इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस के बहाने मुस्लिम हालात पर चर्चा

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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह परिसर में अहम बैठक

पत्रकार, उद्यमी, समाजसेवी, सूफ़ी और खेल जगत के लोग शामिल

मौजूद लोगों को प्रतीक चिह्न देकर किया गया सम्मानित

ए आर आज़ाद

देश की मुस्लिम क़यादत, इक़्तिदार और उनकी अपनी मसाइल को लेकर अब फिर से एक बेदारी पैदा होती हुई नज़र आ रही है। देश के बुद्धिजीवियों की ओर से इस दिशा में सिर्फ़ पहल ही नहीं की जा रही है, बल्कि इस मसले पर गंभीरतापूर्वक विचार-मंथन एवं विचार-मीमांशा की शुरूआत भी होने लगी है। किस तरह से मुस्लिम क़यादत मुसलमानों की शासन और सत्ता में भागीदारी को सुनिश्चित करे, इस पर भी बेबाक अंदाज़ में पहल का आग़ाज़ हो चुका है। यह आग़ाज़ अंजाम तक कैसे पहुंचेगा, इस पर भी माथापच्ची शुरू हो चुकी है। मुसलमानों ने ख़ुद से ख़ुद को बेदार करने के लिए अपनी क़मर कस ली है।

दरअसल हर ऐतबार से सोए हुए मुसलमानों को बेदार करने का दायित्व कोई और नहीं उठा सकता है। हालांकि इस सच को सामने आने के बावजूद क़बूल करने में मुसलमानों को ही काफ़ी वक़्त लग गया है। आज देश की हालात चीख़-चीख़ कर कह रही है कि मुसलमानों ख़ुद से जागो, तुम्हें जगाने वाला कोई नहीं है। तुम कब तक ग़फ़लत की नींद में सोते रहोगे। इसी ग़फ़लत की नींद ने हुक्मरान मुसलमानों को पिछले दो दशक से एससी-एसटी के क़रीब लाकर खड़ा कर दिया है। और आज की तारीख़ में बात करें तो आज मुसलमानों की पोज़िशन ये हो गई है कि वो तो एससी-एसटी से भी नीचे आकर ठहर सा गया है। इस ठहराव को बेदारी के ज़रिए धक्के देकर मुसलमानों को बुलंदी का खुला आसमान देना होगा। ताकि वो फिर से अपने पांवों पर खड़ा होकर किसी का ना तो मोहताज़ रहे। और ना ही किसी सरकार की तरफ़ कुछ पाने के लिए हसरत भरी निगाहों से मुंह ताकता रहे।

मुसलमानों के पिछले दो दशकों से हालात दिनों-दिन बिगड़ते जा रहे हैं, इसकी ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है। इसलिए मुसलमानों को इसकी ज़िम्मेदारी ख़ुद लेनी होगी। और उन्हें यह बात माननी पड़ेगी कि उन्होंने अपने पैरों पर ख़ुद ही कुल्हाड़ी मारी है। वे जिस डाल पर थे, उस डाल को उन्होंने ख़ुद अपने हाथों से काटा है। इसलिए नए सिरे से मुसलमानों को अपनी ग़लती मानते हुए एकता के सूत्र में ख़ुद को पिरोना होगा। उन्हें इस्लाम से ही मार्गदर्शन लेना होगा। उनके पास एक आसमानी किताब है, उस किताब में हर बंद दरवाज़े की चाबी है। सिर्फ़ उस चाबी को खोजकर निकालने की ज़रूरत है। और हिम्मत, अक़्ल और हिकमत से काम लेते हुए इंसाफ़ के साथ किसी भी मामले को अंजाम तक पहुंचाने की ज़रूरत है। समाज का निर्माण एक नेक काम है। हर नेक काम के लिए नेक नियत का होना ज़रूरी है।

