कविता
रमज़ान
ए आर आज़ाद
मेरे
शिद्दत भरे प्यासे होंठ
जेठ
की दोपहरी में
रेगिस्तान की तरह तप रहे हैं
आंखों में आब उतर आया है
नज़रों में
भूख की भट्टी में
तपते बेसहारा लोगों की सूरत
जस की तस बसी हुई है
जी चाहता है
देश के लिए कुछ दुआ मांग लूं
सोचता हूं
क्या मांगू
अमन मांगू
अमान मांगू
देश की सलामती मांगू
या
देश फिर से
सोने की चिड़िया हो जाए
ये मांगू
देश विश्व गुरु हो जाए
ये मांगू
या देश इल्म का केंद्र बन जाए
ये मांगू
देश में कभी दंगा न हो
ये मांगू
या
देश फिर से
गंगा-जमुनी साझा संस्कृति का द्योतक बन जाए
ये मांगू
देश
दुनिया को फतह कर ले
ये मांगू
या
देश से द्वेष का सर्वनाश हो जाए
ये मांगू
देश में अच्छे रहनुमा आ जाएं
ये मांगू
या
देश के रहनुमा अच्छे हो जाएं
ये मांगू
दरअसल
देश को कुछ देना चाहता हूं
और
ईमान रहते हुए
आज देश को कुछ दिया नहीं जा सकता
सोचता हूं
देश को दुआ दे दूं
सूखे और प्यासे होंठ,
भूखा पेट
आंखों में सुरमा बना ईमान
और
दुआ के लिए उठने वाले हाथ
जब
दिल से औरों के लिए दुआ करते हैं
तो
कहा जाता है कि वो दुआ
कभी अधूरी नहीं रहती
कम से कम रमज़ान में
मांगी गई वतन के लिए दुआ
देश को सलामती की तरफ ले जाती है
और
दुआ करने वालों को ईमान की तरफ़
इसलिए
तो
क़ुरान में कहा गया है-
हिब्बुल वतनी निस्फुल ईमान
यानी
देशप्रेम ईमान की निशानी है
हम ईमान वाले बनें
देश की बेहतरी के लिए
बेहतरीन दुआ करें….