पत्रिका और आपका प्रयास सराहनीय

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सुरेश दत्त

दूसरा मत पत्रिका 20वें साल में प्रवेश कर रही है यह जानकर प्रसन्नता हुई। समाचार पत्र-पत्रिका निकालना सरल सहज कार्य नहीं है। अन्य आवश्यकताओं के साथ-साथ इसके लिए उद्देश्य, लगन और अर्थ की आवश्यकता होती है। आपके पास उद्देश्य और लगन है। अर्थ की व्यवस्था करना दुरुह कार्य है। लेकिन इसकी व्यवस्था अवस्था अनुकूल न होने पर भी आप कर पाने में सफल रहे हैं। इसके लिए पत्रिका और आपका, दोनों का प्रयास सराहनीय है।

पिछले कुछ अंतराल से पत्रकारिता सहज नहीं रही। अपने उद्देश्य से समझौता किए बिना, प्रलोभन का त्यागकर सम-सामायिक विषयों पर अपनी बात सरल शब्दों में बेबाकी से, पूर्वाग्रह को त्यागकर रखना मुश्किल होता है। यह पत्रिका यद्यपि मुख्यरूप से बिहार में जाती है और वहां की जनभावना और समस्याओं से संबंधित रहती है जो स्वाभाविक है। लेकिन यह अपने राष्ट्रीय चरित्र को बनाए रखने की भरपूर कोशिश करती है। आपके संपादकीय इस उद्देश्य को पूरा करते हैं। अन्य लेख भी अच्छे होते हैंं।

समाचार प्रस्तुतिकरण अच्छा रहता है। प्राय: आपकी पत्रिका में छपे लेख भी इसके राष्ट्रीय चरित्र और उद्देश्य को पूरा करने में सफल होते दिखते हैं। आपने अपने अथक परिश्रम से इस पत्रिका को इतने वर्षों तक चलाया है। यह प्रशंसनीय तो है ही, नए पत्रकारों के लिए प्रेरणादायी भी है।

पत्रिका का कलेवर, रंग संयोजन, मुख्य पृष्ठ एवं का़गज़ सभी उच्च कोटि के रहे। प्रयास में आप सफल तो हैं ही। उत्तरोत्तर प्रगति भी हुई है।

पिछले माह में एक लेख आपकी पत्रिका में छपा था जिसमें पाकिस्तान की सैन्य उपलब्धि, पारंपरिक युद्ध चीन के संदर्भ में सैन्य तैयारियों की उपलब्धता आदि की समीक्षा अच्छे ढं़ग से की गई है। कुल मिलाकर अच्छी जानकारी और अच्छी प्रस्तुतिकरण है।

जीडीपी के संदर्भ से जसवंत सिंह के एक प्रश्न का उल्लेख किया गया है- लोगों की जेब में पैसे आखिर कैसे डाला जाए यह प्रश्न वित्त मंत्री को पूछना पड़े तो कितनी बड़ी विडम्बना है। यदि वित्तमंत्री को यही पूछना पड़े तो किससे उम्मीद जनता करे। और उनकी समझ पर क्या कहा जाए? क्या यह इसलिए था कि वह संभवत: एक सामंतवादी परिवेश से आते थे?

उत्तर बहुत सरल दिया गया। लोगों पर कर कम लगाइए? पर क्या किसी भी वित्तमंत्री ने कभी इस तरह से सोचकर कर प्रणाली को लागू किया अपने समय में? लोगों पर कर कम लगाया जाए। किसान को सांस लेने का अवसर मिले। वरिष्ठ नागरिक, जिनकी कोई आमदनी, जिन्हें कोई मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है, पेंशन नहीं, इलाज की सुविधा नहीं, यात्रा सुविधा जैसी कमियों पर किसी का ध्यान कभी जाता है क्या? लेकिन संभवत: इन मूल प्रश्नों पर आपके जैसी पत्रिका को अपने संपादकीय आदि से निरंतर ध्यान आकर्षित कराने की आवश्यकता है।

यदि आप इसे कर पाए तो मानेंगे आपने अपनी पत्रकारिता के दायित्व में एक मील का पत्थर और पार किया।

इसी प्रकार देश में (मेडिकल) स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता, शिक्षा क्षेत्र में आवश्यकताओं की ओर ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता बराबर बनी रहेगी।

(लेखक खादी मामलों के जानकार हैं)

यह अपने राष्ट्रीय चरित्र को बनाए रखने की भरपूर कोशिश करती है। आपके संपादकीय इस उद्देश्य को पूरा करते हैं। अन्य लेख भी अच्छे होते हैंं। समाचार प्रस्तुतिकरण अच्छा रहता है। प्राय: आपकी पत्रिका में छपे लेख भी इसके राष्ट्रीय चरित्र और उद्देश्य को पूरा करने में सफल होते दिखते हैं। आपने अपने अथक   परिश्रम से इस पत्रिका को इतने वर्षों तक चलाया है। यह प्रशंसनीय तो है ही, नए पत्रकारों के लिए प्रेरणादायी भी है। पत्रिका का कलेवर, रंग संयोजन, मुख्य पृष्ठ एवं का़गज़ सभी उच्च कोटि के रहे। प्रयास में आप सफल तो हैं ही। उत्तरोत्तर प्रगति भी हुई है।