ए आर आजाद
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण नहीं, मोहम्मद यूनुस थे
आपने कभी बिहार के प्रधानमंत्री का नाम सुना है। आप हमारे इस सवाल को सुनकर चौंक गए होंगे। आप चौंकिए नहीं। यह सच्चाई है कि जवाहर लाल नेहरू से भी पहले देश के प्रधानमंत्री थे, उनका नाम मोहम्मद यूनुस था। मोहम्मद यूनुस देश की आजादी से पहले के प्रथम प्रधानमंत्री थे। दरअसल प्रथम प्रधानमंत्री का तमगा उन्हें इसलिए मिला कि सबसे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री की शपथ ली। और तब जाकर देश के बाकी अन्य प्रांतों में प्रधानमंत्री बनाए गए। इसलिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर मोहम्मद यूनुस की गिनती होती है।
इसके इतिहास पर हम चर्चा करेंगे। उससे पहले जानने की कोशिश करते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस कौन थे। और अपने कार्यकाल में उनकी क्या देन है। उनका क्या योगदान है। जब देश के अन्य प्रांतों में भी प्रधानमंत्री बन गए तो यूनुस बिहार के प्रधानमंत्री के तौर पर जाने जाने लगे।
आप अगर बिहार से हैं तो आपके लिए गर्व करने वाली बात यह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस का ताल्लुक भी बिहार से ही था। उन्होंने भी बिहार की मिट्टी में खेल-धूप कर बिहार की सरजमीं को राजनीतिक तौर पर हरा-भरा करने में अपना योगदान दिया।
आपको बता दें कि देश के और बाद में बिहार के पहले प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस का जन्म 4 मई,1884 को आज के बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। पटना के करीब एक गांव है, उस गांव का नाम पनहरार है। यहीं उनकी पैदाइश हुई। उनके पिता मौलवी अली हसन मुख्तार जमाने के मशहूर वकील थे। उन्होंने लंदन से वकालत की पढ़ाई की थी।
मोहम्मद यूनुस का सियासी सफर कांग्रेस से शुरू हुआ। मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी बनाई और फिर आजादी के बाद बनी पार्टी किसान मजदूर प्रजा पार्टी पर जाकर खत्म हुआ। उनका कांग्रसे से लंबे समय तक बन नहीं सका। कांग्रेस की नीति और विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में मतभेद के कारण आखिरकार उन्होंने कांग्रेस का दामन झटक दिया। उन्होंने कांग्रेस के दामन को छोड़कर मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी बनाई। इस पार्टी बनाने में मौलाना सज्जाद का भी अहम किरदार माना जाता है। दोनों ने मिलकर ठीक चुनाव से पहले 1937 में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी का गठन किया। और इसी पार्टी से वे प्रधानमंत्री भी बने। आजादी के बाद किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनीं। इस पार्टी को बनाने और खड़ा करने में मोहम्मद यूनुस का अहम किरदार रहा। दुखद पहलू बिहार के लिए कहा जा सकता है कि मुहम्मद यूनुस दीर्घायु नहीं रह सके। उन्होंने 68 साल की उम्र देश को अलविदा कहकर दुनिया से खुद को रुखसत कर लिया।
