बेगूसराय के पोशीदा समाजसेवी मनहर देव से दूसरा मत के संपादक ए आर आज़ाद की खास बातचीत
आप राजा परिवार से आते हैं अपने परिवार की सबसे बड़ी उपलबधि क्या मानते है?
पहली बात तो हम लोग राज-परिवार से नहीं हैं। हम लोग ज़मींदार-परिवार से हैं। मेरे पिताजी को लोग प्रेम से ‘राजा जी’ कहते थे।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?
सबसे बड़ी उपलब्धि पिताजी की यह रही कि उन्होंने एक किसान को डकैतों से बचाने के लिए अपने एक हाथ खो दिया, जिसके लिए तत्कालिक ब्रिटिश सरकार ने उनको एक रॉयल लाइसेंस फ़्री रिवाल्वर दिया और जॉर्ज मेडल के लिए उनका नाम फॉरवर्ड किया और उनको वो जॉर्ज मेडल मिला जो माउंट एवरेस्ट टेजिंग को मिला था।
आपके परिवार की इस जि़ले को क्या देन है?
हमारे परिवार की इस जि़ले के लिए जो देन है, वैसी देन किसी और परिवार की नहीं है। हमारे परिवार ने यहां बीपीएच स्कूल खोला। ब्रह्मदेव प्रसाद के नाम से यह स्कूल है। ब्रह्मदेव प्रसाद जी हमारे पिताजी के बाबा हैं। उनके बाद हमारे पिताजी चंद्रचूड़ देव ने बेगूसराय रेलवे स्टेशन के ठीक सामने ज़मीन ख़रीद करके धर्मशाला बनवाया। अपनी दादी जयंती कुमारी के नाम से जे. के. स्कूल खुलवाया। बाद के दिनों में कुछ लोगों ने कहा कि राजा जी यहां कोई तीर्थ स्थान है, जहां कोई धर्मशाला में आकर ठहरेगा?
इतना पैसा ख़र्च कर रहे हैं बच्चों के लिए, कोई अंग्रेज़ी स्कूल नहीं है तो एक अंग्रेज़ी स्कूल बनवा देते तो बच्चों को सुविधा होती और आपका कीर्तिमान रहता।
तो ख़ैर उन्होंने एग्रीमेंट बनाकर के नया एक्ट बना दिया और उसमें संशोधन करके कुछ ज़मीन स्कूल के लिए दिया गया। जो स्कूल की बिल्डिंग के दोनों तरफ़ की ज़मीन थी उसपर जयंती कुमारी इंग्लिश हाई स्कूल बनाया गया। बाद में इसका अधिग्रहण हुआ, सरकारीकरण हुआ। और अतिक्रमण हो गया।
नई नस्ल आपके परिवार से अनजान हैं। आज की नई नस्ल के लिए इस घराने की क्या देन है? अपने घराने के बारे में विस्तार से बताइए जो आपके पूर्वजों ने किया। कोई ऐसी चीज़ को लोगों को जानना चाहिए।
हमारे घराने ने शुरू में एजुकेशन पर ध्यान दिया। फिर एजुकेशन के साथ-साथ उन्होंने लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान दिया। लोगों के स्वास्थ्य के लिए होम्योपैथिक दवाखाना खुलवाया। बाद में ज़हन में आया कि आदमियों का तो इलाज हो जाता है किंतु पशुओं का इलाज नहीं हो पाता है। उसके लिए उन्होंने बेगूसराय में मवेशी अस्पताल का निर्माण करवाया, जो आज भी मवेशी अस्पताल है।
कहां पर है यह अस्पताल?
बेगूसराय स्टेशन के सामने। आजकल के हिसाब से बेगूसराय की बड़ी पोखर के सामने।
किन के नाम पर है यह अस्पताल?
जगतधर नारायण प्रसाद। यानी बाबू जी के पिताजी के नाम से। मेरे बाबा के नाम से जो बोर्ड था वह भी हट गया और दाता का नाम भी हट गया। इसमें लाइन क्लाज था कि इसका केवल मवेशी के उपचार के लिए ही इस्तेमाल होगा, दूसरा कोई इसका उपयोग नहीं किया जाएगा। अगर दूसरा कोई उपयोग होगा तो रिवर्ट बैक हो जाएगा दाता को।
तो अभी क्या पोजीशन है। आप उससे संतुष्ट हैं?
