ए आर आज़ाद
राजद्रोह यानी देशद्रोह से जुड़ी धारा 124 ए कितनी ख़तरनाक है, इसका अंदाज़ा आपको इसी से लग जाएगा कि इस धारा को देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी कांग्रेस ने भी मौजूदा दौर के लिए अनुपयोगी और ग़ैर-ज़रूरी माना है। इसकी वजह भी साफ है। यह क़ानून देश और देश की मौजूदा हालात में बेमाने हैं। लेकिन यही क़ानून किसी भी निरंकुश सरकार के लिए उसके हाथ की तलवार और उसकी ता़कत होती है। वह इसी ता़कत और इसी हथियार की बदौलत अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचल देती है। क्योंकि राष्ट्रद्रोह या देशद्रोह की धारा ऐसी धारा होती है, जो इस लपेट में आ जाता है, उसकी साख भी जाती है और समाज से भी उसकी उपयोगिता ख़त्म हो जाती है। यानी जिस पर इस धारा का इस्तेमाल क्या जाता है-वह कहीं का नहीं रहता।
ऐसे हथियार का सरकार मनमा़िफ़क इस्तेमाल करती है। अपनी रंज़िश को मिटाने के लिए भी कई बार इसका प्रयोग होता हुआ मामला सामने आया है। यही वजह है कि हर तरफ के बौद्धिक वर्ग से इसके ़खात्मे के लिए अपील और सुझाव आते रहते हैं। लेकिन सरकार इस मामले पर कान में तेल डालकर पड़ी रहती है। और आप जितना भी शोर मचा लें, सरकार के कानों में जूं नहीं रेंगती हैं। और इस तरह से समाज के बुद्धिजीवी वर्ग की यह मांग और इस मांग को मनवाने के लिए उठाई जाने वाली आवाज़ें नक्काऱखाने में तूती बनकर रह जाती हैं।
यही वजह है कि 2019 के लोककभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में धारा 124 ए को ़खत्म करने का ज़िक्र किया था। कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए, जो कि देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है; जिसका दुरुपयोग हुआ। और बाद में नए ़कानून बन जाने से उसकी महत्ता भी समाप्त हो गई है, उसे ख़त्म किया जाएगा।
यानी 2019 में कांग्रेस को यह सद्बुद्धि आ गई थी कि यह क़ानून ख़तरनाक है और इसे ख़त्म किया जाना लाज़मी है। इसलिए कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में संजीदगी के साथ इसका ज़िक्ऱ किया था। लेकिन मौजूदा सरकार भी क्या इस अमानवीय और ग़ैर-ज़रूरी धारा को ख़त्म करने का मन बनाएगी? अभी भी यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है।