दरअसल उन्होंने देश की सियासत में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके इस योगदान के ही मद्देनजर आज भी करीब से जानने वाले और उनके बारे में अध्यनरत लोग उन्हें स्टेट्समैन कहा करते हैं। उन्होंन अपने चार महीने के प्रधानमंत्तित्व के कार्यकाल में बिहार के लिए अभूतपूर्व काम किया। उन्होंने बिहार में जमीन की समस्या सुलझाई। उन्होंने किसानों की समस्या का निपटारा किया। उन्होंने बिहार में कौमी एकता को परवान चढ़ाया। और आपको सबसे बड़ा सुखद एहसास होगा कि आज बिहार का हाईकोर्ट इतना खूबसूरत दिख रहा है। यह उन्हीं की देन है। उन्होंने ही अपने प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में पटना हाईकोर्ट जैसी बेइंतहा खूबसूरत इमारत की नींव रखी। उन्होंने बिहार विधानमंडल की नींव रखी। यानी अपने चार महीने के प्रधानमंत्रित्व के कार्यकाल में बिहार में खुशनुमा माहौल और राजनीतिक सरगर्मी और विकास की उन्होंने ही नींव रखी। इसलिए आप बिहार का पहला राजनीतिक और सामाजिक विकास पुरुष किंही को कह सकते हैं तो उनमें पहला नाम मोहम्मद यूनुस का है।
मोहम्मद यूनुस मजे हुए सियासतदां के साथ-साथ एक अच्छे व्यापारी और सुलझे हुए इंसान थे। वे सच के हिमायती थे और वे देश के लिए अपने फर्ज से कभी गाफिल नहीं हुए। उन्होंने सच और देश के लिए कांग्रेस की विचारधारा को भी त्यागा और वक्त पड़ने पर गांधी जी की नीतियों का भी सधे अंदाज में विरोध किया।
इस तरह आप कह सकते हैं कि मोहम्मद यूनुस एक राजनेता थे। एक वकील थे। एक उद्यमी थे। यानी एक कारोबारी थे। और एक बैंकर के साथ-साथ प्रकाशक भी थे।
उन्होंने ही पटना में ग्रैंड होटल बनाया था। उस समय का यह आधुनिक होटल कहा जाता था। इसी होटल के एक हिस्से में मोहम्मद यूनुस खुद रहा करते थे। ग्रैंड होटल उस दौर का सबसे प्रमुख सियासी सेंटर के तौर पर जाना जाता था। इस ग्रैंड होटल में उस समय के तकरीबन सारे बड़े लीडर ठहरा करते थे। वैसे प्रमुख तौर पर ग्रैंड होटल में ठहरने वाले लोगों में महात्मा गांधी ले लेकर पं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद जैसे सरीखे बड़े नेता शामिल थे।
मोहम्मद यूनुस के परिवार में आज भी लोग बैरिस्टर हैं। आज वकालत से लगी हुई लौ अभी तक रौशन है। उनके परपोते कासिफ यूनुस भी बैरिस्टर हैं। और वे मोहम्मद यूनुस मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।
लेकिन आज घोर आश्चर्य और दुखद पहलू यह है कि मोहम्मद यूनुस को जानने वाले लोग नहीं है। उनके सारे योगदानों को भूला दिया गया है। विधानसभा में भी उनके नाम को शुमार नहीं किया गया है। बिहार विधानसभा में श्री कृष्ण सिंह से शुरूआत की गई है। और कहीं उनका कोई नाम नहीं है। हैरत की बात देखिए जिन्होंने विधानमंडल की नींव रखी, उन्हीं का नाम विधानमंडल से गायब। है न घोर आश्चर्य की बात।
आप कह सकते हैं कि आजाद भारत की बिहार सरकार ने मोहम्मद यूनुस के साथ अच्छा नहीं किया। उनके योगदानों पर अपने नाम की चादर डाल दी। और उनके सारे योगदानों को इस तरह से जमींदोज कर दिया। नतीजे में बिहार से उन्हें वैसा सम्मान नहीं मिला जिसके हकदार थे। उनके परिजन से लेकर इंसाफ पसंद राजननीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता तक यह मानते हैं कि आजादी के बाद सरकारी अभिलेखागारों से उनका नाम हटा देना उनके साथ अन्याय है।
दरअसल मोहम्मद यूनुस के योगदानों को जमींदोज करने की एक खास वजह भी है। वह वजह ये है कि आजादी के बाद लंबे समय तक एक ऐसी राजनीतिक पार्टी की सरकार रही, जिनका मोहम्मद यूनुस की विचारधारा से मेल नहीं था। नतीजे में राजनीतिक बदले की भावना ने कांग्रेस और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलाने वाली आरजेडी को इतना नीचे गिरा दिया कि वे मोहम्मद यूनुस के सारे महत्वपूर्ण योगदानों को जमींदोज कर दिया। और जनता को कभी यह जानने भी नहीं दिया कि कोई मोहम्मद यूनुस भी थे, जो बिहार और देश के पहले प्रधानमंत्री थे और जिन्होंने बिहार के विकास पहला नींव रखा था।
