पीएम की कश्मीरी नेताओं से बातचीत यानी विमर्श से नतीजे पर पहुंचने की कोशिश

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राजीव रंजन नाग

विमर्श से नतीजे पर पहुंचने की कोशिश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकारी आवास पर एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में कश्मीर के विभिन्न अहम राजनीतिक दलों के प्रमुख और उसके प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इस बैठक में लगभग चार पूर्व मुख्यमंत्री ने भी शिकरत की।

इस बैठक में गुपकार के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेता फारुक अब्दुल्ला, पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉऩ्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला, जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष भीम सिंह, कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद एवं सीपीएम नेता यूसुफ तरिगामी के अलावा रविंद्र रैना, निर्मल सिंह, कविंद्र गुप्ता एवं सज्जाद लोन शामिल थे।

इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजित डोभाल, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी शामिल थे।

आपको बता दें कि इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। लेकिन बैठक का सूत्रवाक्य परिसीमन और जम्मू-कश्मीर का चुनाव ही रहा। क्योंकि जम्मू-कश्मीर के नेताओं के प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली रवानगी से ठीक एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की बैठक हुई। और इस बैठक में विधानसभा क्षेत्रों के पुनगर्ठठन पर चर्चा हुई। और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। अब यह माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सदस्यों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो सकती है। इस कवायद के पीछे की मंशा यही है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजित के लिए कुछ सीटें आरक्षित की जाएं। और सात सीटें संभवतः अनुसूचित जाति के हिस्से में जा सकती हैं। और इस तरह से जम्मू-कश्मीर विधानसभी की सीट बढ़कर कम से कम 90 हो सकती है।

दरअसल यह मीटिंग इसलिए भी अहम मानी जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 में दूसरे अवतार में अवतिरत होने के बाद 5 अगस्त,2019 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर की विशेषता को एक ही झटके में खत्म कर दिया था। जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए धारा 370 उनका विशेष अधिकार था। इस विशेष अधिकार को गृह मंत्री ने छीन ही नहीं लिया। बल्कि जम्मू-कश्मीर के जितने प्रमुख दलों के नेता थे सबको नजरबंद कर दिया। हिरासत में ले लिया। राजनैतिक कैदी बना लिया। और जम्मू-कश्मीर सहित देश के विभिन्न जेलों में उन्हें ठूंस दिया। हाल-फिलहाल में धीरे-धीरे करके एक-एक नेताओं को रिहा किया गया। जिन लोगों को हिरासत में लिया गया। उनमें फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी लीडर  महबूबा मुफ्ती, और महबूबा मुफ्ती के चाचा मदनी सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के अहम नेताओं को यातना का शिकार बनाया गया।

यानी आप कह सकते हैं कि एक लंबी चुप्पी के बाद एक फोन से दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच एक हरारत शुरू हुई। संवाद स्थापित हुई। बातचीत का एक सिलसिला शुरु हुआ। धारा 370 के खात्में के बाद बातचीत शुरू करने में एक साल, दस महीने, 19 दिन लग गए। यानी  98 सप्ताह तक जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के बीच तल्खी और चुप्पी का माहौल रहा। यह चुप्पी 689 दिनों के बाद टूटी। यानी 16 हजार, पांच सौ, 36 घंटें तक खामोशी की बर्फ जमी रही।