ए आर आज़ाद
आपको बता दें कि जिस तरह से रोजा तोड़ने का गुनाह है उसी तरह रोजा छोड़ने का भी गुनाह है। रोजा छोड़ने का गुनाह की एक खास श्रेणी में रखा गया है। इसे गुनाह ए कबीरा माना गया है। गुनाह ए कबीरा का मतलब है, एक ऐसा पाप, जिसकी माफी नहीं होती है। इसलिए कि रोजा रखने का मर्तबा भी बुलंद रखा गया है। इस्लाम के संदेश के मुताबिक रोजे को लेकर अल्लाह अपने बंदों से कहता है,- रोजा सिर्फ मेरे लिए है और रोजे का इनाम मैं खुद अपने बंदों को दूंगा। यानी वह खुदा जो महान है। और जब वह अपने बंदों को रोजा का इनाम अपने हाथों से देगा तो वह इनाम भी कितना बड़ा और कितना अनुपम होगा। तो फिर हम क्यों न अपने अल्लाह के हाथों से इनाम का तोहफा लेने के लिए रोजा रखें। और इतने बड़े मौका को रोजा न रखकर क्यों गवाएं? यह एक बड़ा सवाल है। इस सवाल पर हर उस मुसलमानों को सोचने की जरूरत है, जो इस पाक महीने और अल्लाह की इस नेमत को लेने से इंकार कर देते हैं। दरअसल जब आप सबकुछ जानते हुए भी रोजा नहीं रखते हैं तो इसका मतलब है कि आप अल्लाह के फजल का इंकार करते हैं। इसलिए जिन स्थिति और परिस्थिति में रोजा न रखने की छूट दी गई है, उसी स्थिति और परिस्थिति से मुबतला लोग रोजा न रखें। लेकिन डॉक्टर, शूगर और छोटी-छोटी बीमारियों और भूख और प्यास बर्दाश्त न होने का बहाना बनाकर रोजा से बचने की कोशिश करने वालों को अपनी इस आदत को इस रमजान से बदल देनी चाहिए। इसलिए कि जो रोजा के सिद्धांत हैं, उसपर अमल करें। अपने सिद्धांत को रोजे के सिद्धांत पर थोपने की कोशिश न करें।