ज़िला परिषद पर रतन सिंह का जलवा बऱकरार लगातार चौथी बार जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड

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एस आर आज़मी

पति-पत्नी दोनों तैयारी में जुटे, ज़िला परिषद अध्यक्ष पर निगाहें टिकी

पंचायती राज व्यवस्था के तहत ज़िला परिषद बेगूसराय की राजनीति में रतन सिंह धुमकेतु की तरह मैदान में उतरे और ऐसा पांव जमाया कि उनका वर्चस्व आज तक बरक़रार है। वर्ष 2000 के प्रवेश करते ही एक लंबे अरसे बाद पंचायती राज चुनाव का बिगुल बजा। इस चुनाव में रतन सिंह ने एक कोण बनाकर जि़ला परिषद का चुनाव लड़ा और सफल भी हुए। और जि़ला परिषद की चेयरमैनशिप भी हासिल कर ली। इस जीत के बाद उन्होंने अपनी धर्मपत्नी वीणा देवी को भी जि़ला परिषद का चुनाव लड़वाया और ़खुद भी चुनाव लड़े। दोनों को जीत का सेहरा मिला। जब जि़ला परिषद अध्यक्ष की सीट महिला आरक्षित हो गई तो उन्होंने अपनी पत्नी वीणा देवी को चेयरमैन का उम्मीदवार बनाया। वोटों के आधार पर उनकी पत्नी बेगूसराय जि़ला परिषद की अध्यक्ष बन गईं।

इस कार्यकाल के पूरा होने के बाद तीसरी बार के चुनाव में भी दोनों ने जीत दर्ज की लेकिन चेयरमैन की कुरसी पर पत्नी को क़ाबिज़ करने में उनकी रणनीति कारगर नहीं हो सकी। इस बार महज़ एक वोट से वीणा देवी जीतते-जीतते रह गईं। चौथी बार के चुनाव में भी रतन सिंह और वीणा देवी अपनी-अपनी सीटों से जीत हासिल करने में कामयाब रहे। इस बार परिषद अध्यक्ष की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई तो रतन सिहं के खासमख़ास रविंद्र्र चौधरी मैदान में उतरे। वोटों के जुगाड़ के ज़रिए रतन सिंह ने रविंद्र्र चौधरी को चेयरमैन की कुर्सी पर क़ाबिज़ में कामयाबी हासिल की। यानी जि़ला परिषद की चाबी रतन सिंह के हाथ में ही रही। इस तरह जि़ला परिषद की राजनीति का सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि रतन सिंह और उनकी पत्नी वीणा देवी ने लगातार जीतने का रिकार्ड बनाते हुए अपनी धमक को मज़बूत रखा। चुनाव आते गए और ज़िला पार्षदों के चेहरे भी बदलते गए। लेकिन पति-पत्नी की जोड़ी अपनी-अपनी सीटों से कामयाबी हासिल करती रही। राजनीति के इस सफ़र में रतन सिंह ने आरजेडी, कांग्रेस और जेडीयू जैसे पार्टियों से समय के साथ जुड़कर धारदार सियासत की। हालांकि इन्होंने विधानसभा का चुनाव कभी हासिल नहीं किया। लेकिन अपनी पैनी नज़र, सूझबूझ और धमाकेदार सियासत से जि़ला सहित बिहार प्रांत में अपनी एक पहचान बना ली। विगत दो दशक के दौरान बेगूसराय की राजनीति में कई तरह की भूचाल आई और राजनीतिक समीकरणों की गोटी बैठाने और उससे उपजे बदलाव का नज़ारा भी देखने को मिला। बावजूद इसके रतन सिंह की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। क्षेत्रीय वोटरों के भरोसे परिषद पर दो दशकों से क़ाबिज़ रहकर चर्चित हुए।

पंचायती राज का चुनाव दस्तक दे रहा है। जि़ला पार्षद रतन सिंह एवं जि़ला पार्षद वीणा देवी फिर अपनी सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं। परिषद अध्यक्ष का पद आरक्षण में किधर जाता है। यह किसी को पता नहीं। लेकिन पंचायती राज व्यवस्था से जुड़ी जनता एक बार फिर रतन सिंह की ओर टकटकी लगाए बैठी है। पंचायत चुनाव के महासमर में किसे कामयाबी मिलेगी और कौन गच्चा खा लेगा अभी किसी को पता नहीं। जनआकांक्षाओं की डोर को मज़बूत करने वाले राजनीति के माहिर खिलाड़ी रतन सिंह कौन सा गुल खिलाएंगे इस पर बेगूसराय की नज़र टिकी हुई है। दरअसल बेगूसराय जि़ला परिषद की पूर्व चेयरमैन इंदिरा देवी की नज़र भी चेयरमैन की सीट पर टिकी है। हालांकि उन्होंने इस विधानसभा चुनाव में बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी निर्दलीय लड़ा था। लेकिन वहां मिली नाकामयाबी से सबक़ सीखकर जि़ला परिषद के चुनाव में अपनी जीत दर्ज करने की कोशिश कर सकती हैं। और अपनी चेयरमैनशिप के गौरव को पुन: हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर रतन सिंह के सामने चुनौती भी खड़ी कर सकती हैं। देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है?