ए आर आज़ाद
मुझे बापू मत कहो
मैं मोहनदास हूं
जो हमेशा देश का दास बनकर रहा
देश
सदा धड़कन की तरह मेरे दिल में रहा
देश को बर्बाद करने का मंसूबा लिए कुछ लोगों ने
मेरे दिल को चाक कर
कलेजे को छलनी करते हुए
दिल से धड़कन को जुदा कर दिया
मैं प्रतिकार नहीं कर सका
मैं प्रतिघात नहीं कर सका
मैं यलगार नहीं कर सका
मैंने सबकुछ ईश्वर पर छोड़ दिया
इतना कहते हुए- हे राम !
मेरे प्राण पखेरू हो गए
मेरे सपने जो देश के सपने थे
वो हक़ीक़त बनते-बनते रह गए
देश
बनता-बनता
धीरे-धीरे बिखरता चला गया
देश की अस्मिता
संप्रभुता और अखंडता को
विविधता की एकता की चादर में
जो लपेटा था-
वह मेरे हे राम ! के साथ
मानो
किसी अपरिपक्व सोच के कोहरे
या नासमझी की धुंध की चादर में बंधता चला गया
मुझे तमाशा बना दिया गया
बापू बनाकर नुमाइश की चीज़ बना दी गई
कभी दफ़्तरों में
मेरी तस्वीर लगाकर
कभी नोटों पर तस्वीर चस्पा कर
डाक टिकटों पर भी मेरा नाम
यानी सड़कों से लेकर पुल तक
और अस्पताल से लेकर स्कूल तक
मेरे नाम पर सियासत फलने लगी
मेरे विरोध पर सियासत फूलने लगी
दोनों विचाधाराओं ने
मेरा नाम लिया
दफ़्तरों में मेरे चित्र के सामने
टेबुल के कभी नीचे से
कभी टेबुल के ऊपर से
कभी खुले में
और कभी लिफ़ाफ़ें में
मेरी तस्वीर वाले नोटों को
जमकर भ्रष्टाचार का ज़रिया बना दिया गया
मैं जिस उसूल के लिए
ज़िंदगी भर मरता रहा
उसे मरने के साथ ही मार दिया गया
सच मेरे औज़ार थे
सच मेरे हथियार थे
सत्य मेरी ताक़त थी
लेकिन
उसी सत्य को पथ से अलग कर दिया गया
सत्य-पथ देश के प्राण थे
उसपर आघात किया गया
दु:खद
मेरे अंतिम व्यक्ति के विचार को
सूली पर लटका दिया गया
आदर्श जैसे शब्द को बेमाना कर दिया गया
राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम को
महज़ चुनाव जीतने का हथियार बना दिया गया
हथकंडा बना दिया गया
जुमला बना दिया गया
इस छाती को
पिस्टल की गोली ने जितनी छलनी नहीं की
कहीं उससे ज़्यादा
धूर्त नेताओं के स्लोगन ने
मेरे हृदय पर हथौड़ा बजाया
न जाने कितने स्लोगनों ने
सच्चाई को रौंद डाला
उसे ज़िंदा दफ़न कर दिया
सारे के सारे नारे
महज़ धोखे और ठगने के हथकंडे साबित हुए
जो देश
धूर्तता की चोट खाकर बाहर निकला हो
उसी देश को
फिर से धूर्तता
और
अन्याय के समागम
और
संगम में बांध दिया गया
मैंने अपने जीवन में
भारत के लिए
बेहतर हिंदुस्तान की तस्वीर खींचीं थी
जो
अतीत के आर्यावर्त से सबक़ लेकर
भविष्य का इंडिया बना सके
सुनहरे भविष्य की कल्पना को
ज़िंदा मार दिया गया
ठीक मेरी तरह
उन हाथों का
मेरा मारना चलो ठीक था
लेकिन
उन हाथों और उन सोचों से
देश का मरना ठीक नहीं
लोगों ने मेरी मौत पर क्या किया
देश की इस सदगति पर क्या करेंगे
लोगों में एक फ़ितरत समाई हुई है
वे शक्ति की पूजा करते हैं
चाहे सामने वाला साधु हो या शैतान
ज़ाहिर है
शैतानों ने इस फ़ितरत को समझ लिया
और
साधु के ध्यान
और
तपस्या की क़ीमत
इंसानी बाज़ार में
कौड़ी के भाव की रह गई
ज़ाहिर है
लम्पटों को अपना रक्षक मानने की प्रवृत्ति
पराकाष्ठा तक पहुंची
और
नतीजे में रक्षक से भक्षक बनने की
नई क्रांति
इंडिया की ज़ीनत बनकर रह गई
देश के लोग
दिवालिया पर भी दीवाली मनाने लगें
आपदा की सूरत में
छाती पीटने की जगह
थाली और ताली पीटने लगे
अब
देश के लोगों में
दु:ख में
ख़ुशी का इज़हार करने की आदत डाल दी गई है
चलो अच्छा है
देश बदले, न बदले
लोग बदल गए हैं
उनमें आ गई है ख़ामोशी के साथ
दासता सहने की असीम शक्तिशाली सहनशक्ति
देश को
बाहरी आक्रमण से
अब ख़तरा नहीं है
देश
अब अंदुरुनी आक्रांता की चंगुल में है
ऐ मेरे वतन के लोगों!
जब
इस चंगुल से निकलने की छटपटाहट
मन के भीतर आक्रोश जगा दे
तो आंखें मूंदकर
एक बार कहना बापू
कोई न कोई जानी-अनजानी सूरत
तुम्हारी छटपटाहट के निराकरण के लिए
सामने खड़ी होगी
हां!
तुममें जब तक
ऐसी बेचैनी न दिखे
तब तक
मुझे मत कहना बापू
मैं तब तक
तुम्हारे लिए मोहनदास हूं
सिर्फ़ मोहनदास …!
सिर्फ़ मोहनदास हूं….!!