77वें स्वधीनता दिवस पर आम व खास जनों के उदगार

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एस आर आज़मी

 

जीडी कॉलेज बेगूसराय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कमलेश कुमार ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि जब देश आजाद हुआ था तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राजनीति का अर्थ समझाया था, जिसमें राज कम और नीतियां ज्यादा थीं। लेकिन इसके उलट वर्तमान समय के राजनीति में राज ज्यादा और नीतियां कम हो चुकी हैं।

 

यह गंभीर चिंतन का विषय है। आज के समय में प्रजातांत्रिक देश भारत की साख, धाक और धमक वैश्विक क्षितिज पर काफी बढ़ चुकी है। देश के भीतर शिक्षा स्वास्थ्य और विज्ञान के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन देखा जा सकता है। देश में पहले की तुलना में मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में नई नीतियां लाकर इसे काफी गुणवत्तापूर्ण बनाया गया है। विज्ञान के क्षेत्र में कई विकासशील कदमों को बढ़ाया गया है। सामरिक दृष्टिकोण से फाइटर विमान और युद्धपोत पनडुब्बी का निर्माण भारत में हुआ है, जिसकी मांग विदेशों में भी हो रही है। इसरो के वैज्ञानिकों का चमत्कार यह है कि अब भारत का रॉकेट चांद की दहलीज पर कदम रख दिया है। देश में प्रगति के कई आयाम मिल के पत्थर साबित हुए, वहीं दूसरी ओर किसान और नौजवान को सहेजने की जरूरत है। मोटे अनाज का उत्पादन की ओर किसानों को मुखातिब करना और बेरोजगार नौजवानों को स्वनियोजन की ओर प्रेरित करना भी केंद्र्रीय सरकार ने अपना लक्ष्य बनाया है। केंद्र्र की मोदी सरकार ने सैकड़ो ऐसे पैकेज की घोषणाएं की हैं, जो समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है। देश का निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ना कोई मामूली बात नहीं है। विश्व स्तर की अर्थव्यवस्था में भारत देश का पांचवा स्तर पर आना भी प्रगति पथ का सूचक है। भारत में विकास ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह आने वाले कल में बेहतरी का प्रतीक बनेगी।

 दून पब्लिक स्कूल रमजानपुर के प्राचार्य जी सिंह का मानना है कि गणतांत्रिक देश भारत में बेहतरी और विकास के कई काम हुए हैं। और कई संभावनाएं भी बनती जा रही है। देश ने डिजिटलाइजेशन की ओर प्रभावकारी कदम बढ़ाया है। विकास का वर्तमान स्वरूप जो सामने है, उसमें पूर्ववर्ती सरकार की भी बड़े योगदान रहे हैं।

बीते शताब्दी के आठवें दशक में अगर संचार  क्रांति और 21वीं शताब्दी की बात ना होती तो हम इस मोड़ पर नहीं पहुंच पाते। उस वक्त का बीजारोपण अभी फल दे रहा है। देश के भीतर आईटी के क्षेत्र में किया गया प्रभावकारी कार्य अब विदेशों में भी गूंजने लगी है। यूरोपीय देश हो या फिर अमेरिका सभी देशों में भारत के सॉफ्टवेयर सुपर पावर की सराहना की जा रही है। देश को विकास के क्षेत्र में आगे भी विकसित करने की जरूरत है। चिंता तो तब होती है, जब वोट बैंक की राजनीति के लिए जातिगत और सांप्रदायिक उन्माद फैलाकर अमन चैन शांति को भंग की जाती है। राष्ट्र को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सबों को लेनी होगी, तभी भारत खुशहाली के साथ आगे बढ़ेगा।

 बेगूसराय सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के वाइस चेयरमैन कमल किशोर सिंह का कहना है कि देश को आजादी 76 साल पहले प्राप्त हो चुकी,लेकिन बुनियादी समस्याओं से हमें आजादी आज तक नहीं मिल पाई है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जिस स्वर्णिम भारत की कल्पना की थी, वह कोरा साबित हुआ है। या यूं कहें कि वर्तमान हालात में बापू का सपना चकनाचूर कर दिया गया है। देश के भीतर चारों ओर अशांति और अराजकता का माहौल है।

