ए आर आज़ाद द्वारा संपादित पाक्षिक पत्रिका दूसरा मत की 19वीं वर्षगांठ

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सुशीला जोशी ‘विद्योत्तमा’

पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का प्रमुख व्यवसाय है, जिसमें समाचार एकत्रित करना, जानकारी हासिल करना लिखना, और बौद्धिक तथ्यों पर कस-परख कर जनता को परोसना शामिल है।   सरकारी-ग़ैरसरकारी कार्यों की बैठकों का विवरण जनता तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। इसीलिए यह लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। समाजिक, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, वैयक्तिक गतिविधियों में आपसी वैमनस्य, आपदा, षड्यंत्र, हिंसा आदि के द्वारा आए पल-पल परिवर्तनों से जनता को  सावधान करना पत्रकारिता द्वारा ही संभव है।  रिर्पोटिंग और लाइव टेलीकास्ट अर्थात किसी ख़बर को साक्षियों और तर्कों के साथ जनता के समक्ष रखना पत्रकारिता के प्राण-तत्व है, जिनके लिए पहले स्टूडियों, कैमरे,चार आदमियों की टीम, और भी न जाने क्या-क्या प्रयोग में लाए जाते थे। लेकिन आजकल यह काम एक हाथ के मोबाइल और माइक के ज़रिए अकेले एक शख़्स से भी संभव है। स्टूडियो के स्थान पर घटनास्थल या कोई भी प्राकृतिक स्थान, वीडियो, व्हाट्सएप या फेसबुक पर भी संभव है ।

सामयिक ज्ञान के व्यवसाय का दूसरा नाम पत्रकारिता है। दृश्यों व विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के माध्यम से जन-जन पहुंचा कर उन्हें जागरूक करने और रहने का काम पत्रकार का है। इसके अतिरिक्त किसी प्रबंधन के भीतर की उठापटक से भी परिचित कराना भी उसी का काम है।

ए आर आज़ाद पत्रकारिता के क्षेत्र में एक ऐसा नाम उभर कर आ रहा है, जो पिछले 20वर्षों से देश की हर गतिविधि पर अपनी पैनी नज़र रखे हुए हंै और प्रबंधन के भीतर व बाहर की गतिविधियों  पर अपनी विश्लेषात्मक विचार, अपनी राष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका  दूसरा मत के माध्यम से जनता तक भेजकर उसे जागरूक बना रहे हंै।

पत्रकार यद्यपि देश, जाति, समुदाय, वर्ग विशेष से ऊपर उठकर पत्रकारिता करता है। किंतु कभी-कभी स्थिति विशेष का दबाव होने के कारण पत्रकार की विचार शैली और प्रस्तुति में अंतर भी देखा गया। मैं पिछले तीन वर्षों से ए आर आज़ाद द्वारा संपादित पाक्षिक पत्रिका-दूसरा मत पढ़ रही हूं। लेकिन किसी भी सांप्रदायिक स्थिति से ऊपर होकर बड़ी सावधानी से अपने विचार लोगों के सामने रखते आए हैं। उनकी संपादकीय में ज़माने की कुंठा बोलती है तो गरीब के स्वर की सिसकी भी सुनाई देती है। साहित्य के शब्द भी प्रभावित करते हैं। विश्लेषण की बुद्धि का उजास भी झलकता है। लेकिन विवाद कहीं खड़ा दिखाई नहीं देता। उनके काम में लगन, निष्ठा, बुद्धिमानी और सावधानी झलकती है।

आशा करती हूं कि अलगे दशक में उनकी पत्रिका- दूसरा मत दैनिक समाचार-पत्र बनकर लोगों के हाथों में आए और भारत देश के लिए गौरवशाली सम्मान दिलाने में अग्रगणी रहें।

(लेखिका-वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

मैं पिछले तीन वर्षों से ए आर आज़ाद द्वारा संपादित पाक्षिक पत्रिका-दूसरा मत पढ़ रही हूं। लेकिन किसी भी सांप्रदायिक स्थिति से ऊपर होकर बड़ी सावधानी से अपने विचार लोगों के सामने रखते आए हैं। उनकी संपादकीय में ज़माने की कुंठा बोलती है तो गरीब के स्वर की सिसकी भी सुनाई देती है। साहित्य के शब्द भी प्रभावित करते हैं। विश्लेषण की बुद्धि का उजास भी झलकता है। लेकिन विवाद कहीं खड़ा दिखाई नहीं देता। उनके काम में लगन, निष्ठा, बुद्धिमानी और सावधानी झलकती है।