अखिलेश अखिल
‘‘गीता में जगह-जगह पर ‘शुभ दृष्टि’ का प्रयोग है। यह शुभ दृष्टि ही पत्रकारिता है, जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है। असत्य, अशिव और असुंदर पर सत्यम, शिवम् और सुंदरम की शंखध्वनि ही पत्रकारिता है।’’
प्रख्यात साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी का कथन है, ‘‘समाज को विद्र्रोही चाहिए और उससे से अधिक विद्र्रोही चाहिए साहित्य को, कला को और पत्रकारिता को।’’
उधर महात्मा गांधी ने पत्रकारिता के तीन उद्देश्य बताए हैं- पत्रकारिता का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयता पूर्वक प्रकट करना है।
दूसरा मत पाक्षिक पत्रिका पवित्र ग्रंथ गीता, बेनीपुरी और गांधी के बताए रास्ते पर चलकर ईमानदार, प्रतिबद्ध और मिशनरी भाव से जनता और देश की हालात से रूबरू कराने का प्रयास है। पिछले दो दशक से यह पाक्षिक पत्रिका ने न सिर्फ़ जनता और समाज को अपने उद्देश्यपूर्ण पत्रकारिता से प्रभावित किया है, बल्कि समाज में अलख जगाकर विकास के पायदान पर पिछड़ चुके लोगों की आवाज़ बनकर सरकार और सत्ता के सामने सवाल भी खड़ा किया है। इस पत्रिका की यही ख़ासियत रही है कि जनता से जुड़े मसलों पर सवालों की बौछार करती है। सवालों की यही बौछार ने कई दफ़ा सत्ता को विचलित किया और कई बार परेशान भी। लेकिन जनता की अपेक्षा पर खरी दूसरा मत कभी पीछे हटने को तैयार नहीं हो सकी। पत्रिका का मिजाज़ और इसके संपादक ए आर आज़ाद की समाज और जनता के प्रति संजीदगी और जनता के प्रेम का ही फल है कि यह पत्रिका लगातार प्रकाशित होती जा रही है। आज के दौर में जहां पत्रिकाएं एक-एक कर बंद होती जा रही हैं, वहीं दूसरा मत सीना ताने खड़ी है। और जनता के सवालों को उठाकर सरकार को घेरती रही है।
दूसरा मत का उद्देश्य रिवाज़ से हटकर एक अलग प्रयास की तरह रहा है। जिसमें समाचारों की संवेदना और दिखता रहा सत्ता और समाज का असली चेहरा और उसकी अंतर्कथा। पत्रिका की यही पहचान इसकी विशेषता रही और सबको लुभाती भी रही। उम्मीद की जाती है कि दूसरा मत इसी तरह से अपने पत्रकारीय धर्म को निभाती रहेगी।
दूसरा मत समाचारों को बिना लाग-लपेट के संजीदगी और साहस से रखने की कोशिश है। यह सिंहासनी पत्रकारिता से अलग एक लोकवादी प्रयास है, जिसमें आपको बताया जाता है घटना के पीछे की हक़ीक़त।
दूसरा मत देश-दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक हलचल पर बेबाक नज़र रखने की कोशिश है। और अपने बीस वर्षों में यह पत्रिका निरंतर इस दिशा में आगे बढ़ती रही है।
बिहार ऐसी उर्बर भूमि ह,ै जिससे हिंदी पत्रकारिता को संजीवनी मिलती है। यहीं बिकती है हिंदी की सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाएं। दरअसल बिहार के अर्थतंत्र पर ही टिका है हिंदी पत्रकारिता का आधार। यह खेद की बात है कि इस धरती से कोई भी ऐसी पत्रिका नहीं निकली, जिसका व्यापक जनाधार हो और जो विपुल जन-आंकांक्षाओं का मंच हो। लेकिन पिछले 20 सालों से दूसरा मत सार्थक और महत्वाकांक्षी प्रयास करती रही है। इस प्रयास में इसे सफलता भी मिली है। और पिछले दो दशकों से इस पत्रिका ने बिहार में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है। दूसरा मत एक राष्ट्रीय पत्रिका है लेकिन इसकी पकड़ बिहार में सबसे ज़्यादा है। बिहारी समाज और राजनीति में इस पत्रिका की पहचान अलग तरह की है। जहां एक तरफ़ आज के दौर में पत्रिका दबाव की वजह से अपने पथ से विचलित होते जा रही है, वहीं दूसरा मत जनता के सरोकारों पर खूंटा गाड़कर खड़ी है। और विकास के पथ पर अग्रसर है।
दूसरा मत के हर पन्ने पर सुलगते विचारों का शोला है। यह पत्रिका दब गई ख़बरों का दस्तावेज़ है और इस पत्रिका में केवल ख़बर नहीं समाज और राजनीति की अंतर्कथा भी है। यह पत्रिका अपने कम संसाधन में ही हर अंक में सच्चाई पर पड़े परदे को हटाकर मामले की मुकम्मल तस्वीर आपके सामने पेश करती रही है। अभिव्यक्ति के नए अंदाज़ और ख़बरों को आमजन तक पहुंचाने का सलीक़ा और दबे कुचले लोगों को प्रखर स्वर प्रदान करने का जो प्रयास दूसरा मत ने दो दशक पहले शुरू किया था, आगे भी जारी रहेगा। यह अभियान आगे भी चलता रहे, इसमें आपकी भागीदारी जरुरी है। आपके प्यार के बग़ैर कुछ भी संभव नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)