हमलोग कहीं संतुष्ट नहीं हैं। हमलोग अब अलग कट गए हैं सबसे। अभी चमक-धमक का ज़माना है। हमलोग उस में फिट नहीं बैठते हैं।
अच्छा हवाई अड्डा आप ही के परिवार की देन है?
नहीं।
आपके पिताजी आपके प्रेरक रहे या आपको बाबा से ज़्यादा प्रेरणा मिली?
बाबा को तो हमने देखा ही नहीं। पिताजी 10-12 साल के ही थे कि बाबा जी गुज़र गए। इतनी बड़ी जमींदारी थी। दादी जी श्रीश्री प्रकाश जो महाराष्ट्र के गवर्नर थे और कुछ दिन तक पाकिस्तान के एंबेसडर भी रहे, उनसे प्रेरणा पिताजी को मिला। पिताजी से प्रेरणा हमको मिली। चूंकि यहां पर हमेशा से अटल जी का, कैलाश पति जी का और जो जनसंघ के लोग थे, उनका आना-जाना लगा रहता था। संघ परिवार के परम पूजनीय गोलवलकर जी का दर्शन हुआ। संघचालक जी का दर्शन हुआ।
वो घर तक आते थे कि कहीं मीटिंग में?
घर पर भी आते थे, मीटिंग में भी जाते थे।
आपकी ज़मींदारी का विस्तार कहां तक था, उस ज़माने में और आज कहां तक है?
ज़मींदारी के बारे में हम बहुत कुछ नहीं जानते हैं क्योंकि जिस समय ज़मींदारी इवोल्यूशन हो गया, बहुत छोटे थे। 1947 के आसपास हो गया था। हम लोग बहुत छोटे थे 44-45 तक का तो मेरा जन्म ही है। हां, बचपन में कुछ ध्यान है सिपाही पहलवान रहता था, वो सब रौनक थोड़ा-बहुत देखा है। घोड़ा, गाड़ी, हाथी वग़्ौरह देखा है।
आपका उस ज़माने का ओरिजिनल घर उस साइड है या यही है?
यही है।
अच्छा जिसमें आप रह रहे हैं यही है?
यह हमारे बाबा साहब का घर है।
यानी पुश्तैनी मकान है यह आपका?
जी जी, काफी बड़ा मकान है। पुश्तैनी है। जब सर रदरफोर्ड यहां पर थे लाट साहब तो वो यहां आए थे।
तो आजादी के बाद राजनीति में आपके परिवार का क्या योगदान रहा है?
राजनीति में पिताजी रहे।
किस पार्टी से जुड़े रहें?
शुरू में कांग्रेस में थे। बाद में कुछ डिफरेंस हुआ कुछ कारण हुआ। कुछ जातिवाद हुआ यह जो भी कारण हुआ हो, कांग्रेस छोड़ करके उनका रुझान जनसंघ की तरफ हुआ। जनसंघ से लड़े। सात बार बेगूसराय, बलिया विधानसभा से लड़े। अंत में दो बार जीते।
कहां से जीते?
बलिया विधानसभा से दोनों बार जीते।
लेकिन उन्होंने चुनाव सात बार लड़ा?
जी सात बार।
आख़िरी बार किस साल उन्होंने चुनाव जीता। कुछ याद है?
1977 में।
आपने कभी राजनीति में दिलचस्पी ली?
इच्छा तो रही। लेकिन पारिवारिक जि़म्मेदारी के कारण मेरी हिम्मत नहीं हुई। मैंने पिताजी को देखा उनके राजनीति में जाने से परिवार को परेशानी हुई। मेरा अपने परिवार के प्रति थोड़ा ज़्यादा झुकाव था। बच्चों को जब हमने सेटल कर दिया। लड़कियों की शादी हो गई। लड़का डॉक्टर हो गया। उसके बाद रुझान मेरा बीजेपी की तरफ हुआ।
शुरू से ही था बीजेपी की तरफ़ रुझान?
हम मीटिंग में जाते थे अलग से रहते थे। एक्टिव नहीं रहते थे। कुछ लोगों ने देखा जब श्री कृष्ण बाबू जि़ला अध्यक्ष हुए तो उन्होंने हमको अपनी तरफ़ खींचा। हमको जि़ला उपाध्यक्ष बनाया। बाद में ऐज प्रॉब्लम होने लगा तो विश्व हिंदू परिषद पकड़ लिया। विश्व हिंदू परिषद में पहले प्रांतीय उपाध्यक्ष थे। अभी कार्य कमेटी के सदस्य हैं।
तो क्या इसमें एक्टिव हैं या स्वास्थ्य एक्टिव नहीं होने दे रहा है?