ख़ुदगर्ज़ी पर सवार होकर कोई भी आगे बढ़ जाए, लेकिन मुसलमान के लिए यह मुमकिन नहीं है। मुसलमानों के लिए अब एक ही रास्ता बचा है। मिलजुलकर रहना सीखें। और एक दूसरे को माफ़ करने के हुनरमंद बने। हाथ मिलाने से पहले, दिल मिलाने की कोशिश करें। अपने अंदर की हीन भावना को ख़त्म करें। और हुब्बुल वतनी निस्फुल ईमान के तहत इस देश के लिए अपनी क़ौम को आगे बढ़ाएं। किसी भी इमारत का एक पिलर कमज़ोर हो जाता है, तो पूरी की पूरी इमारत कमज़ोर हो जाती है। यह सबक़ सरकार और मुसलमानों दोनों के लिए ही है। मुसलमान अगर कमज़ोर रहेंगे, तो देश कैसे मज़बूत हो सकता है? देश की मज़बूती के लिए, मुसलमानों को भी मज़बूत करना होगा। आज मुसलमानों की तादाद लगभग 21 फीसदी है। कोई भी देश इतनी बड़ी तादाद का फायदा उठाना चाहेगा। और मुसलमानों को भी अपनी ख़ातिर ना सही, देश की ख़ातिर ख़ुद को मज़बूत करना होगा। अपने अतीत में झांकना होगा। और उससे सबक़ लेकर अपना और देश का भविष्य बनाने में पथ-प्रदर्शक का काम करना होगा। जैसे आज़ादी की लड़ाई में हम सब के ख़ानदान वालों ने हर तरह से देश का पथ-प्रदर्शन किया। क़ुर्बानियां दीं। और देश को आज़ाद करके दिखाया।

बहरहाल इसी लब्बोलुआब को अमली जामा पहनाने की कोशिश में दिल्ली की रूहानी मरकज़ यानी हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस की मीटिंग का आग़ाज़ मशहूर समाजसेवी डॉक्टर ताजुद्दीन अंसारी, दरगाह हज़रत निजामुद्दीन औलिया के नाज़िम सैयद काशिफ़ अली निज़ामी, समाजसेवी शाहिद सिद्दीक़ी, साइंटिस्ट वाहिद ख़ान और जाने-माने टीवी पत्रकार मारूफ़ रज़ा की क़यादत में हुआ। और इस बैठक में देश के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न हलकों में काम करने वाले विभिन्न समाज के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

यह बैठक काफ़ी सफल रही। कामयाब इस मायने में रही कि इस बैठक में तक़रीबन हर हलके के माहिर मौजूद  हुए। सभी ने इस मीटिंगे के एजेंडे पर अपनी सहमति जताई। और ग़िला-शिकवा व अना को भुलकर एक प्लेटफॉर्म पर आकर एक साथ काम करने के लिए अपनी रज़ामंदी दी।

इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस की इस बैठक में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि मुसलमानों को शिक्षा के हथियार से लैस करना होगा। शिक्षा ही एक ऐसी तलवार है, जो अंदर की बुराई और बाहर की बेइंसाफ़ी का आसानी से क़त्ल कर सकती है। मुसलमानों के अंदर की जाहिलियत और बेहिसी को ख़त्म करने के लिए इल्म का चराग़ मिलकर जलाना होगा। और वो चराग़ जलता रहे, इसके लिए समाज को दीया और बाती के इंतज़ाम में जुट जाना होगा।

कुछ वक्ताओं ने अपने-अपने अंदाज़ में मुस्लिम मसाइल को सामने रखा। इस मौक़े पर डॉ. ताजुद्दीन अंसारी ने शिक्षा पर ज़ोर दिया। उन्होंने साफ़ लफ़्ज़ों और लहज़े में कहा कि जब तक बैकवॉर्ड क्लास में शिक्षा को लेकर जागृर्ति नहीं आएगी, तब तक उसका विकास संभव नहीं है।

इसी तरह से इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस की इस अहम बैठक में ग़ाज़ीपुर मुर्गा मंडी के पूर्व अध्यक्ष चौधरी रियासत अली ने भी समाज में फैली कुरीतियों का ज़िक़्र किया। और कहा कि इसे दूर करना वक़्त की ज़रूरत है।

