कुछ न तो कुछ करना होगा सुप्रीम कोर्ट को

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सरकार तो हाथ पर हाथ रखकर बैठी है

ए आर आज़ाद

भारत में कोरोना की दूसरी लहर की तबाही संगीन है। और इंतज़ाम क़ाबिल ए मज़म्मत। यही वजह है कि कोरोना को लेकर सरकार गंभीरता का सिर्फ नाटक कर रही है और जनता मौत के मुंह में समाती जा रही है। देश और प्रांत के किसी भी सरकार में वह संवेदनशीलता नहीं रही जिसकी वजह से इस तरह की कुव्यवस्था सरेआम दिख रही है। सरकारी लापरवाही का यह मंजर अदालत की आंखों को भी अचंभित करता है। यही वजह है कि मरते हुए अपने लोगों को देखकर अदालत का भी दिल पसीज जा रहा है लेकिन केंद्र सरकार और सूबे की सरकारें गाल बजाने और बयान देने के आलावा कुछ भी नहीं कर पा रही है। दरअसल इन सभी सरकारों ने महज वोटतंत्र को ही लोकतंत्र का हिस्सा समझ लिया है। चुनाव को राष्ट्रीय पर्व और राष्ट्रीय धर्म मान लिया है। और इस धर्म के मुताबिक वह अपनी सियासत पर केंद्रित होकर रह गई है। किसी भी राजनीतिक दलों की आंखों में अब पानी नहीं बचा है। सब के सब हमाम में नंगे हैं। किन्हीं के पास नैतिकता नहीं बची है। किन्हीं में हया व शर्म नाम की चीज़ नहीं रही है। हत्ता के किन्हीं में अब संवेदना भी नहीं बची है और जनता और जनमानस की भलाई के लिए कोई सोच भी नहीं रही है। यही वजह है कि इस देश में अपार धन और प्राकृतिक और नैसर्गिक संसाधन होने के बावजूद लोगों को देने के नाम पर सरकार के दोनों हाथ खाली है।

 

अब सवाल उठना लाजमी है कि जब सरकार कुछ करने की स्थिति में नहीं है। और हाईकोर्ट व देश की सुप्रीम कोर्ट के बार-बार ताक़ीद करने के बावजूद देश की सरकारें अदालत में झूठे हलफनामा देकर जनता के साथ धोखा करने पर उतारू है तो फिर सुप्रीम कोर्ट की भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं कि देश में हेल्थ इमरजेंसी लगाकर देश को सेना के हवाले कर दे। यानी पूरा देश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दे। और सुप्रीम कोर्ट के लिए यह करना मुमकिन नहीं है तो फिर वह देश को भगवान भरोसे छोड़ दे। जिस भगवान ने मनुष्य को पैदा किया है, वही भगवान इस विषम परिस्थितियों से भी उसे उबारेंगा।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट को जल्द से जल्द किसी एक नतीजे पर पहुंचना होगा। सुप्रीम कोर्ट को यह समझना होगा कि उसे या तो सरकार के रवैए में बदलाव लाने की कोशिश करनी होगी। सरकारों को दंडित करना होगा। सरकार को जनमानस की ज़रूरतों पर खरा उतरना होगा। और अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को करने के लिए आतुर नहीं दिखती हो तो सुप्रीम कोर्ट के पास जो भी विकल्प बचता है, उसका इस्तेमाल करते हुए देश में राष्ट्रपति शासन लागू करने का बिगुल बजा देना चाहिए क्योंकि मौजूदा केंद्र सरकार समस्याओं को समझने में अपनी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। उसकी दिलचस्पी राज्यों पर राज्य जीतने में ही है और जो राज्य उनके हाथ से निकलते जा रहे हैं उनपर बदला लेने औऱ वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने की मुहिम चलाती दिखती है। तब ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को भी चाहिए कि पूरे देश में ही राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए और जब देश इस हेल्थ इमरजेंसी के दरवाजे पर पहुंच चुकी है तो फिर देश की सेना के जरिए इस देश के लोगों को बचाने की एक कोशिश की जानी चाहिए। और तब भी यह कोशिश फलीभूत नहीं होती है तो देश के सभी मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों और गुरुद्वारों को जनता के लिए खोल देना चाहिए। ताकि जनता की जहां उनकी अपनी आस्था है, वहां जाकर शीश नवाकर ईश्वर से अल्लाह से बाहेगुरु से पूजा-इबादत, अर्चना कर इस बीमारी और महामारी से बचाव का मार्ग ढूंढ सकें। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट जरूर एक बार इस पर सोचेगी।