प्रियंका और कांग्रेस के हाथ में सत्ता की चाभी!
यूपी में त्रिशंकु सरकार की आहट !
लेकिन वहां की आम जनता के बीच जिस तरह का आक्रोश, बदलाव की बेचैनी और बेरोजगारी की चुभन महंगाई डायन बनकर उसके अरमानों को निगल रही थी, तो सरकार के प्रति हृदय में बसे आक्रोश पर ठप्पा लगने की प्रतिक्रिया आखिर इतने बड़े मीडिया घराने की आंखों से ओझल कैसे होते रहे? इन मीडिया ने सरकार के साथ होकर जन आकांक्षाओं की बलि पूरे सात चरणों तक क्यों दी? जाहिर सी बात है कि 10 मार्च, 2022 की शाम इन मीडिया को भी सोचने पर मजबूर कर देगी कि मीडिया का काम सत्ता के साथ रहना है या जनता के सवालों को लेकर सरकार से जवाब तलब करना है?
ए आर आज़ाद
देश के पांच राज्यों के चुनावों ने जनादेश की मंजिल के करीब पहुंच कर लोगों के दिल में एक हलचल पैदा कर दी है। नतीजे में वोट देने वाले और उस सूबे पर नजर गड़ाए हुए लोगों की उत्सुकता देखते ही रही है। उनकी बेताबी घंटों और मिनट के साथ पराकाष्ठा पर है। देश और दुनिया की पूरी नजर यूपी यानी उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। और यहां के विधानसभा सीटों की संख्या भी देश के विभिन्न सूबों से पौने दो से लेकर छह गुणा तक ज्यादा है।
इसलिए सबसे पहले हम बात इस चुनाव में उत्तर प्रदेश की करेंगे। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सत्ता थी। योगी और बीजेपी ने उत्तर प्रदेश को कहां और किस मोड़ पर इन पांच वर्षों में ले गए, यह 10 मार्च, 2022 का जनादेश तय बता देगा। योगी विकास के साथ चले, जन-विश्वास के साथ चले या जनता के अरमानों के साथ छल के साथ चलें, इसका भी खुलासा 10 मार्च की शाम तक हो जाएगा। जनता को जनार्दन की संज्ञा देने वाली पार्टियां जनता के विश्वास पर कितनी खरी उतरी है, इसकी भी अग्नि-परीक्षा हो जाएगी। जब जनता किसी विशेष दलों पर विश्वास करती हैं, और वह दल अगर उस जन-मन-गण के विश्वास को अपनी चालाकी से मूर्त रूप देने की बजाय उसे किसी दूसरे रूख की तरफ मोड़कर खुद को सत्ता में बने रहने की चालाकी बार-बार करता है तो कि जन-मन का उद्वेलित होना स्वाभाविक है। और उत्तर प्रदेश की जनता मौजूदा सत्तासीन की चालाकी से कितनी उद्वेलित हुई है, इसका भी इम्तहान मौजूदा सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ का है। योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ यह बीजेपी के सर्वमान्य नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी अग्नि-परीक्षा है। इस चुनावी परीक्षा में एक दल के चार की प्रतिष्ठा दांव पर है। पहली प्रतिष्ठा नरेंद्र मोदी की दांव पर है। दूसरी प्रतिष्ठा, संघ प्रमुख मोहन भागवत की दांव पर है। तीसरी परीक्षा मौजूदा मुख्यमंत्री और यूपी के सत्तासीन योगी आदित्यनाथ की है। और चौथे शख्स और देश के गृहमंत्री अमित शाह को भी चुनावी अग्नि-परीक्षा से होकर गुजरना पड़ रहा है। उनकी प्रतिष्ठा ही नहीं उनकी विश्वसनियता भी जनता से ज्यादा उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच दांव पर है।
बहरहाल यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच फैसले लेने में थोड़ी भी देर हुई तो राष्ट्रपति शासन के इमकान से भी आप आंखें मूंद नहीं सकते हैं। जनता का फैसला दूसरा मत के आकलन के कितने करीब है, आप भी 10 मार्च को देख लें गे। फिलहाल दूसरा मत का आकलन देखिए। किस दल को कितनी सीटें मिल रही हैं।
अपवाद को छोड़कर सारा मीडिया शुरू से लेकर अब तक बीजेपी को यूपी में सत्ता दिला रहा है। योगी को यूपी में फिर से सत्तासीन पर आमदा मीडिया की आंखों पर जो बीजेपी का चश्मा लगा हुआ है, उसमें उन्हें सच दिख नहीं रहा है। यही वजह है कि उन्होंने यूपी की लड़ाई को अखिलेश बनाम योगी बनाकर यूपी की सियासत का रूख मोड़ दिया। और जो लोग ऐसे मीडिया पर विश्वास जताते रहे हैं स्वाभाविक हैं वो थोड़ा दिग्भर्मित हुए होंगे। लेकिन वहां की आम जनता के बीच जिस तरह का आक्रोश, बदलाव की बेचैनी और बेरोजगारी की चुभन महंगाई डायन बनकर उसके अरमानों को निगल रही थी, तो सरकार के प्रति हृदय में बसे आक्रोश पर ठप्पा लगने की प्रतिक्रिया आखिर इतने बड़े मीडिया घराने की आंखों से ओझल कैसे होते रहे? इन मीडिया ने सरकार के साथ होकर जन आकांक्षाओं की बलि पूरे सात चरणों तक क्यों दी? जाहिर सी बात है कि 10 मार्च, 2022 की शाम इन मीडिया को भी सोचने पर मजबूर कर देगी कि मीडिया का काम सत्ता के साथ रहना है या जनता के सवालों को लेकर सरकार से जवाब तलब करना है?
