अखिलेश अखिल
जनता दाल यूनाइटेड यानी जदयू यूपी में अपना जनाधार तलाश अभियान 23 जनवरी से शुरू करने जा रही है। इस बात की घोषणा के साथ ही यूपी की राजनीति तो गर्म हो ही गई है सूबे के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी की भृकुटि भी तन गई है। यूपी में 2022 में चुनाव होने हैं लेकिन अभी से ही सूबे की राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण को नए सिरे से तैयार कर रही है। बीजेपी जहां हिंदुत्व की राजनीति को और तल्ख़ करने में जुटी है तो सूबे की राजनीति में ओवैसी फैक्टर से हर दलों के बीच कानाफूसी भी जारी है। सपा और बसपा को लग रहा है कि बिहार की तरह ही ओवैसी ने अगर यहां मुस्लिम वोट बैंक पर असर डाल दिया तो उनकी राजनीति कुंद हो सकती है। ओवैसी फैक्टर से हालांकि बीजेपी को कोई नुकसान अभी नहीं है और उसे यह भी लग रहा है कि अभी तक ओवैसी फैक्टर का लाभ बीजेपी को ही मिलता रहा है। लेकिन जदयू की सूबे की राजनीति में उपस्थिति बीजेपी को परेशान किये हुए है। आगे क्या समीकरण बनते हैं और बीजेपी के साथ जदयू का संबंध कैसा रहता है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन जानकार मान रहे हैं कि अगर जदयू ने बीजेपी से अलग होकर यूपी का चुनाव लड़ने का निर्णय ले लिया तो बीजेपी को काफी बड़ी हानि हो सकती है। याद रहे यूपी में कुर्मी-कुशवाहा वोट बैंक बड़ा है और वहां की राजनीति में इन जातियों का बर्चस्व काफी रहा है। योगी की मौजूदा सरकार बनाने में इन जातियों की बड़ी भूमिका भी रही है और यही वजह है कि इन जातियों को साधने के लिए लगभग हरेक दलों ने कुर्मी-कुशवाहा नेताओं का सहारा लिया है। बीजेपी में भी कई नेता इसी समाज से आते हैं। बता दें कि 23-24 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लखनऊ में कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। जदयू का यह कार्यक्रम अपने आप में अनूठा होगा। इसका पूरा जिम्मा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी को दी है।
बिहार में जदयू की करारी हार और खास कर बीजेपी से कम सीटें जीतकर भी सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाले नीतीश कुमार इस बार सहज नहीं हैं। जदयू को पता चल गया है कि एक रणनीति के तहत बीजेपी ने उसे बौना किया है और जदयू को बौना करने के लिए बीजेपी ने लोजपा के साथ मिलकर यह सब किया है। इतने बड़े खेल के बाद भी जदयू ने मौन रहना ही उचित समझा था। लेकिन जैसे ही अरुणाचल में बीजेपी ने जदयू के सात विधायकों को तोड़कर बीजेपी के साथ मिलाया जदयू भड़क उठी। नीतीश कुमार भी आहात हुए और पार्टी के नेताओं ने इसे पीठ में छुरा भोकने जैसी बातें कही। फिर जदयू की कार्यकारिणी बैठक हुई और तय हुआ कि बीजेपी के इस खेल का बदला लिया जाएगा। वक़्त आने पर बीजेपी को सबक़ सिखाया जाएगा। जदयू ने बिहार से बाहर पार्टी का विस्तार करने की योजनाएं बनाई। अब वह बंगाल असाम तो लड़ेगी ही यूपी में भी मुस्तैदी के साथ चुनाव में उतरेगी। जदयू का यूपी में चुनावी खेल कितना सफल होगा, इसे देखना होगा। लेकिन योगी की परेशानी तो बढ़ ही गई है। योगी के सामने तीन नए दल सामने आते दिख रहे हैं। एक तरफ आम आदमी पार्टी की सूबे की राजनीति में इंट्री की कहानी देखी जा रही है तो दूसरी तरफ ओवैसी का पदार्पण भी वहां हो रहा है। अब जदयू का प्रवेश बहुत कुछ बता रहा है।
दरअसल, यूपी में जदयू हर तरह के समीकरण का आकलन कर रही है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक़ के सी त्यागी ने दावा किया है कि यूपी में जेडीयू के लिए काफी संभावनाएं हैं। सामाजिक समीकरण पूरी तरह से पार्टी के अनुकूल है। राज्य से सटे यूपी के जि़लों में कुर्मी आबादी काफी है, जिसमें पार्टी अपना भविष्य देख रही है। बता दें कि पिछले चुनाव से पहले भी नीतीश कुमार ने यूपी में जदयू की राजनीति के संकेत दिए थे और उन्होंने कई सभाओं को भी संबोधित किया था। तब मन गया था कि यूपी में जदयू कोई नया खेल कर सकती है। लेकिन चुनाव के दौरान जदयू पीछे हट गई। लेकिन अब जदयू अपनी राजनीति को लेकर सजग और सतर्क है।
यूपी में पार्टी के विस्तार की तैयारी के पीछे सियासी दीवार साफ नज़र आ रही हैं। राज्य में अभी भाजपा के सामने अन्य सभी दलों का सामथ्र्य कमज़ोर हुआ है। त्यागी के मुताबिक कांशीराम के बाद मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी की ज़मीन धीरे-धीरे कटती जा रही है। मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा भी पस्त होती जा रही है। ऐसे में जदयू अपनी जड़ें जमा सकती है। अब देखना ये है कि जदयू और बीजेपी का वहां गठबंधन होता है या नहीं। अगर गठबंधन नहीं हुआ तो पहली बार यूपी में योगी और नीतीश आमने-सामने होंगे और सूबे की राजनीति एक अलग धारा पर जाती दिखेगी।