सरकार के जाल में फंस गए किसान! झेलेंगे राजद्रोह का मुक़दमा

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अखिलेश अखिल

किसान आंदोलन पर सरकार का नकेल कस गया है। अब किसान बचेंगे नहीं। सरकार ने जैसा चाहा, वही हुआ और कृषि कानूनों का विरोध करते-करते खुद राजद्र्रोह के आरोपी बन गए। यह खेल कहां तक चलेगा कोई नहीं जनता। फिलहाल की कहानी तो यही है कि सरकार ने ट्रेक्टर परेड में हिंसा को लेकर एक्शन लेना शुरू कर दिया है और किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करते हुए कई किसान नेताओं के खिलाफ राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया है। किसानों के दो महीने से ज्यादा का शांतिपूर्ण आंदोलन झटके में राजद्र्रोह में बदल गया। आजाद भारत की यह कहानी लुभाती भी है और भरमाती भी है। अब इस पुरे खेल में एक बात साफ़ हो गया कि सरकार कृषि कानूनों को नहीं बदलने जा रही है और एक कहानी यह है कि किसानों का आंदोलन अब लगभग ख़त्म ही हो गया क्योंकि किसान संगठनों के बीच भी दरार पैदा हो गई है। खबर के मुताबिक किसानों के कई संगठन अब सरकार के साथ खड़ी हो गई है। किसान आंदोलन के साथ जो कुछ भी हुआ उससे यह भी साफ़ हो गया कि भविष्य में अब कोई सत्ता के ख़िलाफ़ आंदोलन शायद ही हो पाए।

    इस कहानी को आगे बढ़ाए उससे पहले कांग्रेस ने क्या कहा इसपर ध्यान देने की ज़रूरत है। कांग्रेस ने कहा कि हिंसा के लिए केंद्र्रीय गृह मंत्री अमित शाह जि़म्मेदार हैं और उन्हें तुरंत ब़र्खास्त कर देना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को विफल करने के लिए एक संगृहीत षडयंंत्र रचा जा रहा है और वे उनकी मांगों को दबाना चाहते हैं।

    अब आगे की कहानी। 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा पर पुलिस लगातार दूसरे दिन एक्शन में है। 28 जनवरी को क़रीब 12 बजे पुलिस ने किसान नेताओं के ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी किए। यानी वे बिना इजाज़त विदेश नहीं जा सकेंगे, उनके पासपोर्ट ज़ब्त किए जाएंगे। एक घंटे बाद ख़बर आई कि लाल कि़ले में हिंसा की घटना को लेकर पुलिस ने राजद्र्रोह का केस दर्ज किया है। हालांकि, यह पता नहीं चल पाया है कि लुकआउट नोटिस किन-किन नेताओं के ख़िलाफ़ जारी हुए हैं और राजद्र्रोह के केस में किस-किस के नाम हैं। लेकिन, लुकआउट नोटिस के मामले में सूत्रों का कहना है कि जिन 37 नेताओं के खिलाफ पुलिस ने बुधवार को एफ़आईआर दर्ज की थी, उनमें से 20 के ख़िलाफ़ नोटिस जारी किए गए हैं। उधर, किसान नेता युद्धवीर सिंह ने हिंसा की घटनाओं पर माफी मांगते हुए कहा कि ‘‘गणतंत्र दिवस के दिन जो हुआ वो शर्मनाक है। मैं गाज़ीपुर बॉर्डर के पास था। जो उपद्र्रवी वहां घुसे उनमें हमारे लोग शामिल नहीं थे। फिर भी मैं शर्मिंदा हूं और 30 जनवरी को उपवास रखकर हम प्रायश्चित करेंगे।’’

     लेकिन अब सरकार के पास माफ़ीनामे की कहानी पढ़ने का वक्त नहीं है। सरकार चाहे कितनी भी ग़लती कर दे ,कितना भी झूठ बोल दे कोई बात नहीं, किसानों की एक ग़लती ने अब सबकुछ ख़त्म कर दिया। कहा तो यहां तक जाता है कि किसानों की जिस टोली ने लाल कि़ला पर झंडा फहराने का काम किया वह सबके सब उसी दीप सिंधु के लोग थे जो बीजेपी की नेतागिरी करते हैं। विपक्ष साफ़-साफ़ कह रहा है कि सरकार के लोगों ने ही यह सब प्लान किया था किसानों की ग़लती सामने आए और किसान नेताओं को चंगुल में फंसाया जाय। हुआ भी वैसा ही।

