केरल में एलडीएफ बनी रहेगी या यूडीएफ आएगी?

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बीजेपी का 1 से 11 सीट बनाना मकसद

ए आर आज़ाद

देश के जिन पांच राज्यों में मतदान हो रहे हैं उनमें केरल भी एक प्रमुख राज्य है। यहां 6 अप्रैल को चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग ने केरल विधानसभा का चुनाव एक फेज में ही कराने का फैसला लिया है। यानी इसबार केरल विधानसभा की वोटिंग 6 अप्रैल की सुबह शुरू होगी और उसी दिन शाम में खत्म हो जाएगी। मालूम हो कि केरल में विधानसभा की 140 सीटें हैं। और किसी भी दल या गठबंधन के लिए सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा 71 है। केरल के पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2016 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर चर्चा करें तो पाते हैं कि सीपीएम ने 58 सीटें जीती थी। दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी। कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। तीसरे नंबर पर सीपीआई थी। उसे 19 सीटें मिली थीं। 2016 के केरल विधानसभा चुनाव में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को 18 सीटें मिली थीं। केरल कांग्रेस एम ने 6 सीटें जीतकर अपना दमखम दिखाया था। जनता दल सेक्युलर को 3 सीटें मिली थीं। शरद पवार की पार्टी एनसीपी को 2 सीटें मिली थीं। और 2016 में बीजेपी ने भी अपना खाता खोल लिया था। यानी एक सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार भी जीत का परचम लहरा कर केरल विधानसभा में कमल के प्रतिनिधित्व के रूप में अपना दमखम दिखया था। 11 सीटें निर्दलीय एवं अन्य दलों के हाथ लगे थे। यानी पिछले विधानसभा चुनाव में केरल की जनता के सामने कोई ऐसी पार्टी नहीं थी, जिसे एक मुश्त वोट देकर पूर्ण बहुमत दिया जा सके। यही वजह रही कि केरल के वोटरों ने सब पर भरोसा जताया। हत्ता कि बीजेपी पर भी। वर्षों-वर्ष से केरल में अपना खाता खोलने के लिए तरसती बीजेपी को एक सीट देकर वहां की जनता ने बीजेपी के हौसले बुलंद कर दिए। और इसी एक सीट की बदौलत बीजेपी केरल में अपनी सरकार गठन का सपना देखने लगी है। पोस्टर, होर्डिंग, बैनर, पैसों से यानी जिस चीज की भी जरूरत है वह सबकुछ बीजेपी केरल में कर चुकी है, कर रही है और करने जा रही है।

केरल में इस समय 2 करोड़ 67 लाख वोटर हैं। 1 करोड़ 37 लाख महिला मतदाता हैं। और 1 करोड़ 29 लाख पुरुष मतदाता हैं। ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या भी 221 है।

अब सवाल उठता है कि केरल विधानसभा चुनाव में जीत का जादुई आंकड़ा 71 को कौन गठबंधन पार करता है? बीजेपी हालांकि केरल में कहीं नहीं है। बावजूद इसके वह हर जगह होने की दिखावा कर रही है। केरल विधानसभा चुनाव में अपना लोहा मनवाने की कोशिश कर रही है। केरल की जनता और बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भी मालूम है कि केरल में उनकी सरकार नहीं बनने जा रही है। बीजेपी के लिए केरल में सरकार बनाना मुमकिन नहीं है, बावजूद इसके बीजेपी माहौल बनाकर चर्चा के केंद्र में बने रहना चाहती है। बीजेपी को नेमम में एक सीट मिली थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता ओ राजगोपाल को यहां से जीत का ताज पहनाया गया था। और केरल विधानसभा के इतिहास में ओ राजगोपाल अब तक के पहले बीजेपी के निर्वाचित विधायक हैं।

एक सवाल उठता है कि बीजेपी को जीताने में, सत्ता का स्वाद चखाने में संघ की सक्रियता की अहम भूमिका होती है। केरल में संघ लगभग आठ दशकों से बीजेपी को स्थापित करने में अपनी सक्रियता दिखा रही है। केरल में लगभग साढ़े तीन करोड़ की आबादी है। और इस आबादी के मुहल्ले, गांव एवं तालुका तक में संघ की सक्रियता है। बावजूद इसके केरल में 2016 को विधानसभा को छोड़कर बीजेपी की भद्द पिटती रही है।

