बाहरी नेताओं को अपने दल में शामिल करने का साइड इफेक्ट

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ए आर आज़ाद

बाहरी नेताओं को अपने दल में शामिल करने की प्रवृत्ति भले ही जोर पकड़ती दिख रही हो। और आप इस प्रचलन को मौजूदा वक्त की जरूरत बताकर इस प्रवृत्ति के बुराई पक्ष से भले ही पल्ला झाड़ लें। लेकिन हकीकत यही है कि इस चलन से पार्टी में मौजूद लोगों के बीच हीन भावना की प्रवृत्ति उभरती है। इसलिए कि जो लोग आपकी विचारधारा और सिद्धांत के नामपर लंबे अरसे तक पार्टी से जुड़े रहते हैं। पार्टी को बढ़ावा देने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। और जब फल खाने का मौक़ा आता है तो वह किसी और के हिस्से में चला जाता है। किसी और का मतलब यहां पार्टी में शामिल दूसरे कार्यकर्ताओं या नेताओं से नहीं है बल्कि पलायन कर आए हुए नेताओं से इसकी मुराद है। जाहिर सी बात है कि यहीं से पार्टी के कमजोर और क्षीण होने की शुरूआत हो जाती है। कांग्रेस ने भी 2004 से लेकर 2014 तक यही काम किया है। उसका क्या असर हुआ, सबके सामने है। कांग्रेस मुक्त देश होने लगा। और यही काम अब 2014 से 2021 तक में बीजेपी थौक भाव से कर रही है। यानी एक संशय राजनीतिक पंडितों के बीच है कि 2024 के बाद बीजेपी मुक्त देश होने लगेगी। यानी कांग्रेस की सारी गलतियों को बीजेपी ने दोहराने का प्रण ले लिया है। और आशंका है कि बीजेपी के आला नेताओं की यही नादानी पार्टी का प्राण न ले ले।