इस मौक़े पर बीएसएफ़ के पूर्व कमांडेंट आरसी चंद्र ने अपनी राय ज़ाहिर करते हुए कहा कि समाज के सभी वर्गों को लेकर चलने की ज़रूरत है। ऐसा इसलिए कि ताकि समाज में अपनापन और सौहार्द बना रहे।

इस मौक़े पर डॉल्फिन शूज के अध्यक्ष सैयद फ़रहत अली ने भी इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस को ख़िताब किया। उन्होंने कहा कि बैकवर्ड समाज यानी पूरे मुसलमानों को बराबरी और बेदारी के साथ आगे लाने के लिए ऐसी पहल होनी चाहिए। और इस पहल को अमलीजामा पहनाना भी हम सबके लिए ज़रूरी है। हम सबको मिलकर एकता के बंधन में बंधकर पिछड़े हुए लोगों को आगे बढ़ाने के काम को अपना मक़सद बना लेना चाहिए। इसे अपने लक्ष्य के तौर पर लेना चाहिए।

इस मौक़े पर देश के नाम कई स्वर्ण पदक करने वाली रेसलर रज़िया बानो ने कहा कि हमारे इलाक़े में दहेज प्रथा एक बुरी बीमारी बनकर सामने है, इसे हम सबको मिलकर दूर करना चाहिए। उनके इस मांग पर मीटिंग में मौजूद लोगों ने इस बीमारी को दूर करने पर विचार करने का भरोसा जताया।

इस बैठक में हरियाणा, राजस्थान, हैदराबाद, कर्नाटक और दिल्ली से आए हुए प्रतिनिधियों ने इंडियन बैकवर्ड कॉन्फ्रेंस को मज़बूत करने की पूरज़ोर वकालत की। और पूरे देश में धीरे-धीरे इसकी शाखाएं खोलने का सुझाव भी दिया।

ग़ौरतलब है कि इस अहम बैठक में कई जानेमाने पत्रकार, उद्यमी, समाजसेवी, खेल जगत से जुड़े लोग और सूफ़ी हलकों के लोग शामिल हुए। और इस मौक़े पर इन सभी को इमामा बांधकर और प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित भी किया गया।

इस मौक़े पर मशहूर साइंटिस्ट वाहिद ख़ान, सीनियर वकील सज्जाद हुसैन अंसारी, शिक्षाविद व पत्रकार सैयद अहमद इक़बाल, ‘दूसरा मत’ के संपादक एवं इक़रा होली ट्रस्ट के सेक्रेट्री ए आर आज़ाद, डॉल्फिन शूज के अध्यक्ष सैयद फ़रहत अली, कांग्रेस नेता एम ख़ान, फेस मीडिया ग्रुप के चेयरपर्सन डॉ मुश्ताक़ अंसारी, मशहूर समाजसेवी शाहिद सिद्दीक़ी, हज़रत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के जनरल सेक्रेटरी सैयद दीवान फ़ारूक़ निज़ामी, दिल्ली उर्स कमेटी के अध्यक्ष एफ़ आई इस्माइली, इंडियन बैकवर्ड कांफ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी अक़ील अहमद सलमानी, कालकाजी ब्लॉक के माइनॉरिटी अध्यक्ष राशिद हयात ख़ान, दिल्ली उर्दू अकादमी के मेंबर नफ़ीस मंसूरी, कांग्रेस नेता ज़िया ख़ान, तेलंगाना के सीनियर कांग्रेस नेता ए एम ख़ान, समाजसेवी सैयद कमरुद्दीन, मटका पीर के नाज़िम और समाजसेवी शकील अहमद, समाजसेवी ग़ुलाम जिलानी, समाजसेवी व कारोबारी लियाक़त हुसैन, दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड अधिकारी व समाजसेवी शेख़ शफ़ीउद्दीन, देश के नाम कई स्वर्ण पदक करने वाली रेसलर रज़िया बानो, नेशनल बिलियर्ड्स चैंपियन फ़िरोज ख़ान, एडवोकेट फ़ातिमा सहित अन्य जाने-माने समाजसेवी, पत्रकार और सूफ़ी परंपरा के लोग इस शानदार मीटिंग के हिस्सा बने।