एस आर आज़मी
जि़ला के जानेमाने वरीय चिकित्सक व कृषक डॉ. नलिनी रंजन सिंह ने कृषि ़कानूनों का समर्थन करते हुए किसानों के मौजूदा आंदोलन को गै़र-मुनासिब बताया है। ़खुद खेती में दिलचस्पी रखने वाले किसान डॉ. नलिनी का मानना है कि भारत की कृषि को विज्ञान एवं व्यापार पर आधारित करनी होगी। किसानों को खेतों में उपजाई गई फसलों के लिए भंडारण की नितांत आवश्यकता है। भंडारण की मा़कूल व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को अपनी उत्पादित सामग्रियों का औने-पौने दामों में बिचौलिए के हाथों बेचने की मजबूरी सामने आती है। बिचौलिए ़खरीदी गई फसलों को कुछ ही दिनों के बाद बड़े व्यापारियों को ऊंची ़कीमत पर बेच देता है। अगर बड़े व्यापारियों का सीधा सरोकार किसानों को बन पाता तो अच्छी ़कीमत मिल जाती। इसमें व्यापक सुधार की ज़रूरत है।
डॉ. नलिनी रंजन के मुताबि़क राजधानी दिल्ली में जो किसान आंदोलन चलाया जा रहा है वह राजनीति से प्रेरित है। और कुछ क्षेत्रीय किसान विपक्षी दलों के चकमें में आकर धरना पर बैठे हैं। यह न्यायोचित नहीं है। केंद्र सरकार ने किसानों की हि़फाज़त करने का ठोस संकल्प ले रखा है। यह मिशन तभी पूरा होगा, जब कृषक समुदाय भी तहे दिल से सरकार का सहयोग करेगा।
वहीं अनुश्रवण कमिटी के उपाध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता एस एम अ़कील अख़्तर का कहना है कि केंद्रीय सरकार के किसान बिल से किसान आहत हुए हैं। लाखों किसान इस सर्दी में दिल्ली के आसपास अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। जिसमें दर्जनों किसानों की मौत भी हो चुकी है। उनका मानना है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारा देश कृषि पर ही आत्मनिर्भर है। किसान अन्नदाता हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी नारा दिया था-जय जवान, जय किसान। किसान है तो हम हैं। सरकार और अधिकृत किसान यूनियनों के बीच सकारात्मक बात होनी चाहिए। सरकार को समस्याओं का हल निकालना चाहिए। देश के बाहर इसका पै़गाम जा रहा है। देश की छवि धूमिल हो रही है। हर चीज़ में लोग दो-दो भागों खे़मों में बंट जाते हैं। इसको राजनीतिक रूप नहीं दिया जाए। देश को बचाना है और हर मसले का हल बैठकर शांतिपूर्ण से ही संभव है। हम सरकार और किसान से निवेदन करते हैं कि सकारात्मक बाचतीत के ज़रिए इस आंदोलन को समाप्त किया जाए जिससे आम अवाम पर इसका प्रभाव नहीं पड़े। वैसे ही लोगों की आजकल कमर टूटी पड़ी है। अगर लंबा आंदोलन हुआ तो खाद्य पदार्थों के मूल्यों पर और अधिक असर पड़ेगा।
भैरवार पंचायत के पूर्व मुखिया व चर्चित किसान सहदेव प्रसाद सिंह की राय में केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि संबंधित तीनों ़कानून देश के सभी किसानों के लिए कल्याणकारी है। इन ़कानूनों के अनुपालन से अन्नदाताओं की आर्थिक हालत में व्यापक सुधार होगा। उनका मानना है कि कृषि ़कानूनों का दूरगामी परिणाम सुखद होगा। अभी विरोध में जो आंदोलन चलाया जा रहा है, वह कुछ राजनीतिक दलों की गहरी साज़िश है।
वहीं पूर्व विधान पार्षद उषा सहनी के मुताबिक, भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। सरकार कृषि को औद्योगिक का दर्जा नहीं दिला पाई। सरकार से आस लगाए किसानों ने त़करीबन छह साल इंतज़ार किया। सत्तारूढ़ एनडीए की सरकार ने तीन नए ़कानून लाकर किसानों का धैर्य ़खत्म कर दिया। किसानों के सामने एक प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया गया। जय जवान, जय किसान, जय नौजवान के बल पर हमारा देश चल रहा है। आज तीनों हाशिए पर हैं। किसान का आंदोलन जायज़ है। मॉल खड़ा कर छोटे-छोटे दुकानों, छोटी मंडियों और हाट बाज़ार को ़खत्म करने की यह एक गहरी साज़िश है। यह नया कृषि ़कानून ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ने का षडयंत्र है।
