मतलब उसी रात इशां की नमाज के साथ-साथ तराबीह की भी इब्तदा हो जाती है। यानी तीस रोजे के साथ बीस तराबीह का भी रमजान में मामला रखा गया है। और फिर अलस सुबह पौ फटने से पहले यानी सुबह की अजान होने से पहले तक सेहरी खाने का प्रावधान है। सुबह की अजान से पहले तक ही आप कुछ खा पी सकते हैं। आंखों में ड्राप डाल सकते हैं। कानों में दवा डाल सकते हैं। नाकों में दवा डाल सकते हैं। लेकिन सुबह की अजान के साथ मगरिब की अजान होने के बीच तक का लम्हा आपके इम्तहान का लम्हा होता है। आपके खुदा पर ईमान का लम्हा होता है।