भाजपा: 50 साल!

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एस एन विनोद

पचास साल, भाजपा सरकार!

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, गृह मंत्री अमित शाह के ये शब्द निश्चय ही कर्णप्रिय हैं। किंतु, सवाल कि कहीं ये आशावाद की पराकाष्ठा तो नहीं? लोकतंत्र में दावे-प्रतिदावे होते रहते हैं। स्वाभाविक प्रक्रिया है यह। यह ठीक है कि ऐसे दावे अतिशयोक्ति की श्रेणी में रखे जाते रहे हैं। किंतु जब यथार्थ की धरातल पर इनकी परख होती है तो वास्तविकता सामने आ जाती है। भारतीय जनता पार्टी का यह ताज़ा दावा राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुका है। कुछ विश्लेषक इस दावे को सही बता रहे हैं, वहीं कुछ हास्यास्पद। वैसे एक अन्य केंद्र्रिय मंत्री रविशंकर प्रसाद इस दावे को अहंकार नहीं बल्कि प्रदर्शन आधारित निरुपित कर रहे हैं। इस पाश्र्व में भारतीय जनता पार्टी की सोच, कार्यशैली और उसके नेतृत्व की वर्तमान मोदी सरकार की क्रियाकलापों पर विश्लेषकों की क़लमों के साथ-साथ कैंचियां भी चलेंगी। यह स्वाभाविक है।

अमित शाह की उपर्युक्त दावे में कुछ पेंच भी है। शाह का ये कथन कि- ‘‘कांग्रेस की तरह हम पचास साल राज करेंगे,’’ स्वयं में विरोधाभासी है। प्रधानमंत्री मोदी सहित पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता समय-समय पर ये कहने से नहीं चूकते कि कांग्रेस के 50 सालों के शासन में कुछ भी नहीं हुआ। कोई उपलब्धि नहीं। देश को रसातल में भेज दिया गया। चारों ओर निराशा और सिर्फ़ निराशा व्याप्त रहे। इस पाश्र्व में प्रश्न स्वाभाविक कि जब आप ‘कांग्रेस की तरह 50 साल शासन’ की इच्छा रखते हैं, तो क्या अगले 50 साल आप भी कांग्रेस की तरह विफल शासक बनना चाहते हैं? कांग्रेस की तरह आपके खाते में भी शून्य उपलब्धि रहेगी? निराशा-हताशा का वातावरण क़ायम होगा? इन सवालों के जवाब भी भारतीय जनता पार्टी को देने होंगे।

अब एक असहज सवाल! क्या वर्तमान भारतीय जनता पार्टी वही पार्टी है, जो कभी अपने चाल, चरित्र, चेहरा के लिए जानी जाती थी। सवाल असहज है, किंतु मौजूं है। बदली हुई परिस्थितयों में, ‘दंडवत मीडिया’ के सदस्य लिखेंगे-बोलेंगे नहीं। ये चर्चा आम है कि क्या भारतीय जनता पार्टी अपनी विचारधारा और चरित्र के अनुसार सक्रिय है? ईमानदार जवाब-नहीं! आपसी बातचीत में स्वयं भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेता-कार्यकर्ता चर्चा करते हुए मिल जाएंगे कि पार्टी अब अटल-आडवाणी की पार्टी नहीं रही। वे यह कहने से भी नहीं चूकते कि पार्टी अब मोदी-शाह की जेबी पार्टी बनकर रह गई है। इसे हम दुर्भाग्य ही मानेंगे कि आरंभ से कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में जिस जनसंघ/भाजपा को स्वीकार किया गया, उसे आज देश का एक वर्ग मोदी-शाह द्वय की जेबी पार्टी निरुपित कर रहा है। निश्चय ही ऐसी स्थिति अगले 50 वर्षों तक शासन करने की कल्पना के मार्ग में कांटे बोएगी। पार्टी नेतृत्व इस पहलू की गंभीर पड़ताल कर सकारात्मक क़दम उठाए। तभी 50 सालों के शासन की आपकी इच्छा पूरी हो पाएगी।

यह दोहराना ही होगा कि लोकतंत्र में अंतिम निर्णय जनता का होता है। कांग्रेस ने अगर 50 वर्षों तक शासन किया तो आज़ादी की लड़ाई में निर्णायक योगदान और तब किसी अन्य विकल्प की ग़ैर हाजि़री के कारण। जन चेतना में वृद्धि और आज़ाद भारत की अपनी ज़रूरतों के मद्देनज़र भारत की अपेक्षाएं बढ़ती-बदलती गईं। आज जब भारत विश्वगुरु के अलंकरण की इच्छा के साथ प्रगति मार्ग पर क़दमताल कर रहा है, तब उसे स्वच्छ-पवित्र-ईमानदार नेतृत्व की ज़रूरत है। भारतीय जनता पार्टी क्या इस कसौटी पर उत्तीर्ण होगी? हमने जन इच्छा और परिवर्तित परिस्थितियों की चर्चा की है? इस कसौटी पर क्या भाजपा आगे भी खरी साबित होगी? उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों और पंचायत चुनावों के परिणाम भाजपा के विरुद्ध आए हैं। भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि पंचायत से संसद तक विजय ही विजय के संकल्प के साथ वे आगे और आगे बढ़ते रहेंगे। लेकिन हक़ीक़त कुछ और बयां कर रही है। महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में ताज़ा संपन्न पंचायत चुनाव के परिणाम भाजपा के रणनीतिकारों के लिए सुखद नहीं रहे हैं। वहां पंचायतों पर भाजपा गठबंधन विरोधी आघाड़ी अर्थात शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन का वर्चस्व रहा। इसके मायने? साफ़ है कि आम जनता के बीच भाजपा के ख़िलाफ़ मानस बनना शुरू हो गया है। भाजपा नेतृत्व अगर अगले 50 सालों तक देश पर शासन करना चाहता है तो जनता के बीच कथित रूप से व्याप्त भाजपा विरोधी कारणों की पड़ताल कर समाधानकारक क़दम उठाए।

राज दलों के दावे-प्रतिदावे अपनी जगह हैं। देश चाहेगा कि उसका नेतृत्व वही करे, जो संविधान में वर्णित आदर्श-सिद्धांतों के मार्गों पर चलते हुए भारत को विश्वगुरु के आसन पर पदास्थापित कर सके। इतिहास गवाह है कि भारत ने हमेशा संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। भारतीय जनता पार्टी अगर इस चिह्नित तथ्य के मर्म को समझ ईमानदारी के साथ लोकतांत्रिक भारत की नींव को मज़बूती प्रदान करते हुए आगे क़दमताल करती है तो 50 क्या 100 साल शासन करने का अवसर उसे मिल सकता है।

लेकिन, शर्त वही- ईमानदार, स्वच्छ शासन!