आखिर सरकार ने क्यों मुआवजा देने से किया इंकार?

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सुप्रीम कोर्ट में सरकार के हलफनामे का पोस्टमार्टम

ए आर आज़ाद

भारत में कोरोना महामारी से जान गंवाने वालों की तादाद लाखों में पहुंच गई है। और कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या को लेकर देश ही नहीं, भारत को लेकर दुनिया में भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कोविड-19 की दूसरी लहर में मरने वालों का आंकड़ा लगभग 2 लाख 25 हजार के करीब है। यानी लगभग 100 दिनों में औसतन कोरोना से रोजाना दो हजार लोगों की मौत हुई है। देश में कोरोना की दूसरी लहर अप्रैल से शुरू हुई। और जाते-जाते मई का आखिरी लम्हा पार कर गया। यानी कोरोना की दूसरी लहर में एक मार्च के बाद 31 मई तक सबा लाख जानें गईं। यानी पहली और दूसरी लहर दोनों मिलाकर भारत के तीन लाख 63 हज़ार 29 लोगों की मौत हो गई। यानी दूसरी लहर में कोरोना से मरने वालों में भारत दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर ब्राजील है।

इस आंकड़ा से इतर भी दो आंकड़ा पेश किया गया है। इस आंकड़े पर देश से लेकर विदेशों तक विवाद है। कहा तो यह जा रहा है कि कोरोना से दूसरी लहर में मरने वालों की संख्या पांच गुना से सात गुणा ज्यादा है। जब इस पैमाने पर गौर करें तो कोरोना की दूसरी लहर में मरने वाले की संख्या को लेकर अगर पांच गुणा मानें तो 11लाख, 25 हजार हो जाता है। और इसे सात गुणा मानें तो 15 लाख 75 हजार हो जाता है।

सरकार ने पांच गुणा और सात गुणा के आरोपों को झुठला दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मृतकों की संख्या 3 लाख, 85 हजार 1 सौ 37 बताया। दरअसल एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने अपने लेख में लिखा है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर में मरने वालों की जो अधिकारिक संख्या बताई जा रही है, उससे मरने वालों की वास्तविक संख्या पांच गुणे से लेकर सात गुणे तक ज्यादा है।

इस आरोप का खंडन करने के लिए सरकार ने पीआईबी यानी प्रेस इंफॉरमेशन ब्यूरो को लगाया। पीआईबी ने कहा कि यह पूरी तरह अनुमानों पर आधारित है। और बेबुनियाद है। इस कथित लेख का विश्लेषण बिना किसी महामारी विज्ञान के साक्ष्यों के एक खास डेटा के ट्रेंड पर आधारित है।

सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के और पीआईबी के स्पष्टीकरण के पीछे का सच की जांच करने से पहले हम एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के उस बयान पर भी गौर कर लें, ताकि हर पहलुओं को समझने में आसानी हो सके। 19 जून, 2021 को एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने एक चेतावनी दी है कि अगर कोविड का सही तरीके से पालन नहीं किया गया तो अगले छह से आठ सप्ताह में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है।

 

अब हम सुप्रीम कोर्ट में दायर उस हलफनामे पर बात करेंगे तो सबकुछ शीशे की तरह साफ हो जाएगा। दरअसल कोरोना पीड़ितों ने कोरोना से हुई मौतों के लिए सरकार को मुआवजा प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट से जब पीड़ितों ने गुहार लगाई और इस गुहार पर जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से राय तलब की तो सरकार ने एक हलफनामा दायर कर सिर्फ अपनी आर्थिक तंगी का ही रोना नहीं रोया। बल्कि साफ लहजे में सुप्रीम कोर्ट से कह दिया कि सरकार कोरोना से मरने वाले लोगों के परिजनों को चार लाख का मुआवजा नहीं दे सकती है।

सरकार ने दूसरी लहर में देश की जनता के लिए कौन-कौन सी योजनाएं बनाई, और उस योजनाओं को किस तरह से मूर्त रूप दिया, यह किसी से ढका-छुपा नहीं है। लेकिन सरकार ने मुआवजे के मामले में दायर अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से यहां तक झूठ बोल दिया कि सरकार ने कोविड से निपटने के लिए कई लाभकारी योजनाएं जनता को प्रदान की। और इससे निपटने के लिए कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं शुरू की। और इन योजनाओं का लोगों को फायदा भी मिला है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यहां तक कह दिया कि कोरोना महामारी से निपटने के दौरान जरूरतमंदों के बीच काफी खर्च हुआ, जिससे सरकार की आर्थिक स्थिति बेपटरी हो गई है।

सरकार की ओर से हलफनामे में सिर्फ मरने वालों के लिए अफसोस के शब्द ही दिए गए। सरकार ने सुप्रीम अदालत के सामने तीसरी लहर की संभावनाओं को जता और बता कर अदालत की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की।

गौरतलब है कि अदालत में सरकार ने हलफनामे और एम्स के निदेशक के तीसरी लहर की आशंका को जब आप मिलाकर देखें तो साफ हो जाएगा कि सरकार अदालत को किस तरह से गुमराह करती आ रही है। सरकार के पास लगभग 12 आपदाओं के लिए चालू वर्ष का वार्षिक राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष 22 हजार, 1 सौ 84 करोड़ रुपया है। सरकार ने अदालत के सामने चार लाख का मुआवजा देने से बचने के लिए तर्क यह दिया कि अगर मरने वालों के परिजनों को चार-चार लाख दिए जाएं तो 22 हजार, 1 सौ 84 करोड़ रुपए इसी मद में खर्च हो जाएंगे।

सरकार ने कहा कि एसडीआरएफ की पूरी राशि मुआवजे पर ही खर्च कर दी जाए तो फिर दूसरे आपदाओं से निपटने के लिए धन कहां से आएगा?

अब आप इस बात का सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार पर सरकार के वास्तविक आंकड़ों को छुपाने का जो आरोप है, उसमें कितनी सच्चाई है? क्योंकि अक्सर जिस तरह की भी आपदा हो, या जिस तरह की भी दुर्घटना हो, उसमें अक्सर सरकारें मौतों की संख्या को जितना कम करके दिखा सके, पूरी ऊर्जा लगाकर कम दिखाने की कोशिश करती है। ऐसा इसलिए करती है कि मुआवजा उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती बनकर खड़ी हो जाती है। सरकार को समझने के लिए और आपको समझ में आने के लिए इतना काफी है।