देश का हर एक नागरिक भय और असुरक्षा के माहौल में जी रहा है। स्वास्थ्य सेवा की हालत तो यह है कि जो दवा विदेशों में भी रिजेक्ट कर दी गई थी, उसका चलन भारत में धड़ल्ले से किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं होना देश को पीछे धकेल रही है। बेरोजगारी की जितनी लंबी तादाद है, उसके लिए रोजगार सृजन करना सरकार के गले की हड्डी बनी हुई है। बेरोजगार युवा सरकारी ऋण लेकर कोई अपना उद्योग खड़ा करना चाहे तो उसे सही समय पर ऋण उपलब्ध नहीं होता है। और वह चाह कर भी अपना धंधा नहीं कर पाता है। विकास की लंबी चौड़ी बातें की जाती है, पर हकीकत में वो धरातल पर उतर नहीं पाता है।

 ईश्वर अस्पताल के निदेशक डॉक्टर संजय कुमार ने अपनी राय देते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत भारत की आजादी का 77 साल पूरा होना गर्व की बात है। देश के पैमाने पर विकास के बहुत सारे काम संपन्न किए गए हैं। सबसे बड़ा काम सड़क और पुल का निर्माण है, इससे आवागमन की संसाधन समृद्ध हुआ है। बिजली के मामले में अपना देश आत्मनिर्भर हो चुका है। इसका पूरा लाभ रेल परिचालन तथा जमीन की सिंचाई को सदृश करने में मिला है। हमारे यहां इतनी ऊर्जा पैदा की गई है कि हम इसे निर्यात करने की स्थिति में आ चुके हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रो में भी कई बेहतरीन कार्य हुए हैं।

जनता की मांग के अनुरूप अस्पताल व मेडिकल कॉलेज की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। शिक्षा के क्षेत्र में एक कमी महसूस की जा रही है, वो है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा। कॉलेज नामांकन लेने, परीक्षा फॉर्म भरवाने, और डिग्रियां बांटने का केंद्र बन गया है। देश की सबसे बड़ी समस्या जो एटम बम बनकर सामने खड़ा है- वह है बेरोजगारी। इसको लेकर हर और त्राहिमाम है। देश में सेना के लिए हथियार, लड़ाकू विमान और युद्ध को बनाने की शानदार सफलता मिली है। इसमें हमारी आंतरिक और वाहय सुरक्षा काफी मजबूत हुई है। हम सुनहरे कल की ओर बढ़ते जा रहे हैं, यह हमारी बड़ी सफलता है।

 शहर के पावर रोड स्थित आर्क इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के प्राचार्य संजय ठाकुर का कहना है कि आजादी प्राप्ति के 77 साल में भारत ने काफी तरक्की की है। शिक्षा स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी कल कारखाने और आवागमन को यातायात के क्षेत्र में काफी कुछ काम हुआ है, जो मिसाल है।

दूसरी ओर अभावग्रस्त स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के भीतर करोड़ों नौजवान ऐसे हैं, जो शिक्षा पाकर भी बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। हर हाथ को रोजगार देना केंद्रीय सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता का घोर अभाव देखा जा रहा है। रोजगारपरक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही देश को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। सही मायने में तभी आजाद भारत का संकल्प तभी पूरा होगा।

 देश रत्न पब्लिक स्कूल के निदेशक पंडित नवल किशोर झा ने कहा कि आजादी प्राप्ति के 76 साल बाद भी देश  नाजुक स्थिति के दौर से गुजर रहा है। देश की हालत तो यह है कि अमीर और भी अमीर बनते जा रहे हैं जबकि गरीबों की गरीबी निचले पायदान पर खिसक रही है। अर्थव्यवस्था की असमानता से हर तबका तबाह है। तो आजादी का सही मायने में मर्म किया है। जहां तक देश के खुशहाली की बात है तो आवागमन की सुविधा में काफी प्रगति हुई है।

शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल कॉलेज की संख्या बढ़ी है। और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अस्पतालों की हालत में अपेक्षित सुधार हुआ है। लेकिन देश के भीतर करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं हो तो फिर यह कैसी आजादी? बाल मजदूरी, यौन उत्पीड़न तथा जातीय व सांप्रदायिक हिंसा का तांडव, आजाद देश को कलंकित करता है। हर वर्ग की समानता सद्भाव और विकास पथ पर अग्रसर होना ही आजाद भारत के लिए प्रगतिशील कदम माना जाएगा।

 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सह अधिवक्ता मिथिलेश कुमार सिंह का मानना है कि आजादी के 76 साल बाद भी देश बेहाल है। आम जनता बुनियादी समस्याओं से जूझ रही है। महंगाई चरम सीमा को पार कर गई है। आजादी प्राप्ति के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेंद्र्र प्रसाद, सरदार पटेल, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे महापुरुषों ने जिस अंदाज में आजाद भारत को संवारने का काम शुरू किया था, वह आज ध्वस्त होता दिख रहा है।

देश के नौजवान, किसान, और सरहद की रखवाली करने वाले जवान के मंसूबे भी टूटते चले जा रहे हैं। देश के कई भागों में धार्मिक उन्माद फैलाकर सांप्रदायिकता की आग में झोंका जा रहा है। केंद्र्र की मौजूदा सरकार की जो व्यवस्था है, उसमें आम जनता की पूरी तबाही लिखी जा रही है। देश की हालत अगर सुधर जाए तो निश्चित रूप से आजाद भारत की प्रतिष्ठा में चार चांद लग जाएगा।

 स्टेशन रोड निवासी वरिष्ठ नागरिक अनिल कुमार वर्मा ने कहा कि आजादी के 76 साल में भारत को जितनी प्रगति करनी चाहिए थी, वह नहीं हो सकी। देश में विकास के रास्ते बनते और बिगड़ते गए। जनसंख्या में भारी वृद्धि देश के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो रहा है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी का जो सपना भारत के लिए बना था, वह पूर्ण रूपेण पूरा नहीं होता दिख रहा है ।

देश में बेरोजगारों की लंबी फौज रोजगार पाने के लिए आज भी भटक रही है। देश का कोई ना कोई कोना अनेक तरह की हिंसा की चपेट में फंसकर सिसक रहा है। देश की हर नागरिकों को गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है।

 जिले के डंडारी प्रखंड अंतर्गत करमाला गांव निवासी व सामाजिक कार्यकर्ता शंकर सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की आजादी बेमिसाल है। इस आजादी के पीछे अनगिनत शुरवीरों की संघर्ष गाथा और कुबार्नी छिपी है। 1950 में गणतंत्र देश होने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और तृतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कई पंचवर्षीय योजनाओं के साथ देश का उत्तरोत्तर विकास हुआ। शास्त्रीजी ने जय जवान और जय किसान का नारा देकर राष्ट्र को काफी समृद्ध किया। इंदिरा जी के समय में गरीबी उन्मूलन की दिशा में कारगर कदम उठाया गया था।

भाजपा की बाजपेयी सरकार ने भी विकास के कई रास्ते खुले। आज नरेंद्र्र मोदी की सरकार है, और भारत की पहुंच सभी क्षेत्रों में बढ़ाई जा रही है। देश का सबसे बड़ा मसला किसान नौजवान और मजदूरों के पलायन का है। रोजगार के अभाव में शिक्षित युवा और प्रशिक्षित श्रमिक विदेशों में पलायन कर रहे हैं। किसानों की फसल पर बिचौलियों का वर्चस्व कायम है। दुखद पहलू तो यह है कि खेती करने वाले किसानों की संख्या घट रही है, जबकि भारत कृषि प्रधान देश है। इन मसलो पर विचार मंथन के साथ अनिवार्य कदम उठाने की आवश्यकता है।

