50 साल शासन’ पर जब मचा था शोर

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शहीम आज़मी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने इस बयान पर अमित शाह और बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि अमित शाह का बयान भाजपा की फासीवाद सोच को उजागर करता है।उन्होंने इस बयान की निंदा करते हुएकहा कि इससे ऐसा लगता है कि उन्हें लोकतंत्र पर भरोसा ही नहीं है। उन्होंने तब इस पर चुटकियां लेते हुए कहा था कि एक बार और जीत जाओ फिर संविधान बदल दो और चीन व रूस की तरह पचास साल राज करो।             

बीजेपी के ़कद्दावर नेता और कल तक पार्टी के अध्यक्ष और आज के गृहमंत्री अमित शाह की कार्यशैली और प्रधानमंत्री के साथ उनकी जुगलबंदी ज़माने भर में चर्चित है। अमित शाह जब कुछ बोलते हैं तो बात दूर तक जाती है। उनके जुमले का असर कभी होता और कभी वही जुमला उनके लिए सिर का दर्द हो जाता है। मसलन 2014 लोकसभा चुनाव में उनका जुमला असरदार रहा। ठीक उसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका जुमला मारक क्षमता पूर्ण रहा और परिणामात्मक रहा। लेकिन बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव में उनका जुमला उन्हीं के लिए सिरदर्द बनकर रह गया। उनके जुमले ने पार्टी को उबारने की जगह डूबो दिया। वहां वैंडिलेटर पर रहने वाली राष्ट्रीय जनता दल ने चौंकाने वाला नतीजा देकर सबको अचंभित कर दिया। यानी अमित शाह के जुमले और संघ प्रमुख के श्रीमुख से निकले शब्दों ने लालू प्रसाद यादव के लिए संजीवनी का काम किया और लालू-नीतीश की जोड़ी एकबार फिर से जीवंत हो उठी और दोनों की मिली जुली सरकार बनी और लगभग 18 महीनों  तक बीजेपी बिहार में अपनी छाती पिटती रही। लेकिन जोड़-तोड़ में माहिर बीजेपी अपनी इसी रणनीति के तहत नीतीश के गुणों का बखान कर और उसकी उपयोगिता को स्वीकार और अपनी हठधर्मिता का त्याग कर नई शक़्ल में नई सरकार का गठन कर अब तक गठबंधन धर्म के तहत सरकार में साझा सत्ता सुख भोग रही है।

बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह के जुमले दिल्ली के लोकसभा चुनाव में तो चल गए। जमकर चले। परिणामात्मक रूप से चले। लेकिन एक ही साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में अमित शाह के जुमले की मारक क्षमता धराशाही हो गई। दिल्ली में केजरीवाल का बोलवाला रहा। और अमित शाह उछल-कूद कर भी दिल्ली की सरकार पर अपना आधिपत्य नहीं जमा सकें। पूरी की पूरी रणनीति दिल्ली के मामले में फेल कर गई। बीजेपी आज भी इस ़गम को 21 साल से अपने सीने में छुपाए हुए अंदर ही अंदर एक सूर में यही कह रही है कि मेरा दर्द न जाने कोय…।

दरअसल अमित शाह और मोदी  के जुमलेबाज़ी की जुगलबंदी मशहूर है। जब कोई जुमला ज़्यादा मशहूर हो जाता है तो फिर उसपर टीका और टिप्पणी का दौर भी शुरू हो जाता है। ऐसा ही एक दौर तब चला जब 2018 के सितम्बर महीने में अपनी कार्यकारिणी की बैठक में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह ने कहा था कि अगर बीजेपी 2019 का लोकसभा चुनाव जीत जाती है तो बीजेपी 50 सालों तक कांग्रेस की तरह पंचायत से लेकर संसद तक सत्ता पर क़ाबिज़ होगी।

अमित शाह ने तो यह जुमला कह दिया। अपने कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार कर दिया। लेकिन अमित शाह का यह जुमला उस दौर में काफी हिट कर गया। विरोधियों के साथ-साथ कुछ अपने गठबंधन मित्रों ने भी खुलकर नाराज़गी का इज़हार किया और अपनी राय   ज़ाहिर कर अमित शाह को आईना दिखाने की कोशिश की। इसी कड़ी में उस समय एक नाम काफी चर्चित रहा। वह नाम है-भाजपा नीत नार्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के घटक दल मिजो नेशनल फ्रंट का। मौजूदा मुख्यमंत्री और उस समय के पूर्व मुख्यमंत्री और मिजो नेशनल फ्रंट के सर्वेसर्वा जोरमथंगा ने यहां तक कह दिया कि अमित शाह के इस कथन पर मुझे संदेह है। उन्होंने कहा कि अमित शाह कोई भगवान नहीं हैं जो उन्होंने कह दिया कि उनकी पार्टी 2019 में लोकसभा का चुनाव जीत जाएगी तो देश में अगले पचास साल तक पंचायत से लेकर संसद तक शासन करेगी।

उन्होंने अमित शाह को आईना दिखाते हुए उस समय कहा था कि राजनीति में कोई भविष्यवाणी नहीं होती। उन्होंने आगे भी यह कहा था कि अमित शाह यह कह सकते हैं कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आएगी। लेकिन 50 साल या सौ साल की भविष्यवाणी करना अतिशयोक्ति है।

यही नहीं इस बयान पर कांग्रेस ने भी उस समय अमित शाह को अपने घेरे में घेरते हुए जमकर इसकी आलोचना की थी। उस समय राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कमान संभाला था।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने इस बयान पर अमित शाह और बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि अमित शाह का बयान भाजपा की फासीवाद सोच को उजागर करता है। उन्होंने इस बयान की निंदा करते हुए कहा कि इससे ऐसा लगता है कि उन्हें लोकतंत्र पर भरोसा ही नहीं है। उन्होंने तब इस पर चुटकियां लेते हुए कहा था कि एक बार और जीत जाओ फिर संविधान बदल दो और चीन व रूस की तरह पचास साल राज करो।

गहलोत ने शाह पर चोट करते हुए कहा कि अमित शाह ने अपने बयान से पार्टी और संघ की फासीवाद सोच को जाने-अनजाने में उजागर कर दिया है।

अपने बयान से चौतरफ़ा घिरे अमित शाह को केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का साथ मिला। उन्होंने कहा कि अमित शाह के बयान में कोई अहंकार नहीं है। यह बात उन्होंने प्रदर्शन के आधार पर ही कही है।

बहरहाल इस पर मचा शोर तो फिलहाल थम गया लेकिन नतीजों का शोर किस तऱफ से आएगा और किस तरफ़ जाएगा, सबके लिए अभी देखना बा़की है।