दिल्ली दंगा मामले में जेएनयू की छात्रा और जामिया के छात्र को मिली जमानत
हाईकोर्ट ने यूएपीए के तहत कार्रवाई पर सरकार को झकझोर कर नींद से जगाया
ए आर आज़ाद
नताशा नरवाल, देवंगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। हाईकोर्ट ने इन तीनों को जमानत देते हुए सरकार और दिल्ली पुलिस की बखिया उधेड़ दी। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि सरकार की नजर में विरोध के संवैधानिक हक और आतंकवादी गतिविधियों के बीच का अंतर करने वाली रेखा कुछ धुंधली हो गई है।
दरअसल नताशा नरवाल, देवंगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा इन तीनों को बीते साल दिल्ली दंगों के साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। हाईकोर्ट में सरकार की किरकिरी होने के बाद दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दिल्ली पुलिस ने 16 जून, 2021 यानी फैसले के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर दी है।
हाईकोर्ट ने यूएपीए के तहत गिरफ्तार इन तीनों को जमानत देते हुए कहा कि यूएपीए में आतंकवादी कृत्य की परिभाषा अस्पष्ट है। आतंकवादी कृत्य का इस्तेमाल किसी दूसरे अपराधी कृत्य के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि खासकर ऐसे कृत्यों के लिए कतई नहीं किया जा सकता, जिनकी परिभाषा पहले से दूसरे कानूनों में तय है।
हाईकोर्ट ने यूएपीए के सेक्शन 15 में प्रयोग आतंकवादी कृत्य शब्दावली के इस्तेमाल पर सावधानी बरतने की ताकीद की। अदालत ने साफ कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो इससे घृणित अपराध की गंभीरता समाप्त हो जाएगी।
हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगा षडयंत्र के मामले में गिरफ्तार जिन तीनों को जमानत दी है वे पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता और जेएनयू की छात्राएं हैं। और एक छात्र जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र हैं।
गौरतलब है कि बीते साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए थे। और उसी दंगे के मामले में दोनों छात्राओं को 23 मई, 2020 को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। और अगले सप्ताह यानी 29 मई, 2020 को इनपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर लिया था। जिस समय इन दोनों छात्राओं पर यूएपीए का मामला दर्ज किया गया था, उस समय वे दोनों न्यायिक हिरासत के दौरान तिहाड़ जेल में थे।
जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था। आसिफ इकबाल तन्हा की गिरफ्तारी यूएपीए के तहत 19 मई, 2020 को हुई थी। वे पहले से ही सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में थे।
15 जून,2021 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनुप जयराम बंबानी की बेंच ने तीनों को जमानत दे दी। और साफ कर दिया कि इनपर लगे आरोप प्रथम दृष्टया यूएपीए के अनुरुप नहीं है।
हाईकोर्ट ने सरकार और पुलिस पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हम यह कहने के लिए मजबूर हैं कि ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने के लिए सरकार के जहन में विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का फर्क धुंधला हो गया है। अदालत ने सरकार को चेताते हुए कहा कि इस तरह के रवैए को बढ़ावा मिलना, लोकतंत्र के दुखद दिन का प्रतीक होगा।
गौरतलब है कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में लगभग सवा साल पहले दंगे हुए थे। दिल्ली पुलिस के मुताबिक दंगे तीन दिनों तक चले। और इसमें 53 लोगों की मौत हुई थी। आपराधिक आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। इस दौरान घर, दुकान और संस्थान आग के हवाले कर दिए गए थे। मस्जिदों में भी आग लगा दी गई थी। पुलिस ने इस दंगे में 752 एफआईआर दर्ज की। जिन लोगों को इन आरोपों में गिरफ्तार किया गया, उनमें एनआरसी-सीएए का विरोध करने वाले छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल थे।
इस दंगे की जांच में पुलिस की भूमिका को लेकर कई सवाल उठे थे। लेकिन उन सवालों को नजरअंदाज कर दिया गया। और उल्टे संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली पुलिस के कामकाज की तारीफ की। और कहा कि दंगे मामलों में दिल्ली पुलिस ने मुस्तैदी दिखाई।
गौरतलब है कि यूएपीए से पहले इसी तरह का कानून पोटा था, जिसे 2004 में हटा दिया गया। और इसमें संशोधन के बाद ही यूएपीए लाया गया। पोटा से पहले इसी तरह का टाडा कानून था। इसका भी जमकर दुरुपयोग हुआ। और उस नतीजे में उसे 1995 में हटा दिया गया।
इस परिपेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला नजीर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर आतंकवादी भले ही अपराधी हो मगर हर अपराधी को आतंकवादी का तमगा नहीं दिया जा सकता। यही वजह है कि दिल्ली हिंसा मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार छात्र-छात्राओं को जमानत देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब कड़े कानून के जरिए दंड का प्रावधान हो तो विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। और उन सब पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है, जिससे बेकसूर बच सके।
पोटा मतलब प्रिवेंशन ऑफ टेरेरिज्म
टाडा मतलब टेरेरिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटिज
यूएपीए मतलब अनलॉफुल एक्टिविटिज प्रिवेंशन एक्ट