आप नीतीश सरकार को समझिए कि उन्होंने देर ही ही 10-12 साल शासन करने के बाद उनकी नींद टूटी। और उन्होंने नींद से जगकर मोहम्मद यूनुस और उनके योगदानों को टटोलना शुरू किया। और फिर उन योगदानों पर अपना हस्ताक्षर किया। और मुहर लगाई। यानी आप कह सकते हैं कि 2012 में सरकारी स्तर पर मोहम्मद यूनुस के योगदानों को मंजूर करने की शुरूआत हई। और यह शुरूआत अगले साल हकीकत बनकर सामने आई। 2013 से मोहम्मद यूनुस की जयंती राजकीय सम्मान के साथ आयोजित किया जाने लगा। नीतीश सरकार को चाहिए कि मोहम्मद यूनुस के योगदानों को सरकारी स्तर पर बिहार के युवाओं तक पहुंचाया जाए। इस मामले में वो जितनी इंसाफ बरतेंगे। आने वाले दिनों में उतना ही इंसाफ इतिहास भी उनके साथ करेगा।
अब जानिए मोहम्मद यूनुस प्रथम प्रधानमंत्री कैसे बनें। दरअसल ये पद अंग्रेजों के एक एक्ट की देन थी। यह एक्ट 1935 में पारित हुआ था। इस एक्ट को गवर्मेंट ऑफ इंडिया के नाम से जाता है। इस एक्ट में ऐसी व्यवस्था कर दी गई थी जिसके तहत प्रांतीय सरकार के प्रधान के लिए प्रधानमंत्री पद तय किया गया था। लेकिन हकीकत में वह पद वही था जो आज एक मुख्यमंत्री का होता है। उसी हिसाब से मोहम्मद यूनुस देश के पहले प्रधानमंत्री और बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने। लेकिन बिहार के लोग पहले मुख्यमंत्री के तौर पर श्रीकृष्ण को ही जानते हैं। जबकि हकीकत यह है कि बिहार के पहले मुख्यमंत्री मोहम्मद यूनुस ही थे।
अब हम बताते हैं कि मोहम्मद यूनुस कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री बने और बाद में बिहार के पहले प्रधानमंत्री बनकर किस तरह से बिहार को वैभवता प्रदान की। और उस वैभावता के जरिए बिहार के कैसे पहले विकास पुरुष बने।
गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के पारित होने के 2 साल बाद देश में प्रांत स्तर पर चुनाव हुएं। इस चुनाव में देश के सभी प्रांतों में कांग्रेस भारी बहुमत से विजयी हुई। लेकिन कांग्रेस ने जीत दर्ज करने के बाद भी हुकूमत कायम करने से बची। उसकी वजह यह थी कि वह नहीं चाहती थी कि सरकार के कामकाज पर गवर्नर का किसी तरह का हस्तक्षेप हो। और इस बात को अंग्रेज मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि गवर्नर बिट्रिश हुआ करते थे। नतीजे में कांग्रेस ने जब सरकार बनाने से इंकार किया तो बिहार में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी के सर्वेसर्वा मोहम्मद यूनुस ने सरकार बनाना मंजूर कर लिया। यूनुस की सरकार में तीन और लोग भी सरकार का हिस्सा बने। जिनमें दो गैर मुस्लिम थे।
इस तरह से मोहम्मद यूनुस पहली अप्रैल, 1937 को सभी प्रांतों में प्रधानमंत्री की शपथ लेने वालों मॆं पहले प्रधानमंत्री थे। और बिहार के भी पहले प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री। दरअसल अन्य प्रांतों में कांग्रेस ने सरकार बनाने में देरी की। इस तरह से मोहम्मद यूनुस देश के और बिहार के पहले प्रधानमंत्री बने। वे अपने पद पर 19 जुलाई, 1937 तक बने रहे। और इस तरह से उनके चार माह का कार्यकाल अभूतपूर्व रहा और इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया। अब जरूरत है कि बिहार की जनता इस इतिहास के बंद पड़े पन्नों को खोले और उसमें दर्ज सुनहरे शब्दों के जरिए मोहम्मद यूनुस को समझने की कोशिश करे। यही उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।