वरिष्ठ नेता व जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन रतन सिंह ने कृषि ़कानूनों से त्रस्त किसानों की समस्याओं को गंभीर बताया है। और केंद्र सरकार से इसे वापस लेने का अनुरोध किया है। रतन सिंह के मुताबि़क, देश में किसानों का हाल दिन-प्रतिदिन बदहाल होता जा रहा है। देश के अन्नदाता बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। किसानों की खेती कॉरपोरेट घरानों को थोपा जा रहा है। कृषि की सारी की सारी सामग्री को जो बेचेगा वही समर्थन मूल्य तय करेगा। देखिए विडम्बना किसानों ने अपने आलू आठ रुपए किलो में बेचे और अब 40 रुपए किलो ़खरीदकर खाना पड़ रहा है। सरकार को शीघ्रता से अधिकृत किसान नेता से बातचीत कर इस समस्या का निदान निकालना होगा। क्योंकि परिणाम भयावह हो सकता है। नतीजे में महंगाई और आसमान छूएगी।
प्रखंड व्यापार मंडल अध्यक्ष कमल किशोर सिंह का मानना है कि सरकार ने तीन नए बिलों को किसानों पर थोप दिया है। किसानों की ज़मीन बड़े व्यापारियों और कॉरपोरेट घराने को चला गया। किसानों के हाथ में कुछ नहीं बचेगा। इस बिल में किसान अदालत भी नहीं जा सकता है। सरकार किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे। पंजाब, हरियाणा, यूपी के किसान अग्रणीय हैं। देश में अन्न की पूर्ति करने में इनका बड़ा योगदान रहा है। इनका आंदोलन सही है। किसानों का मैं समर्थन करता हूं। सरकार इसे गंभीरता से लेते हुए किसानों की समस्या का समाधान निकाले।
इस मुद्दे पर भाजपा के जि़ला महामंत्री कृष्ण मोहन पप्पू ने कहा कि मौजूदा सरकार ने किसानों के हित में किसान बिल लाया है। यह बिल किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाएगा। किसानों के बीच भ्रम फैलाया जा रहा है कि कॉरपोरेट ज़मीन हथिया लेंगे। हसनपुर चीनी मिल कॉरपोरेट खेती करवा रही है। किसानों को खाद-बीज मुहैया करवाती है। किसानों से जो बिचौलिया खा रहा था, उनकी कारोबार बंद हो जाएगा। यह बिल किसान हित में है।
एंटी करप्शन बिहार के राज्य अध्यक्ष एवं अधिवक्ता वीरेंद्र कुमार साहू का मानना है कि किसान आंदोलन सही मायने में किसानों का आंदोलन है। सरकार में बैठे लोग इस आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश में लगे हैं। भाजपा की सरकार किसानों की भूमि कॉरपोरेट पूंजीपतियों के बीच गिरवी रख देना चाहती है। किसानों को जो खाद-बीज पर सब्सिडी मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है। जबकि अमेरिका जैसे देशों में किसानों को लागत मूल्यों से ढाई गुणा सब्सिडी सरकार देती है। सरकार किसान आंदोलन को हल्के में ले रही है। जबकि पूर्व में अंग्रेज़ों के ़िखला़फ किसानों ने गांधी जी के नेतृत्व में आंदोलन किया था जिससे अंग्रेज़ों की नींव हिल गई थी। इसे हम नील की खेती आंदोलन के नाम से जानते हैं। सरकार को किसानों से बातचीत करनी चाहिए और काला ़कानून को वापस लेना चाहिए।
सीपीएम नेता मो. उस्मान का कहना है कि आज़ादी के बाद पांच सौ से अधिक किसान संगठन नए कृषि ़कानून के ़िखला़फ एकता बद्ध होकर आंदोलन में जुटे हैं। नया कृषि ़कानून बिल सत्तारूढ़ भाजपा सरकार कॉरपोरेट घराने को बेचना चाह रही है। किसानों के हाथ में कुछ नहीं रहेगा। कृषि की समस्त भूमि कॉरपोरेट अडानी और अबानी के नेतृत्व में चली जाएगी। हमलोग सरकार से मांग करते हैं कि किसानों पर थोपा गया काला ़कानून रद्द करे। सरकार किसानों पर अत्याचार कर रही है।
वरिष्ठ आरेजडी नेता एवं अधिवक्ता राम विनोद यादव के मुताबि़क, खेती किसानों की आमदनी का एकमात्र ज़रिया है। आज केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार किसान विरोधी काला ़कानून के माध्यम से किसानों की आज़ादी और आमदनी दोनों पर अंकुुश लगाना चाहती है। मैं इस नए कृषि ़कानून बिल का विरोध करता हूं। सरकार इस बिल को अविलंब वापस ले।
वरिष्ठ अध्यापक प्रो. रामाशीष प्रसाद सिंह का मानना है कि राष्ट्रव्यापी किसानों का यह आंदोलन सर्वथा उचित है। केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार किसानों के हितों का ख़्याल किए ब़गैर आनन-फानन में लागू कर दिया। अध्याादेश लाने से पूर्व केंद्र सरकार को अधिकृत किसान यूनियन के नेताओं से विचार-विमर्श करना चाहिए था। किसानों को अपनी पैदावार का न्यूनतम समर्थन मूल्य ज़रूर मिलना चाहिए। किसान इस देश के मेरूदंड हैं। उनकी आर्थिक हालत को सुधार कर ही राष्ट्र को प्रगति पथ पर अग्रसर किया जा सकता है। केंद्र सरकार टालमटोल रवैया छोड़कर यथाशीघ्र इस आंदोलन का सम्यक रूप से समाप्त कराए ताकि कृषक परिवारों में नई चेतना के साथ ़खुशहाली लौट सके।
