जकात किसे दें?

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ए आर आज़ाद

अब दूसरा सवाल है कि जकात कौन देता है। तो जकात हर मुसलमान पर फर्ज है। और किस पर फर्ज है और कितनी हैसियत पर फर्ज है उसपर चर्चा पहले हो चुकी है। जो बालिग हैं उसपर जकात फर्ज है। जो कमाने के लायक हैं उसपर जकात फर्ज है। यानी आप कह सकते है कि जो इंकम टैक्स देते हैं, उनपर जकात फर्ज है।  और जो लोग बाहैसियत हैं लेकिन किसी वजह से इंकम टैक्स नहीं अदा करते हैं तो भी उनपर मजहबी टैक्स यानी जकात फर्ज है।

अब सवाल उठता है कि हम जकात किसे दें या किसे नहीं दे सकते हैं। तो जकात के मामले में छूट ही छूट है। बस थोड़ी सी बंदिश है। उस पर भी चर्चा करेंगे। लेकिन पहले बात करते हैं कि जकात किन्हें दे सकते हैं। जकात हम दोस्त को दे सकते हैं। जकात हम करीबी रिश्तेदारों को दे सकते हैं। जकात हम पड़ोसी को दे सकते हैं। जकात हम यतीम को दे सकते हैं। जकात हम मिस्कीन को दे सकते हैं। जकात हम किसी भी गरीब को दे सकते हैं। जकात हम किसी भी मजबूर को दे सकते हैं। जकात हम किसी भी फकीर को दे सकते हैं। जकात हम किसी मदरसे को भी दे सकते हैं। जकात हम कैदियों को छुड़ाने के लिए भी दे सकते हैं। जकात हम किसी कर्जदार को उसे कर्ज से बाहर निकालने के लिए भी दे सकते हैं। दीन को फैलाने वालों को भी हम जकात दे सकते हैं। किसी भी मांगने वालों को भी हम जकात दे सकते हैं।

अब कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें आप जकात नहीं दे सकते हैं। तो इसलिए गौर से सुनिए कि आप किन्हें जकात नहीं दे सकते हैं-

आप अपने वालिद यानी पिता यानी बाप को जकात नहीं दे सकते हैं। आप अपनी वालिदा यानी मां यानी अपनी अम्मा को जकात नहीं दे सकते हैं। आप अपनी बीवी यानी शरीक ए हयात को जकात नहीं दे सकते हैं। आप अपने बच्चों को जकात नहीं दे सकते हैं। और आप हुजूर के खानदान वालों को यानी सैयद को जकात नहीं दे सकते हैं।