असम में बदरुद्दीन अजमल फैक्टर कितना करेगा काम?

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ए आर आज़ाद

दरअसल असम में कांग्रेस के नए गठबंधन से बीजेपी इसलिए भी परेशान है क्योंकि बदरुद्दीन अजमल का एक तरफ कांग्रेस से गठबंधन हो गया है तो दूसरी तरफ बीजेपी के सहयोगी बोडो लैंड पीपुल्स फ्रंट उनसे नाता तोड़कर इस चुनाव में कांग्रेस का हाथ मजबूत कर रही है।

असम में बदरुद्दीन अजमल और बोडो लैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ जाने से बीजेपी हक्का-बक्का है। दरअसल दोनों पार्टियों की अपनी एक छवि है। बदरुद्दीन अजमल जमीअत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना असद मदनी की खोेज हैं। बदरुद्दीन अजमल लंबे समय से जमीयत उलेमा ए हिंद की असम यूनिट से जुड़े रहे हैं। असम की सरकार में उनका दबदबा रहा है। लेकिन तरुण गोगोई से उनका रिश्ता लंबा नहीं नीभ सका। यही वजह रही कि एक बार जब असम की गोवाहाटी में जमीयत की एक सभा हो रही तो उस सभा में मौजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के सामने मौलाना असद मदनी ने कांग्रेस  सरकार को गिराने की धमकी दे दी। इस घटना से सारे लोग दंग रह गए।

दरअसल मौलाना असद मदनी के मौजूदा असम की कांग्रेस सरकार के गिराने की धमकी असम में एक नई पार्टी के आगाज का अंदाज था। और यह अंदाज छह महीने के बाद ही 2005 में तब सबके सामने आ गया, जब बदरुद्दीन अजमल ने ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक पार्टी बनाई।

असम में बंगाली मुसलमानों पर बदरुद्दीन अजमल का जादू चलता है। उन्होंने भी मुसलमानों के उस नब्ज को पकड़ लिया है जिस हिंदू नब्ज को पकड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने हिंदू वोटरों का धुव्रीकरण कर अपनी सियासत को चमकाने के माहिर माने जाते हैं। बदरुद्दीन अजमल पर भी बंगाली मुसलमानों के धुव्रीकरण करने के आरोप लगते रहे हैं। वे भी मुसलमानों के वोट लेने के लिए मस्जिदों का सहारा लेते हैं। अपनी संसदीय क्षेत्र धुबरी की एक रैली में बंगाली मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर बीजेपी केंद्र की सत्ता में लौटती है तो मस्जिदों को जमींदोज कर देगी। उन्होंने दावा किया था कि भाजपा के पास 3500 मस्जिदों की एक फेहरिस्त है।

बदरुद्दीन अजमल एक राजनीतिक नेता से ज्यादा बेशुमार दौलत के लिए जाने जाते हैं। इनकी दौलत में इत्र की खुशबू है। दुनिया भर में इनके इत्र के कारोबार फैले हुए हैं। दरअसल इनके पिता खेती करते-करते इत्र बनाने वाले अगर के पेड़ का कारोबार करने लगे। और धीरे-धीरे इस कारोबार में उन्हें कामयाबी मिलती चली गई। फिर उन्होंने मुंबई को अपना आशियाना बना लिया और इस तरह से बदरुद्दीन अजमल के पिता अजमल अली से अजमल सेठ कहलाने लगे। अजमल परफ्यूम के नाम से लंदन से लेकर अमेरिका तक में शोरूम है। खाड़ी के लगभग तमाम देशों में इनका इत्र कारोबार धूम मचा रहा है। इत्र बनाना और बेचना बदरुद्दीन अजमल का खानदानी पेशा है। आज अपने व्यापार को फैलाते हुए कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, रियल एस्टेट एवं हेल्थ सेक्टर तक में अपना पांव पसार लिया है।

जब इतना लंबा कारोबार है तो जाहिर हैे कि दर्जनों कॉलेज होंगे, मदरसे होंगे, यतीम खाना होंगे और ये सब काम बदरुद्दीन अजमल ने असम में किए हैं।

बदरुद्दीन अजमल विवादों से बेदाग नहीं रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान एक पत्रकार से बुरी तरह उलझ गए और आपा खोते हुए कहा-‘‘चले जाओ, मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा। मेरे खिलाफ मामला दर्ज करो। अदालत में मेरे लोग हैं। आप खत्म हो जाओगे।’’

इस घटना से बदरुद्दीन अजमल की काफी किरकिरी हुई। जग हंसाई के बाद मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहते हुए अपने कहे हुए के लिए माफी मांग ली।

उन्हें एक और विवादित बयान पर माफी मांगनी पड़ी थी। जब तीन तलाक बिल संसद में पास हो रहा था तो उन्होंने इस बिल का विरोध करते हुए मुसलमानों के खास मसलक को आतंकवादी तक कह दिया था। उनके इस तरह के कई बयान विवादों को जन्म देते रहे। उनका विवादित  बयान और माफी दोनों साथ-साथ चलता रहा।

2019 के लोकसभा चुनाव में बदरुद्दीन अजमल ने अपनी लोकसभा सीट बचा ली थी। 2016 के विधानसभा चुनाव  में उनकी पार्टी ने 13 सीटें जीती थीं। और 2011 के विधानसभा चुनाव में उनके 18 विधायक चुनाव जीतकर आए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ने असम की 14 लोकसभा सीटों में से तीन सीटों पर कब्जा जमा लिया था। अब देखना है कि 2021 के असम विधानसभा चुनाव में अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ पाते हैं कि नहीं। बदरुद्दीन अजमल को सीधे तौर पर राजनीति में आए हुए तकरीबन 16 साल हो गए हैं। लेकिन इनकी पूरी की पूरी राजनीति असम के बंगाली मुसलमानों पर ही केंद्रित होकर रह गई है। इन्हें अपने कारोबार से सबक लेने की जरूरत है। जिस तरह इन्होंने इत्र के कारोबार के घेरे को तोड़कर कपड़ा, हेल्थ, चमड़ा और रियल एस्टेट में छलांग लगाई। इसी तरह उन्हें मसलक की दीवारों को लांघकर सभी मुसलमानों के लिए काम करना चाहिए। असम की सरहद को लांघना चाहिए  और दूसरे सूबों तक अपने पैर पसारना चाहिए। इसलिए कि हजारों साल बाद कोई बदरुद्दीन अजमल पैदा होता है, जो कारोबार और सियासत को एक साथ साधता है।