मज़दूरों सुनो

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मज़दूर दिवस पर देश व दुनिया के मज़दूरों को समर्पित कविता

ए आर आज़ाद

 

सुनो मज़दूरों सुनो

तुम्हारी अपनी गाथा है

अबतक तुम्हें

तुम्हारी व्यथा सुनाई गई है

तुम्हारे शौर्य की किरणों को

आलोकित नहीं किया गया

 

तुम

प्रकाशित करते रहे डगर, बाट

तुमसे आलोकित होता रहा पथ

तुमने रेल की पटरी बिछा दी

जिसपर चलने लगी राजधानी

और मचलने लगे राजनेता

 

तुमने

कश्मीर से कन्याकुमारी को

अपने पसीने से सींच दिया

तुमने अपनी कड़ी मिहनत से

पूर्वोत्तर को राजधानी से और क़रीब कर दिया

दक्षिण और उत्तर का सामीप्य

तुम्हारी ही देन है

तुमने

खेतों को पुचकार कर

उससे सोना उगलवा लिए

तुम्हारी मेहनत रंग लाती गई

और

कभी हरित क्रांति

तो कभी स्वेत क्रांति का प्रतीक बना भारत

सुनो मज़दूरों सुनो

तुममें लोहा है

तुम्हारे इरादे कुदाल हैं

तुम्हारे मस्तिष्क खुरपी

तुम

हसिए की तरह हो

खनती और फावड़ा

बनकर चट्टानों से राह निकाल देते हो

तुम्हारे श्रम की सोच

नदी की धारा बदल देती है

तुम बांध बनाकर रोक देते हो विनाश को

तुम

कल्याणकारी हो देश के लिए

तुमने अपनी अथक मिहनत से

समाज को संवार दिया है

तुमने मां के दूध की तरह

हमेशा देश का क़र्ज़ उतारा है

 

तुम हारना नहीं

तुम बहकना नहीं

तुम सियासत की धूप से आंखें बचाकर

मेहनत और सच्चाई की राह को थामे रहना

यही तुम्हारी ताक़त और देश की मजबूती है

 

तुम्हारा होना

और जीवंत रहना

देश में ऊर्जा का संचार करता है

जियो देश को जिलाए रखने वालों

तुम्हें आज मेरा नमन…।