 रिफायनरी टाउनशिप निवासिनी महिला कार्यकर्ता सायमा जफर ने आजाद भारत की मौजूदा परिस्थितियों का खुलासा करते हुए कहा कि सड़क से लेकर संसद तक विकास की चर्चा होती है। चंद्रमा की सतह को छूने वाला चंद्रयान-तीन की सफलता देश के लिए गर्व की बात है, वहीं विभिन्न राज्यों में हत्या, बलात्कार, यौन शोषण, उन्मादी हिंसा, और घपले-घोटाले को देखकर देशवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है। एक और सत्ता पक्ष खुद अपनी पीठ थपथपा कर वाहवाही का श्रेय लेती है। और घटित घटनाओं के लिए विपक्षी दलों के माथे ठीकरा फोड़ती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर जिम्मेदार कौन है? प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया भी सत्ता पक्ष की चासनी में घोलकर उसी की मनसा के अनुरूप खबर परोसतता है। प्रेस जगत की यह हालत भी अत्यधिक चिंता का विषय है। मेरी समझ में यह बात नहीं आती है कि आजाद भारत में लोग अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं कबूल करते हैं? आजादी के लिए संघर्ष करने वाले महापुरुषों ने जिस बेहतर भारत की कल्पना की थी, उसका नजारा इतना खराब क्यों हो रहा है? स्वास्थ्य नीति, शासन व प्रशासन घोषणाओं पर अमल हर हाथ को रोजगार और हर पेट को रोटी की अपेक्षा देश का हर नागरिक व्याकुलता से कर रहा है।

 बेगूसराय में पत्रकारिता करने वाली रिमझिम कुमारी का मानना है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 76 साल में भारत ने कई क्षेत्रों में काफी प्रगति की है। जनता को सबसे बड़ा कष्ट आवागमन का था, जिसमें मौजूदा सरकार ने सड़कों का जाल बिछा दिया। रेल परिचालन में सैकड़ों द्रुतगामी गाड़ियां खुली, जिससे लोगों की सुविधाएं बढ़ी। भारत सरकार की विदेश नीति बेहतरीन है जोविदेशों में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। सरकार युवाओं को रोजगार नहीं देकर स्वरोजगार की ओर प्रेरित करती है, ये मुनासिब नहीं है।

महिला सशक्तिकरण का दावा भी खोखला साबित हुआ है। महिला पर अत्याचार की घटनाएं बेतहाशा बढ़ी हैं। एक और बेटी पढ़ाओ का नारा दिया जा रहा है तो वही गरीब बेटियों को महंगाई के कारण पढ़ाई से वंचित होना पड़ता है। शिक्षण संस्थानों की ऊंची फीस ने छात्राओं को आगे बढ़ने का रास्ता रोका है। सवाल है कि जब आधी आबादी देश में सुरक्षित ही नहीं तो फिर आजादी का मतलब क्या है?

 सदर प्रखंड के मोहनपुर गांव निवासी वह सामाजिक कार्यकर्ता बंगाली सिंह का कहना है कि आजादी के 76 साल में काफी कुछ परिवर्तन देखने को मिला। भारत को अपने पड़ोसी मुल्क चीन के साथ एक बार और पाकिस्तान के साथ तीन बार युद्ध भी लड़ना पड़ा।

सातवें दशक के प्रारंभ में श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तो कई ऐतिहासिक कदम उठाए गए। बैंकों का राष्ट्रीयकरण खदानों का राष्ट्रीयकरण, बांग्लादेश का उदय सहित कई काम देश में हुए। वैसे प्रधानमंत्री, जिन्हें काम करने का पूरा समय मिला तो अच्छा काम हुआ। 2014  मे आई नरेंद्र्र मोदी की केंद्र्रीय सरकार में विकास की लंबी चौड़ी यात्रा आरंभ हुई, जो अब तक चल रही है। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि 76 साल की आजादी संतोषप्रद है।

 जे के हाई स्कूल बेगूसराय के अवकाश प्राप्त शिक्षक श्यामनंदन सिंह का मानना है कि आजादी प्राप्ति के बाद भारत को सजाने में और विकास पथ पर लाने में काफी समय गुजर गया। हर एक प्रधानमंत्री के कार्यकाल में समस्याएं आती गईं, और उसके निदान के रास्ते बनते गए। आजादी के बाद जो केंद्र्रीय सरकार का गठन हुआ, उसमें शामिल लोगों ने अपनी कर्मठता व ईमानदारी से देश को आगे ले जाने का काम किया।

