ए आर आज़ाद
देश और दुनिया में भारत में देशद्रोह और राजद्रोह को लेकर उठ रहे मामलों पर भी पैनी नज़र बनी हुई है। सबके मन में एक जिज्ञासा है कि भारत की मौजूदा सरकार भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए को लेकर संजीदा क्यों नहीं है? वह इस धारा का दुरुपयोग रोकने के लिए प्रतिबद्ध क्यों नहीं है? सरकारी स्तर पर इसके दुरुपयोग की भावना को मज़बूत क्यों किया जा रहा है? और आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट को इस धारा और इस पूरे मामले पर हस्तक्षेप करने की नौबत क्यों आई? और सुप्रीम कोर्ट को केंद्र से जवाब तलब करने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?
इस तरह के अनेकों सवाल अनेकों लोगों के मन में उठ रहे हैं। और सबके सामने यक्ष प्रश्न यही है कि मोदी सरकार अंग्रेज़ों के ज़माने के इस हथियार को कुंद करने की जगह धार क्यों दे रही है? सवाल वाजिब हैं। और इस सवाल के जवाब का सबको इंतज़ार भी है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस तरह के सवाल का क्या जवाब देती है?
दरअसल इस तरह के सवाल मन व ज़हन में इसलिए भी पनप रहे हैं कि इस क़ानून को ख़त्म करने की मांग एक लंबे अरसे से चल रही है। ़कानूनविद और जो लोग इस तरह के क़ानूनों की ख़ामियों से बावस्ता हैं, उन्हें पता है कि इसके कितने बूरे और दुरगामी प्रभाव होते हैं? इसलिए इस क़ानून को लेकर सबके मन में डर और ख़ौफ़ का मंज़र उनकी आंखों में जगह बनाए रहता है। इस डर को समाप्त करने की पहल अब सुप्रीम कोर्ट करने जा रही है। लेकिन एक लोककल्याणकारी सरकार की जो ज़िम्मेदारी होती है, वह अपनी ज़िम्मेदारी से कैसे भाग सकती है? इस तरह के सवाल भी लोगों के ज़हन के साथ-साथ भारत की आवोहवा में तैरते नज़र आने लगे हैं। कई ़कानूनगो का मानना है कि यह अभिव्यक्ति की आज़ादी और अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है। ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करता है। यानी धारा 124 ए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए दमनकारी है। और तेज़ी से इस धारा का दुरुपयोग में हो रहा है और होने की संभावना प्रवल दिख रही है। हैरत तो इस बात की है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंध के लिए पहले से ही संविधान में एक धारा मौजूद है, बावजूद इसके अंग्रज़ों के ज़माने की इस धारा को अब तक भारत में जीवंत रखा गया, सबके लिए घोर आश्चर्य की बात है। दरअसल संविधान की धारा 19 (1) ए में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है, तो ऐसे में 124 ए के होने का क्या अभिप्राय हो सकता है?