इस वक्त केरल की सत्ता में सीपीएम नेतृत्व वाला लेफ्ट मोर्चा की सरकार है। माना जा रहा था कि 2021 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट मोर्चा का सुपड़ा साफ हो जाएगा। लेकिन हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में जबरदस्त कामयाबी ने केरल में सत्तासीन वाम मोर्चा के हौसले बुलंद कर दिए। उसे लगने लगा कि वह केरल में अपनी सत्ता बचाकर और बरकरार रखकर इतिहास रचने वाली पहली सरकार बनकर सामने आ सकती है। लेफ्ट मोर्चा की तरह हसीन सपने संजोए  कांग्रेस भी है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ यानी युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनने का भरोसा पूर्व रक्षा मंत्री  ए के एंटोनी जता रहे हैं। ए के एंटोनी केरल में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। केरल में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए की केवल एक सीट है। लेकिन ये भी केरल की जनता में सरकार बनाने का संदेश दे रहे हैं।

केरल में चुनाव के कई प्रमुख मुद्दे हैं लेकिन भ्रष्टाचार सबसे अहम है। इस चुनाव में सोने की तस्करी के मामले भ्रष्टाचार के मुद्दे बनाकर जनता के बीच उछाले जा रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में यानी मध्य और दक्षिण केरल में सबरीवाला का मुद्दा भी अहम है। हालांकि केरल की मौजूदा लेफ्ट सरकार के कुछ कामों से वहां की जनता प्रसन्न भी है। मसलन सरकार की ओर से तूफान, बाढ़, नीपा वायरस और कोविड-19 के मामले में जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट है।

केरल भी दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक की तरह ही है। जहां वहां की जनता किसी एक पार्टी को सत्ता में लगातार दोबारा आने नहीं देती है। और इसी के मद्देनजर केरल में एक चुनाव में एलडीएफ की जीत होती है तो दूसरे चुनाव में यूडीएफ  आ जाती है। लेकिन इसबार केरल के पंचायत, नगर पालिका और नगर निगमों जैसे तीनों चुनाव में लेफ्ट को जबरदस्त बहुमत मिला। और यह चुनाव 6 अप्रैल को विधानसभा के संपन्न होने से ठीक पहले दिसंबर में हुए थे। जाहिर है कि जनता के मूड से अंदाजा लगता कि केरल की जनता मौजूदा लेफ्ट सरकार पर मेहरबान है। जनता की यही मेहरबानी एलडीएफ की वापसी का सबब बन सकता है। और सीपीएम को पूरा यकीन है कि उनकी सत्ता को कोई हिला नहीं सकता है। भ्रष्टाचार के जो मामले हैं यानी सोने की तस्करी के रैकेट और मनी लॉन्र्डिंग के मामले का असर निकाय चुनावों पर नहीं हुआ। और यही लेफ्ट के लिए वरदान साबित हो रहा है। हालांकि कांग्रेस इनके दावों को खारिज करते हुए दिखती है। हालांकि स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की हार ने कांग्रेस को सकते में डाल दिया है। इस हार से कांग्रेस आलाकमान की नींद भी उड़ चुकी है।

जहां तक बीजेपी का सवाल है। बीजेपी केरल में कुछ कर नहीं सकती है। बीजेपी केरल विधानसभा चुनाव में बहुत सीटें निकाल नहीं सकती है। लेकिन कुछ विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे दलों की रणनीति को बिगाड़ सकती है। यानी कहीं एलडीएफ से बदला ले सकती है तो कहीं यूडीएफ से बदला ले सकती है। अगर बीजेपी का लाभ मौजूदा सरकार को सत्ता से रोकना मकसद बन जाता है तो वह सत्ता में वापसी से रोकने के लिए रणनीतिक तौर पर यूडीएफ को लाभान्वित कर सकती है। यानी कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि केरल में या तो एलडीएफ बनी रहेगी या यूडीएफ आएगी। बीजेपी सिर्फ वहां खेल कर सकती है। तमाशा कर सकती है। और तमाशा दिखा सकती है।