एक्टिव तो हम रहते हैं। जब बुलावा होता है काम करते हैं। हमसे प्रवास नहीं हो पाता है। प्रवास का चलन जनसंघ में भी था, संघ में भी है। बीजेपी में भी है और विश्व हिंदू परिषद में भी। खगड़िया जाकर दो दिन रहना, कटिहार जाकर तीन दिन रहना। इसी तरह अन्य स्थानों में जाकर रहना। किसी के आवास में रहना हमको सूट नहीं करता है।
आप में समाज सेवा की भावना कैसे जगी?
शुरू से ही। लगता है ब्लड से ही आया है। हमें कोई सिखाया नहीं।
स्वत:स्फूर्त?
हां, स्वत:।
आप बच्चे थे आपने ज़मींदारी देखी या पिताजी का भी वो दौर-दौरा देखा तो आपको क्या लगा एक ज़मींदार जो शासक होता है वो कभी-कभी शोषण भी करने लगता है। क्या आपको कभी लगा कि प्रजा के साथ कुछ और बेहतर हो सकता था?
उस समय उतना ज्ञान नहीं था।
पिताजी के बाद आपने अपने दायित्व का निर्वहन किस तरह किया। कैसे संभाला इन सारी चीज़ों को?
पिताजी के समय में ही। पिताजी ने अपनी प्रॉपर्टी का हिस्सा लगा दिया था। पार्टिशन कर दिया था। माता जी के नाम से पिताजी के नाम से मेरे नाम से और मेरे बड़े भाई के नाम से। जिनकी जो प्रॉपर्टी थी, अपनी देख-रेख करने लगे।
आपका सपना क्या था। कितना पूरा हुआ कितना अधूरा रह गया?
ऐसा कोई सपना था भी नहीं। पालन-पोषण में बच्चों का जीवन व्यतीत हो गया और जब सपना हुआ तब तक उम्र निकल गई। हमारे परिवार की इतनी देन थी। हमलोगों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए थी लेकिन वैसा कुछ देखने को मिला नहीं। और वैसी कुछ मैंने कोशिश भी नहीं की। आजकल धन -बल की चलती है। इसलिए हम नहीं कर पाए।
जिस परिवार ने समाज के लिए इतना कुछ किया, उस परिवार को समाज प्रतिष्ठा मात्र भी नहीं दे सका? आ़िखर क्यों?
नहीं, नहीं देता है।
आपने राजतंत्र और लोकतंत्र दोनों को क़रीब से देखा। निष्पक्ष भाव से आप जब इसका अवलोकन करते हैं तो कैसा महसूस होता है?
हम नहीं कह सकते हैं कि जो ज़मींदारी प्रथा थी वह बहुत ख़राब थी। यह बात भी हम नहीं कह सकते कि अभी जो प्रजातंत्र है यह बहुत अच्छा है। अच्छाई बुराई दोनों में है। अभी बीडीओ ओर सीओ को ये राइट नहीं है कि वो किसी का लगान माफ कर दे। लेकिन हमलोगों को यह अधिकार था कि हम किसी का भी लगान माफ़ कर सकते थे। यह सबकुछ बेसिक डिफरेंस था। कुछ बड़े हुए तो इसे समझ पाए, तब तक समय निकल गया था।
आपके परिवार की और क्या देन है?
बहुत से मंदिर बनवाए। पिताजी ने नहीं बल्कि पिताजी की दादी ने।
मंदिर के नाम और जगह?
एक मंदिर हमलोगों का मथुरा में है- स्वामी घाट पर उलाव की रानी के नाम से; कृष्ण भगवान का मंदिर। दूसरा मंदिर है उलाव में राधे श्याम मंदिर। इसे लोग राज मंदिर भी कहते हैं। इसमें राधा-कृष्ण विराजमान हैं। चोरी हो गई मूर्ति। अष्ट धातु की मूर्ति थी।
यह कब की बात है?
पांच सात साल हो गए।
अच्छा यह इधर हाल-फिलहाल की बात है!
