किस दबाव में नीतीश कुमार ने पप्पू यादव को गिरफ़्तार किया?

841

ए आर आज़ाद

लेकिन चाहकर भी तेजस्वी कर ही क्या सकते थे? लेकिन एंबुलेंस का नया मामला जब तूल पकड़ा तो अलाउद्दीन का एक चराग़ उनके हाथ लग गया। और लालू यादव के बहाने उन्होंने नीतीश से जुगलबंदी कराकर पप्पू यादव का खेला कर दिया। नीतीश कुमार भले ही लालू यादव के इशारे पर पप्पू यादव का खेल कर दिया। लेकिन उन्होंने अपने ही सिर पर मुसीबत ले ली है। पप्पू यादव को चाहे बीजेपी ने गिरफ़्तार करवाया, चाहे तेजस्वी यादव और लालू ने, लेकिन सामने तो नीतीश कुमार ही आए हैं। वह जनता के सामने भी आए हैं और राजनीतिक दलों के सामने भी उनका असली चेहरा उजागर हो गया है।

आख़िर किस दबाव में नीतीश कुमार ने पप्पू यादव को गिरफ़्तार किया? यह एक सवाल बनकर सबके सामने है। दरअसल पप्पू यादव पिछले कुछ सालों से समाज के प्रभावित लोगों की सुध लेते हुए नज़र आ रहे थे। उन्होंने कई मोर्चा पर काम किया। उनके काम का तौर-तरीक़ा इन दिनों बहुतों को प्रभावित भी किया। और बहुतों को कांटों की तरह चूभा भी। उन्होंने कोरोना के समय बिहार के अस्पतालों की दयनीय स्थिति, सरकारी प्रयास की बदहाली औऱ विभिन्न व्यवस्थाओं की गंभीर कमियों को उजागर किया। और उन्होंने बिहार और देश की जनता के सामने संपूर्ण स्थिति और परिस्थिति को लाकर रख दिया। ज़ाहिर सी बात है, जो लोग सरकार और विपक्ष में रहकर डीगें मारा करते थे, उनकी पोल खुलकर रह गई। और यही पप्पू यादव के लिए परेशानी का सबब बन गया।

पप्पू यादव ने बिहार के एक बड़े बीजेपी नेता के एंबुलेंस कांड को भी उछाला। इस एंबुलेंस कांड का परिदृश्य राष्ट्रीय फलक तक पहुंच गया। ज़ाहिर सी बात है कि इससे सिर्फ़ बीजेपी के उस नेता विशेष की ही छवि धूमिल नहीं हुई, बल्कि बिहार बीजेपी और बीजेपी के बड़बोले राष्ट्रीय नेताओं की भी छवि धूमिल होकर रह गई। अब बिहार में बीजेपी और नीतीश कुमार सहित कई दलों का गठबंधन है। उसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। ज़ाहिर है नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ा होगा, और उन्होंने बीजेपी के कहने पर या किसी और के इशारे पर पप्पू यादव को ठिकाने लगाया, यह पड़ताल का विषय है। जब आप इस मुद्दे पर ग़ौर करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि बीजेपी उतनी मूर्ख नहीं है कि आनन-फानन में बदला ले ले। इस तरह का बदला आरजेडी ही ले सकती है। और सूत्रों का मानना यहां तक है कि बिहार की सियासत में बड़ी तेज़ी के साथ बदलाव आऩे के संकेत मिल रहे हैं। यानी सरकारें बदल सकती हैं। यानी फिर संभव है कि नीतीश कुमार लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बना लें। और यह भी संभव है कि बीजेपी तेजस्वी यादव के साथ मिलकर सरकार बना ले। बिहार में अंदरख़ाने अजीब क़िस्म का खेल चल रहा है। बाप और बेटे यानी लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव दोनों अपने-अपने दांव खेल रहे हैं। अब इस दांव में देखना है कि लालू यादव के फेके गए चारे में नीतीश कुमार फंसते हैं? या बीजेपी के फेंके गए जाल में तेजस्वी यादव? यानी आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है।

नीतीश कुमार ने पप्पू यादव के साथ जो सलूक किया है, ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं यह लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की रणनीति का ही एक हिस्सा है-पप्पू यादव की गिरफ़्तारी। नीतीश कुमार की संभवतः बीजेपी को बदनाम करने और लालू प्रेम जताने के लिए भी एक चाल चली हो। और इसी चाल में पप्पू यादव को बलि का बकरा बना दिया गया हो। क्योंकि पप्पू यादव से बीजेपी को फायदा ही हुआ है। और होता रहा है। बिहार में पप्पू यादव की वजह से ही बीजेपी को नीतीश कुमार से ज्यादा सीटें आई हैं। और यही वजह है कि बीजेपी को ज्यादा सीटें आने की वजह से आरजेडी और उनके सहयोगियों की सीटें कम हो गईं। और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। यह चोट और कचोट रह-रहकर तेजस्वी यादव को अबतक साल रहा है। और इस चोट और कचोट का सूत्रतार वो अबतक पप्पू यादव को ही मानते रहे हैं। लेकिन चाहकर भी तेजस्वी कर ही क्या सकते थे? लेकिन एंबुलेंस का नया मामला जब तूल पकड़ा तो अलाउद्दीन का एक चराग़ उनके हाथ लग गया। और लालू यादव के बहाने उन्होंने नीतीश से जुगलबंदी कराकर पप्पू यादव का खेला कर दिया। नीतीश कुमार भले ही लालू यादव के इशारे पर पप्पू यादव का खेल कर दिया। लेकिन उन्होंने अपने ही सिर पर मुसीबत ले ली है। पप्पू यादव को चाहे बीजेपी ने गिरफ़्तार करवाया, चाहे तेजस्वी यादव और लालू ने, लेकिन सामने तो नीतीश कुमार ही आए हैं। वह जनता के सामने भी आए हैं और राजनीतिक दलों के सामने भी उनका असली चेहरा उजागर हो गया है।