सरकार से ज़रूर पूछना चाहिए कुछ सवाल, लेकिन कौन कहे आ बैल मुझे मार

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ए आर आज़ाद

कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो सरकार से करने की ज़रूरत है। लेकिन विडम्बना है कि इस सरकार के शासन काल में कोई भी इस हालत में है नहीं कि वह सरकार से सीधे सवाल कर सके। ऐसा लगता है कि सरकार से सवाल करना सत्ता और शासन की मर्यादा को भंग करना है। उसे चुनौती देना है। और किसी शासन और शासक को  चुनौती देना, मानो कोई राष्ट्रद्रोह है। ज़ाहिर है कि इस सरकार में यह भय तेज़ी के साथ पांव पसारता जा रहा है। वरना क्या वजह है कि सरकारी तो सरकारी, निजी मीडिया भी सरकार का मुखपत्र और प्रवक्ता बनकर रह गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो इतने दिनों तक ‘शाहीन बा़ग’ नहीं होता। ठिठुरती हुई सर्दी में कंपकपाते हुए हाथ और ठंड की ठिठुरन में जमे पांव के बावजूद दिलों के आक्रोश की गरमी  से और मन-मस्तिष्क भरे ज्वाला की तपिश से स्वर मुखर होने लगता है। आवाज़ से आवाज़ टकराती है। एक आवाज़ दूसरी आवाज़ से बंधती चली जाती है। और यही सिलसिला जब मज़बूत हो जाता है तो एक विस्फोटक स्वर उभरता है जो देश भर में ट्रैक्टर रैली की शक़्ल में बदल जाता है।

सरकार के कान खड़े होते हैं। माथे पर बल पड़ता है। सोंच अंगड़ाई लेने लगती है। समझ किसी परिणिति में बदले उससे पहले सत्ता का नशा चढ़ते हुए सरकारी रू़ख और रवैए को ही बदल देता है। ज़ाहिर है सरकार सत्ता के नशे में किसान आंदोलन से ऊपजे सवालों का हल ढूंढ़ने के बजाय अपने दमन के चक्र से उस आंदोलन को ही कुचल देना चाहती है। किसी भी असंवेदनशील सरकार के पास राजशाही शासन से प्रेरित एक हथियार होता है। इस हथियार को हमारी मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार ने भी गोद लिया है। और इसी हथियार की बदौलत सरकार पर निशाना साधने वाले, उससे सवाल पूछने वाले और विपक्ष की आवाज़ बनकर सामने अवतरित होने वाले को उसी हथियार से वार करके घायल ही नहीं एक तरह से मृतप्राय: कर देना चाहती है। वह राष्ट्रद्रोह का हथियार ऐसे लोगों की गर्दन पर तलवार की तरह लपलपाने को व्याकुल है। ट्रैक्टर रैली के बाद किसान आंदोलन के अगुआ नरेश टिकैत एवं योगेंद्र यादव जैसे 27 लोगों पर राष्ट्रद्रोह का मु़कदमा दायर करना कमज़ोर सरकार की सबसे बड़ी निशानी बनकर देश के सामने है। देश इसे किस रूप में लेगा और किस रूप में लेना चाहिए, ज़ाहिर है इसपर विचार बंटे हुए हैं। लेकिन बंटे हुए विचार से और छोटे मन से न देश बड़ा हो सकता है और न व्यक्ति। देश से बड़ी तो कोई सरकार हो ही नहीं सकती है। देश से सरकार है, सरकार से देश नहीं।