जी! उसके बाद हमने स्वयं जयपुर से मूर्ति बनवा कर प्राण प्रतिष्ठा करवाया। भागवत कथा करवाई। किसी ने फेसबुक ई-बुक, सोशल मीडिया पर डाल दिया। वहां से चांदी का दरवाज़ा और चांदी का सिंहासन ले गया।
एक मंदिर सिंघौल पोखर पर है जो कि बल्लव कुल संप्रदाय का है। महाराज बनारस काशी नरेश नहीं। एक तरह से समझिए इस मंदिर के एजेंसी हैं हमलोग। उसमें सेवा भाव होता है, भगवान का। गोपाल लाल की सेवा होती है और वो मंदिर है। काफी प्रॉपर्टी थी लेकिन प्रॉपर्टी रखना संभालना अब बस की बात नहीं है। और ख़ासकर के समाज विशेष की संपत्ति अगर हो तो चारों तरफ़ से गिद्ध दृष्टि उसपर लग जाती है। चाहे वो छोटे नेता हों, बड़े नेता हों, सरकारी महकमा हो- सबकी नज़र रहती है। बहुत परेशानी होती है भगवान की चीज़ को संभाल कर रखने में। क्योंकि इसमें लोगों की सेवा भाव नहीं है।
राम सुमरण शिल्प शाला की कहानी क्या है?
इसे बाबा साहब ने बनवाया था। राम सुमरन बाबू यानी बाबूजी के ताऊ जी। पिताजी के ताऊ जी क्योंकि उन्हें लड़का नहीं था। कुछ लोगों ने उन्हें सलाह दी कि बच्चों के लिए क्यों परेशान होते हैं? आप एक बच्चे के लिए परेशान हैं, हम व्यवस्था कर देते हैं आपको जितना बच्चा चाहिए। इसी के मद्देनज़र राम सिमरन शिल्पशाला और अनाथ निधि
ट्रस्ट बना दिए गए। उस समय बच्चे कम आते थे लेकिन व्यवस्था पूरी रहती थी- खाना, कपड़ा पोशाक सब का प्रबंध था। बाद में सरकार का एड मिलना बंद हो गया। एड लेने के लिए भी एड देना पड़ता था। तो यह हमको अच्छा नहीं लगा। हमने छोड़ दिया।
यह ग्रांट कब से मिलना बंद हुआ?
हो गया 15 साल से ज़्यादा का समय। मिलता भी था तो बड़ी परेशानी से।
आपका मौजूदा परिवार आज कहां खड़ा है, यानी उसके सदस्य कौन-कौन हैं और क्या कर रहे हैं?
हमारे परिवार में हम विंग वाइज बताएं या ख़ाली अपने विंग का!
अपने विंग का?
एक लड़का है, तीन लड़कियां हैं। तीनों लड़कियां अपने-अपने ससुराल में है। सुखी है, संपन्न हैं। सभी पढ़े-लिखे लोग हैं। कोई इंजीनियर है, कोई जॉब में हैं। कोई अपने बिज़नेस में हैं। एक लड़का है- डॉ. मनीष। वह डेंटल सर्जन हैं। इसके साथ एक बहुत बड़ा विद्यालय माउंट लिट्रा किडजी चला रहे हैं। बहू भी इसे चला रही हैं।
अब कुछ देश की बात। क्या आप देश के मौजूदा हालात से प्रसन्न हैं?
मौजूदा हालात बहुत अच्छा है। जो 70 साल में नहीं हो सका, वह अब हुआं।
अपने अनुभव से बताएं कि बिखरे समाज को कैसे एकजुट किया जा सकता है?
समाज बिखर रहा है लोग समझ रहे हैं। लेकिन हम लोग की आदत दूसरी तरह की है। हमलोग अपने माता-पिता की बात नहीं सुनते। हमलोग विदेशों से कुछ आयात होता है तो वह बात समझते हैं। जब तक योग था तो हमलोग नहीं समझते थे कि योग इतनी बढ़िया चीज़ है। जब योगा हो गया तो हम लोग समझ गए कि योग करना चाहिए।
यानी यह हमारी मानसिकता हो गई है। मतलब पश्चिम सभ्यता का अनुसरण करना!
नक़ल करना। वो भी बिना समझे हुए। हमारे परिवार के लोग और पूर्वज हल्दी का सेवन करते थे। चोट लगी या सर्दी बुखार हो गया तो हल्दी का दूध पीने को दिया जाता था। लेकिन अब कोई आज इसे पीना नहीं चाहता है। कैप्सूल खा लेगा लेकिन हल्दी का दूध नहीं पीना चाहेगा।
इसकी वजह यह भी हो सकती है कि हल्दी नक़ली आने लगी है?
नहीं नहीं। नक़ली क्या? वैसा थोड़ी है। दरअसल घरेलू नुस्ख़ों का प्रयोग करना बंद कर दिया गया है। वही हल्दी का दूध अगर 500 रुपए गिलास विदेश में मिलेगा तो उसको ‘टरमरिक मिल्क’ कहकर ज़रूर पी लेंगे।
भारत की मानसिकता ही ऐसी है क्या?