    ख़बर के मुताबिक़ पुलिस ने 20 किसान नेताओं को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न आपके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाए? 3 दिनों में इसका जवाब दें। जिन नेताओं को नोटिस दिए गए हैं, उनमें से छह के नाम अभी तक सामने आए हैं। ये नेता हैं राकेश टिकैत, योगेंद्र्र यादव, दर्शन पाल, बलदेव सिंह सिरसा, बलबीर सिंह राजेवाल और जगतार सिंह बाजवा। पुलिस ने जो नोटिस भेजा है, उसमें यह भी कहा है कि गणतंत्र दिवस पर लाल कि़ले में तोड़-फोड़ करना एक देश विरोधी हरकत है। बता दें कि ट्रैक्टर रैली में हिंसा को लेकर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के ख़िलाफ़ एफ़आईआर हो चुकी है। लेकिन, उनके तेवर नहीं बदले हैंैं। टिकैत ने अब सरकार को धमकी भरे लहज़े में चेतावनी दी है। क्योंकि, गाज़ीपुर बॉर्डर पर 27 जनवरी की रात 8 बजे बिजली काटने से टिकैत ़गुस्सा हो गए। टिकैत ने कहा कि ‘सरकार दहशत फैलाने का काम कर रही है। इस तरह की कोई भी हरकत पुलिस-प्रशासन न करे। अगर इस तरह की हरकत करेगा तो सारे बॉर्डर वहीं हैं। ठीक है…और वे किसान जो गांवों में हैं, वहां पर उनको बता देंगे। फिर अगर कोई दिक़़्कत होती है तो वहां के जो लोकल थाने हैं, किसान वहां पर जाएंगे। ये सरकार पूरी तरह ध्यान रख ले। इस तरह की कोई भी हरकत वहां होगी तो पूरी जि़म्मेदारी सरकारों की होगी।’

    दिल्ली की सीमाओं पर 2 महीने से शांतिपूर्ण तरीके़ से चल रहा किसान आंदोलन गणतंत्र दिवस पर हिंसा के बाद बिखरता नज़र आ रहा है। एक तरफ पुलिस उपद्रवियों और किसान नेताओं की घेराबंदी करने में जुटी है, तो दूसरी तरफ किसान संगठनों में फूट भी जगजाहिर हो गई। 27 तारीख़ को शाम 4 बजे राष्ट्रीय मज़दूर किसान संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने अचानक ऐलान कर दिया कि वे आंदोलन से अलग हो रहे हैं। इसके डेढ़ घंटे बाद ही ख़बर आ गई कि भानु गुट के किसानों ने चिल्ला बॉर्डर पर अपने टेंट हटाकर घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं। इसके अलावा किसान संगठनों ने एक फरवरी का संसद मार्च टालने का ऐलान भी कर दिया।

     किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुए बवाल में सबसे ज़्यादा चर्चा लाल कि़ले की घटना की हो रही है। क्योंकि, रैली में शामिल प्रदर्शनकारी पुलिस का दिया रूट फॉलो न कर लाल कि़ले पर पहुंच गए थे। वहां उन्होंने जमकर उत्पात मचाया और कि़ले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा भी लगा दिया। झंडा लगाने वाले एक युवक की अब पहचान हो गई है। वह पंजाब के तरनतारन के वांतारा सिंह गांव का रहने वाला है, उसका नाम जुगराज सिंह (22) है। उसके दादा महल सिंह ने कहा है कि जुगराज 24 जनवरी को दिल्ली गया था। वह लाल कि़ले पर कैसे पहुंचा और किसके कहने पर वहां केसरी झंडा चढ़ाया? यह उन्हें नहीं पता।

     किसानों का यह आंदोलन बेमौत मारा गया। सरकार ने जिस तरीक़े से आंदोलन और किसान को निशाने पर लिया है उसका अंजाम और भी गंभीर हो सकता है। हो सकता है कि मौजूदा वक़्त में आंदोलन ख़त्म हो जाए और किसान नेता देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद कर दिए जाए। लेकिन आने वाले समय में इसका राजनीतिक और सामजिक दुष्परिणाम भी सामने आएंगे। और किसानों का मूड बदल गया तो फिर लोकतंत्र की सारी कहानी बदनाम होकर रह जाएगी।