कुछ प्रधानमंत्री का कार्यकाल अल्प समय के लिए अल्पमत में फंसा रहा, उस वक्त  देश की हालत नाजुक होती चली गई। 76 साल के पायदान पर अगर गौर करें तो वर्तमान केंद्र्रीय सरकार ने विकास-कार्यों की झड़ी लगा दी है। देश का कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं बचा, जहां परिवर्तन के साथ काम नहीं हुए हो। आजाद भारत विश्व स्तर पर अपने विकास का परचम लहरा रहा है, यह सबसे बड़ी संतोषजनक बात है।

 जिला के रामदीरी गांव के अंतर्गत महाजी टोला निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षक राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ डीलो सिंह की नजर में भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था में चल रहा है यही सबसे बड़ी आजादी की खासियत है। आजादी पाने के 76 साल पूरा हो चुका है। और देश सड़क से लेकर आसमान तक की उड़ान भर रहा है।

आजादी पाने के बाद देश के पटल पर जितने कल कारखाने लगे और लोगों को रोजगार मिला था वह बेमिसाल प्रस्तुति थी। आज की सरकार किसी बड़े प्रोजेक्ट को लगाने में हिचक रही है। युवाओं की बेरोजगारी, मजदूरों का पलायन, किसानों का दोहन और गरीबों का शोषण लगातार जारी है। इससे अगर मुक्ति मिल जाए तो लोकतांत्रिक देश भारत अपनी मजबूत पहचान बनाने में सक्षम होगा।

 डंडारी प्रखंड के कटरमाला निवासी किसान परमानंद सिंह उर्फ नागा जी साफगोई से स्वीकार करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 76 साल पूरा होने के बाद भी भारत के किसानों की दारुण दशा में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भी देश के किसानों की माली हालत दयनीय है। हालांकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में भी किसानों की दशा सुधारने के लिए अपेक्षित कदम उठाए गए हैं।

वर्तमान मोदी सरकार भी कई तरह का पैकेज लेकर आई है। यूं तो देश में जन-समस्याओं के निराकरण के लिए मौजूदा केद्र्रीय सरकार ने भी कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। खुशी का तो विषय यह है कि हम आजाद भारत में है और उन्मुक्त सांस ले रहे हैं, स्वाधीन सपना सजा रहे हैं।

 निराला नगर स्थित पूर्व प्रधानाध्यापक व वरिष्ठ कवि कस्तूरी झा कोकील का मानना है कि पराधीन भारत और स्वाधीन भारत में आसमान जमीन का अंतर है।  दुश्मनों और किसी और के भी आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देने में आज देश सक्षम है। आज हम स्वयं युद्ध आयुधों का निर्माण करते हैं। हम परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र में शामिल हैं।  एक सौ चालीस करोड़ की आवादी वाला हमारा उप महादेश अनेक मामले में आत्मनिर्भर है। कतिपय देशों के लिए निर्यातक भी। गरीबी का ग्राफ तो घटा है। परंतु निमुहें गरीबों की सुधि लेने वाला खोजने पर भी नहीं मिलता। इसी का का मलाल है। छोटे बड़े शहरों का विकास तो हुआ परन्तु गांव का अपेक्षित उन्नति नहीं हो सका। जबकि भारत गांवों का देश है। कल-कारखाने शहरों में स्थापित हुए पर गांवों में कुटीर उद्दोग अभी भी नदारत है।

शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई, किंतु, सर्वसाधारण अभी भी वंचित हैं। तकनीकी शिक्षा का घोर अभाव है। सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए एक सुदृढ़ शिक्षानीति की आवश्यकता है। उक्त अवधि में हमारी बेटियां घर के घेरे से बाहर निकली हैं। हर क्षेत्र में नाम रौशन कर रही हैं। यह गौरव की बात है। फिर भी उनकी आंतरिक पीड़ा को समझने और उसे दूर करने की महती आवश्यकता है। मुठ्ठीभर लोगों के अमानवीय व्यवहार से हमारा सिर नीचा न हो इसका निष्पक्ष उपाय ढूंढना होगा।  मेरी दृष्टि में माननीय पण्डित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गांधी और मानवतावादी अजेय प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी जी शाश्वत धरोहर हैं।