नीलू चौधरी
पीते कैसे हैं इतना ग़म मत पूछो,
फिर क्यूं ना आंखें होती नम मत पूछो।
बढ़ते दामों से जीते जी मर जाते,
फिर है क्यूं उत्सव का आलम मत पूछो।
अब जीने का मक़सद तो बस तुम ही हो,
तुम बिन कैसे जीएंगे हम मत पूछो।
पीने का नुक़सान कभी ना समझे तुम,
क्यूं पीने से कम होता दम मत पूछो।
धरती पर आए हैं तो जीना सीखें,
क्यूं रो रोकर जीते हरदम मत पूछो।