बहरहाल दूसरा मत सदा से अपनी अलग भूमिका में रहा है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी उसकी बेबाकी देश के सामने आई थी। पश्चिम बंगाल में दूसरा मत का आकलन सौ फीसदी सही निकला था। यह बड़े मीडिया घरानों और नामवर मीडिया से सौ फीसदी अलग भी था। लेकिन जनता और परिणाम दोनों दूसरा मत के साथ खड़े दिखे।
इस बार वही साहस पूरी निश्पक्षता के साथ दूसरा मत दिखा रहा है। हमारा आकलन पूरे महान मीडिया से अलग है। स्वाभाविक है कि यह हमारा आकलन जनता की आकांक्षाओं से उपजी स्थिति व परिस्थितियों का आईना है। दूसरा मत ने यूपी चुनाव के नतीजों से पूर्व अपना आकलन पेश किया है। स्वाभाविक है कि अन्य मीडिया से यह इतर है। कुल मिलाकर यूपी की सियासत में सरकार बनाने की कुंजी प्रियंका गांधी के पास होगी। जब तक प्रियंका गांधी यानी कांग्रेस किसी को अपना समर्थन नहीं देगी या किसी से नहीं लेगी, तबतक यूपी में कोई भी सरकार फ्लोर टेस्ट में फेल ही रहेगी। यानी उत्तर प्रदेश का इस बार का जनादेश त्रिशंकु होगा। दूसरा मत के मुताबिक किसी को बहुमत के आसार नहीं हैं। योगी आदित्यनाथ न तो इतने मजबूत होकर आ रहे हैं कि वो सरकार बना लें। और न ही अखिलेश को जनता ने इतना भरपूर वोट दे दिया है कि अखिलेश के सर पर यूपी के मुख्यमंत्री का ताज आसानी से आ जाए। यानी अखिलेश को कांग्रेस यानी प्रियंका गांधी का साथ देना होगा या उनका साथ लेना होगा, तभी वहां सरकार बन सकती है। योगी सत्ता में दोबारा इसलिए भी नहीं आ सकते हैं कि अभी तक वापसी का चलन यूपी में नहीं है। और यह इतिहास इतनी जल्दी बदलने वाला नहीं है। दूसरी बात मायावती को इतनी सीट नहीं आ रही है कि वो योगी आदित्यनाथ यानी बीजेपी को समर्थन दे दें या बीजेपी से समर्थन लेकर सरकार बना लें। बहरहाल यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच फैसले लेने में थोड़ी भी देर हुई तो राष्ट्रपति शासन के इमकान से भी आप आंखें मूंद नहीं सकते हैं।
जनता का फैसला दूसरा मत के आकलन के कितने करीब है, आप भी 10 मार्च को देख लेंगे। फिलहाल दूसरा मत का आकलन देखिए। किस दल को कितनी सीटें मिल रही हैं।
योगी-बीजेपी-गठबंधन 157 सीटें
कांग्रेस को 75 सीटें
बीएसपी व अन्य को 27 सीटें
समाजवादी पार्टी यानी अखिलेश यादव को 144 सीटें।
( नोटः स्वाभाविक तौर पर दस से बारह सीटों का अंतर हो सकता है)
यूपी में 202 का बहुमत है। इस आकलन के मुताबिक बीजेपी 202 के आकड़े को छूने में पूरी तरह असफल दिख रही है। हां, सरकार कांग्रेस और एसपी के सहयोग से संभव है। लेकिन दोनों के बीच पहले हम पहले हम की लड़ाई हो गई तो इसका लाभ केंद्र लेने में कोई कोताही नहीं करेगा। राष्ट्रपति शासन के अपने हथियार का प्रयोग कर कम से कम छह महीने तक अखिलेश या प्रियंका को सरकार और सत्ता के सुख से तो वंचित कर ही सकता है। दरअसल आगे की रणनीति गुरुवार की शाम तय करेगी। इस चुनाव का असली गुरु कौन है, यह गुरुवार का दिन तय करेगा। क्योंकि कांग्रेस और प्रियंका को कम आंकना बीजेपी, योगी, एसपी अखिलेश के लिए बन सकता है सरदर्द। जाहिर सी बात है कि प्रियंका के साथ महिलाओं के साथ-साथ खामोश वोटर रहे हैं। और वो लोग जिन्हें अखिलेश और योगी सत्ता में आना पसंद नहीं, उनके लिए प्रियंका और कांग्रेस सबसे बड़ी पसंद रही हैं।
(लेखक राष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका दूसरा मत के संपादक हैं)