सच्ची पत्रकारिता-शास्वत कृष्णा

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शास्वत कृष्णा

दूसरा मत पत्रिका शुरू से लेकर आजतक अपने सैद्धांतिक मूल्यों से समझौता किए बिना लगातार दो दशकों से अपने मूल स्वरूप को ़कायम रहते हुए आधुनिक बदलाओं और विचारों को समाविष्ट कर अपने पाठकों के लिए उत्कृष्ट विषय-वस्तु लाती रही है। चाहे वह साहित्य से जुड़ा मुद्दा हो, राजनीति से जुड़ा मुद्दा हो या अन्य किसी विषयों से जुड़ा कोई मुद्दा हो।

आज के दौर में जब हज़ारों पत्रिकाएं छप रही हैं और मीडिया का आधुनिकीकरण हो गया है, ऐसे में दो दशक से इस विशाल देश के महान जन-मानस के बीच लोकप्रिय होना और लगातार उस लोकप्रियता को बऱकरार रखना वर्तमान युग में किसी तपस्या से कम नहीं है। और यह तपस्या दूसरा मत के परम आदरणीय संपादक ए आर आज़ाद जी ने अपने निष्पक्ष विचार, अप्रतिम अंतर्वस्तु के बल पर पूर्ण की है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘ मैं लोकतंत्र को ऐसी चीज़ के रूप में समझता हूं जो कमज़ोर को मज़बूत के समान मौ़का देती है।’’

ठीक इसी प्रकार दूसरा मत एक पत्रिका नहीं है, हमारे राष्ट्र की वास्तविक विचारधारा है जो हीन और उच्च में ़फ़र्क न करते हुए एक निष्पक्ष विचार का प्रक्षेपण करता है। लोकतांत्रिक भारत के हृदय कहे जाने वाले संविधान के रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर ने भी कहा था,- ‘‘ राजनीतिक लोकतंत्र तबतक नहीं चल सकता जब तक कि सामाजिक लोकतंत्र का आधार नहीं होता। ’’

और सामाजिक लोकतंत्र बिना प्रिंट मीडिया के संभव नहीं है। इसका         उदाहरण हमारी आज़ादी है, जिसमें पत्र और पत्रिकाओं की अति महत्वपूर्ण भूमिका है, यही पत्रिका है जिसने जन-आंदोलन को प्रेरित किया और नए भारत की बुनियाद रखी।

जहां तक मेरी निजी राय है- दूसरा मत भी लोगों के बीच हिंदी-साहित्य को पुनर्जीवित करने का, हिंदी के प्रति जो लोगों में दिलचस्पी ़खत्म हो रही थी, उसे पुन: जागृत करने का आंदोलन आरंभ कर चुका है।

आज राष्ट्रवाद एक ऐसा उपकरण है, जिसका उपयोग नेताओं के ज़रिए अपने अधिकार को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।  लेकिन राष्ट्रवाद को आम लोगों के संघर्षरत समानता के सिद्धांत पर निर्भर होना पड़ेगा। दूसरा मत इसी नज़रिए को ध्यान में रखते हुए आम जनता की वास्तविक हालात से रूबरु कराती है। और उनकी तकलीफों की आवाज़ बनता है न कि किसी समूह विशेष की      चाटूकारिता करता है। यह पत्रिका सच्चे मायनों में राष्ट्रप्रेम की भावना जगाता है। यह पत्रिका तथाकथित वीआईपी संस्कृति से प्रभावित चकाचौंध वाली ़खबरों को नकारते हुए जन मानस की समस्याओं से अवगत करा सच्ची पत्रकारिता का प्रमाण तो देता ही है, साथ ही भ्रष्ट पत्रकारिता के मिथक को दूर करता है। दूसरा मत हर प्रकार के विषयों को अंतर्वस्तु में शामिल करता है। इसके विषय-वस्तु विविध प्रकार के हैं जो कि स्वयं में अन्य पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनुकरणीय हैं।

दूसरा मत सफलता के इस मु़काम तक इसलिए पहुंच पाई है क्योंकि इसके संपादक आदरणीय ए आर आज़ाद जी ने कभी अपने निष्पक्ष मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया है। आज के दौर में जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर कई सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में दूसरा मत जैसी पत्रिकाएं ही निष्पक्ष पत्रकारिता के गौरव को बचा रही है।

‘डेराय मैककेसन’ ने कहा है,-‘‘ न्याय जो समाज में समुदायों का न्यायसम्य सामाजिक कल्याण न कर पाए वह शब्द मात्र का न्याय है।’’

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे समाज में लोगों का समान रूप से सामाजिक कल्याण कराने में दूसरा मत अहम भूमिका निभाते हुए पत्रकारिता के साथ पूर्ण न्याय कर रहा है।

निजी तौर पर मैं दूसरा मत का आभारी हूं क्योंकि इनसे मुझे और मेरी कविताओं को मंच दिया और हिंदी के समग्र विस्तार में एक अहम भूमिका निभा रहा है। दूसरा मत को बहुत सी शुभकामनाएं।

आने वाले वर्षों में आशा है कि यह पत्रिका और कटिबद्धता से लोगों की आवाज़ बनेगी। ’

(लेखक छात्र एवं युवा साहित्यकार हैं)

जहां तक मेरी निजी राय है- दूसरा मत भी लोगों के बीच हिंदी-साहित्य को पुनर्जीवित करने का, हिंदी के प्रति जो लोगों में दिलचस्पी ़खत्म हो रही थी, उसे पुन: जागृत करने का आंदोलन आरंभ कर चुका है।

यह पत्रिका सच्चे मायनों में राष्ट्रप्रेम की भावना जगाता है। यह पत्रिका तथाकथित वीआईपी संस्कृति से प्रभावित चकाचौंध वाली खबरों को नकारते हुए जन मानस की समस्याओं से अवगत करा सच्ची पत्रकारिता का प्रमाण तो देता ही है, साथ ही भ्रष्ट पत्रकारिता के मिथक को दूर करता है। दूसरा मत हर प्रकार के विषयों को अंतर्वस्तु में शामिल करता है। इसके विषय-वस्तु विविध प्रकार के हैं जो कि स्वयं में अन्य पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनुकरणीय हैं।

दूसरा मत सफलता के इस मु़काम तक इसलिए पहुंच पाई है क्योंकि इसके संपादक आदरणीय ए आर आज़ाद जी ने कभी अपने निष्पक्ष मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया है। आज के दौर में जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर कई सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में दूसरा मत जैसी पत्रिकाएं ही निष्पक्ष पत्रकारिता के गौरव को बचा रही है।