पैक्स के पूर्व अध्यक्ष महंत राम पुकार सिंह का मानना है कि मौजूदा केंद्र सरकार का यह तीनों बिल कृषक विरोधी है। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद देश में द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री जैसे महापुरुष नेता मिले थे। जिन्होंने देश के किसानों तथा सीमा पर लड़ने वाले वीर जवानों का दर्द समझा था और जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। उन्होंने अपने अल्प कार्यकाल में प्रभावशाली ़कदम भी उठाया। मौजूदा केंद्र सरकार तो बहुमत के नशे में चूर होकर काम कर रही है। उन्हें अन्नदाता किसानों से क्या मतलब? भयावह ठंड में अपनी जायज़ मांगों को लेकर हज़ारों-हज़ार किसान समुदाय विगत चार सप्ताह से आंदोलनरत हैं। सरकार की ओर से महज़ ख़ानापूर्ति के नाम पर वार्ता का नाटक चल रहा है। कृषि प्रधान देश भारत के किसानों की इस गंभीर समस्या का समाधान हुए बिना निराकरण नहीं किया गया तो केंद्र सरकार को बड़ी ़कीमत चुकानी पड़ेगी।
वरिष्ठ जेडीयू नेता चितरंजन प्रसाद सिंह ने कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के अस्सी-पचासी लोगों का जीवन कृषि पर आधारित है। आज किसानों की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है। सरकार कह रही है कि किसानों की आय दुगुनी करेंगे। यह कैसे संभव है? केंद्र सरकार के तीनों कृषि ़कानून बिल से किसानों का हाल बुरा होगा। बिहार में चकबंदी का काम नहीं हुआ। हरियाणा और पंजाब में किसान आत्म हत्या कर रहे हैं। नया बिल किसान विरोधी है। सरकार पूंजीपतियों व कॉरपोरेट घरानों को बढ़ावा दे रही है। अन्नदाता किसान को कोई देखने वाला नहीं है। सरकार को विचार करना होगा। किसान है तो देश है। मैं इस नए काले ़कानून का विरोध करता हूं।
वरिष्ठ आरजेडी नेत्री क्रांति सिंह का मानना है कि केंद्र सरकार का यह कृषि ़कानून देश के लिए एक काला अध्याय और किसानों के गले का फांस है। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार लगातार एक लंबे समय से किसानों के हितों की उपेक्षा किए जा रही है। देश के कुछ खास कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की मंशा से यह ़कानून लाया गया है। इससे अन्नदाताओं के बीच भारी खलबली मची है। केंद्र सरकार अविलंब इन ़कानूनों को वापस लेकर किसानों का भविष्य सुरक्षित करें।
वरिष्ठ आरजेडी नेता अशोक कुमार मुन्ना का मानना है कि नए कृषि ़कानून बिल में ऐसा प्रावधान किया गया है कि कॉरपोरेट घराने के लोग आवश्यक वस्तुओं को ़खरीदकर बड़े शहरों में काफी क़ीमतों पर बेचें। यह किसानों के साथ धोखाधड़ी है। क्योंकि इस ़कानून में न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की गुंज़ाइश भी नहीं बनती। इस ़कानून से मंडी प्राइवेट होगी तो सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ़खरीद कैसे सुनिश्चित करेगी। ऐसे में कृषि कॉरपोरेट घरानों का व्यवसाय बनकर रह जाएगा। और किसान उनके कारिंदे। इसलिए सरकार को इस बिल को वापस लेना चाहिए।
वहीं इस मामले पर राजेश कुमार सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का किसान विरोधी आंतरिक गठजोड़ है। यह सरकार किसान विरोधी, मेहनतकश मज़दूर, छात्र एवं युवा विरोधी है। सरकार की मंंशा है कि पूर्ण बहुमत में आकर अपने कार्यकाल में किसी भी मांग को कुचल कर तानाशाही रवैया अपनाकर बिल को लागू किया जाए। खेती कॉरपोरेट घरानों के पास चली जाएगी। मनमानी ़कीमत पर कॉरपोरेट किसानों से अनाज लेकर बेचेंगे। इस बिल से किसान कोर्ट भी नहीं जा सकेंगे। इसी लिए किसान डरे और सहमे हुए हैं। मैं इस बिल का विरोध करता हूं। सरकार अविलंब इस बिल को वापस ले। न्यूनतम समर्थन मूल्य वापस करे। और किसानों की सरक्षा की गारंटी ले।