तू एक पैसा देगा…….
ए आर आज़ाद
अब हम जानने की कोशिश करते हैं कि जकात क्या और क्यों दिया जाता और किसे देना चाहिए और किसे नहीं?
दरअसल जकात इस्लाम में दान का एक महत्वपूर्ण अंग के तौर पर माना जाता है। इसे आप दूसरे शब्दों में मजहबी टैक्स भी कह सकते हैं। इस धार्मिक कर को उस माल का हिस्सा भी कहा जाता है, जिसे एक मालदार अल्लाह की दी हुई दौलत में से उसके हकदारों के लिए निकालता है। जकात भी इंसान के मूल पांच स्तंभों में से एक है। एक सच्चे और पक्के मुसलमानों के लिए इस पर ईमानदारी से अमल और पहल करना लाजमी है। इस्लामिक शरीअत के मुताबिक हर एक मुसलमान को जिसे अपने खाने से अधिक है उसे अपने मुस्लिम कैलेंडर के हिसाब से सालाना आमदनी का 2.5 फीसदी हिस्सा गरीबों को दान देना है। और इसी दान को इस्लाम की भाषा में जकात कहा जाता है।
जकात इस्लाम मजहब का कितना अहम हिस्सा है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ कुरआन में जकात का इस्तेमाल कम से कम 33 बार किया गया है। और इस जकात का इस्तेमाल अधिकतर बार नमाज के साथ हुआ है। आपको बता दें कि कई जगह जकात के लिए सदका और इंफाक लफ्ज का भी इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन सबका मालिक एक ही है की तरह ही सबका मतलब एक ही है-दान।