ए आर आज़ाद
अब रमजान की सबसे अफजल रात की बात करते हैं। यह रात शब ए कद्र कहलाती है। शब ए कद्र को लैलतुल कद्र भी कहा जाता है। यह रात सबसे ज्यादा इसलिए अफजल मानी जाती है क्योंकि इसी रात में कुरआन नुज़ूल हुआ है। यह आसमानी किताब उनपर नाजिल हुई जो सभी पै़गम्बरों पर शऱफ के साथ-साथ अज़मत रखते हैं। यानी पै़गम्बर मुहम्मद मुस्तुफा स.अ.व. पर इसी रात कुरआन नाजिल हुई थी। और इसी तरह इस किताब को लाने वाले जिब्रील अलैहिस्सलाम भी सभी फरिश्तों में शऱफ व अज़मत रखते थे। इसीलिए इस रात को शब ए क़द्र या लैलतुल कदर कहते हैं। लैल का मतलब रात है। और ़कद्र का मतलब महान। यानी लैलतुल क़द्र का मतलब महान रात। यानी शान वाली रात, सम्मान वाली रात। इज्जत वाली रात, अज़मत वाली रात। नेमत वाली रात, रुहानियत वाली रात, तक़वा वाली रात, त़कवियत वाली रात। यानी सारी रातों में अ़फज़ल रात। और एक वैसी रात, जिस रात की एक इबादत का सवाब 83 साल 4 महीने की इबादत के बराबर का माना जाता है। ज़ाहिर सी बात है कि इस रात का कोई सानी नहीं। इस रात का कोई मु़काबला नहीं। इसलिए आप जान लीजिए कि जो इस रात इबादत करेगा, वह इबादत करने वाला क़दर व शान वाला माना जाएगा। उनकी गिनती और उनका शुमार इज्जत वालों में से होगी। और यही वजह है कि इस रात की इबादत को हज़ारों महीनों की इबादतों से बेहतर माना गया है। वैसे लैलतुल कद्र को क़दर इसलिए माना गया है कि इस रात ़फरिश्ते जमीन पर उतरते हैं। उनकी कसरत की वजह से ज़मीन तंग हो जाती है। यानी क़दर का मतलब तंगी भी है। यह वाजेह कुरआन के सूरह 89 और आयत 16 से भी हो जाता है। इस सूरह में अल्लाह फरमाता है कि और जब अल्लाह आज़माईश में डालता है तो इस पर उसके रिज़्क़ को तंग कर देता है।
यह आंख खोलने वाली बात है कि अल्लाह अपने परहेजगार बंदों को ही आज़माईश में डालता है। और अपने अच्छे बंदों की आज़माईश लेता है। यानी उसे ही रिज़्क़ की तंगी में डालता है। लेकिन ज़माने के नज़रिए से देखें तो जो लोग रिज़्क़ की तंगी से मुबतला होते हैं, उसे ज़माने भर के लोग गुनहगार मान बैठते हैं और कहते हैं कि अल्लाह ने उन्हें गुनाहों की सज़ा दी है। दरअसल इस्लाम और मुसलमान में यही बेसिक फर्क है। इस्लाम कहता कुछ है, मुसलमान समझता कुछ है। कुरआन कहता कुछ है, उसे समझाया जाता कुछ है।
कुरआन की एक आयत 97 और सूरह1-5 में अल्लाह अपने बंदों से फरमाता है,-‘‘बिना किसी शक व शुब्हा के हमने कुरआन को क़द्र की रात में उतारा है। और तुम्हें क्या पता कि ़कद्र की रात क्या है? ़कद्र की रात हज़ार महीने से बेहतर है। इसमें फरिश्ते और रुह यानी जिब्रील अपने रब के हुक्म से हर अहम काम को पूरा करने के लिए आसमान से उतरते हैं। वह पूरी तरह शांति की रात है, जो फ़ज़्र होने तक रहती है।’’
हदीस में भी शब ए क़द्र की रात की अहमियत को बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में पेश किया गया है। बुखारी और मुस्लिम दोनों हदीसों में इसका जिक्र मिलता है। बु़खारी हदीस नंबर 1901 और मुस्लिम हदीस में हदीस नंबर 760 में कहा गया है कि जो शख़्स क़द्र की रात में ईमान के साथ इबादत करेगा, उसके पहले के गुनाह मा़फ कर दिए जाएंगे।
शब ए क़द्र के बारे में बुखारी हदीस नंबर 2017 और मुस्लिम हदीस नंबर 1169 में जिक्र है कि क़द्र की रात को रमजान के महीने के अंतिम दस दिनों की विषम संख्या वाली रातों में तलाश करो।
यानी शब ए क़द्र की रात 21 रमजान हो सकती है। 23वीं रमजान हो सकती है। 25वीं रमजान हो सकती है। 27वीं रमजान हो सकती है। और 29 रमजान भी शब ए क़द्र हो सकती है। यानी इन पांच विषम संख्या वाली रातों में से किसी एक रात को अल्लाह ने शब ए क़द्र से नवाज़ा है। लेकिन यह किसी इंसान के अ़कल के बाहर यह बताना है कि वह कौन सी रात शब ए क़द्र होगी। इसका इल्म सिर्फ अल्लाह को है। अल्लाह ने उसकी कुछ निशानियां अपने बंदों और परहेजगारों के लिए छोड़ दी हैं ताकि वे इल्म व हिकमत से अंदाज़ लगा सकें कि कौन सी रात शब ए क़द्र की रात थी।
वैसे हार साल शब ए क़द्र बदलती रहती है। लैलतुल क़द्र हर साल किसी एक रात में नहीं होती है। इस्लामिक विद्वान हो या फिकाह के माहिर, किसी एक रात पर कोई अबतक सहमत नहीं हो सके हैं। सब इस्लामिक विद्वानों की बस एक ही बातों पर सहमति है कि शब ए क़द्र रमजान की 21 से 29 रातों के बीच में हो सकती है।
रमजान में एक दिन और खास माना गया है। उसे हम जुमातुल विदा कहते हैं। जुमातुल विदा का मतलब होता है हमें छोड़कर जाने वाला जुमे का दिन। जुमातुल विदा रमजान के अंतिम जुमे को कहते हैं। यह जुमा मुसलमानों के लिए काफी अहम और मायने रखता है। इस जुमा को यानी जुमातुल विदा को लोग छोटी ईद से भी मंसूब करते हैं।