नहीं ये पांश्चात्य सभ्यता हो गई है। धीरे-धीरे
हमलोगों की नक़ल करने की मानसिकता बन गई है। अटल जी बराबर बोलते थे। कई बार अटल जी के भाषणों में सुना है- नक़ल करने के लिए भी अक़्ल की ज़रूरत होती है। और अक़्ल नहीं होती है तो शक़्ल भी बिगड़ जाती है। यही स्थिति है आज।
आप की शिक्षा-दीक्षा कहां हुई और कहां तक हुई?
मेरी शुरूआती एजुकेशन तो राजघाट बेसेंट स्कूल से हुई। यह स्कूल एनीबेसंट का बनाया हुआ था। पिताजी की भी यही से शिक्षा हुई थी।
दिल्ली या और और कहीं?
राजघाट बनारस में।
बनारस, कोई ़खास वजह?
क्योंकि मेरा ननिहाल और दधियाल भी बनारस ही है। इसलिए बनारस से लगाव था। वहां भी कोठी है फिर भी हम हॉस्टल में रहते थे। हमलोगों की पढ़ाई वहीं से हुई। उसमें इंग्लिश-हिंदी दोनों माध्यम था। हमलोगों को वहां अपनी जूठी थाली ़खुद से उठाने की शिक्षा दी जाती थी। यही आदत आज भी बनी हुई है। नौकर आदि के रहने के बावजूद आज भी हम अपनी थाली ़खुद उठाते हैं।
दूसरी अच्छी आदत बचपन में जूठा नहीं छोड़ने की डाली गई। आज भी हम उतना ही लेते हैं, जितने खा सकें। यह सब स्कूल की देन है।
स्कूली शिक्षा के आगे कहां तक विद्या हासिल की?
स्कूली शिक्षा के आगे बीएचयू तक गए। बीकॉम पार्ट वन किया लेकिन फिर शादी हो गई। मां का निधन हो गया। फिर मेरी शिक्षा छूट गई।
उसके बाद कोई व्यापार किया?
हां व्यापार किया। टाइल फैक्ट्री चलाया। फ्लोर टाइल बनाया।
कहां और किस शहर में?
यहीं बेगूसराय शहर में।
कब तक चला?
तक़रीबन 1999 तक चला। उसके बाद कोई बिजनेस नहीं किया, जो चीज है प्रॉपर्टी उसकी देख-रेख कर रहे थे।
कुछ याद है कि आज़ादी की लड़ाई में आपके परिवार का क्या योगदान था?
आज़ादी की लड़ाई में बाबूजी का योगदान था। उस वक़्त हम थे ही नहीं तो क्या बताएं।
कुछ सुनी, कुछ सुनाई हुई बात?
जो लोग उस समय जेल गए थे, उन लोगों को छुपाना, लोगों की आर्थिक मदद करना और जेल से निकलने के बाद उनको सम्मानित करने का काम किया जाता था। इसी वजह से उनको जो ऑनरेरी शिप मिली थी उसे भी गंवा दिया। वो ब्रिटिश सरकार के ऑनरेरी पावर ऑफ़ मजिस्ट्रेट थे। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में दिलचस्पी लेने की वजह से उनको ऑनरेरीशिप छोड़नी पड़ी।
मतलब अंग्रेज़ों की नज़र में चढ़ गए थे?
जी।
एक अहम सवाल है कि भारत विश्व गुरु कैसे बन सकता है?
जब हम अपने संस्कार को जीवित करेंगे।
संस्कार कैसे जीवित होगा?
संस्कार जीवित होगा किसी पढ़ाई-लिखाई से नहीं बल्कि संस्कार जीवित होगा गाय और गंगा से।
थोड़ा और इसको डिफाइन कर दीजिए कि किस तरह गाय और गंगा से संस्कार जीवित होगा?
गौ का हमको सेवा करनी है। गंगा को स्वच्छ करना है। अपने अध्यात्मिक चीज़ का ध्यान देना है। सर्व धर्म समभाव हमलोगों का है।
यही सबसे बड़ी चीज़ है। सर्वधर्म समभाव, विभिन्नता में एकता और गंगा जमुनी संस्कृति को ़कायम रखना ज़रूरी है। क्या इस बात को आप मानते हैं ना?
एकदम ।
क्या आपको लगता है भारत कभी विश्व गुरु बन सकता है?
एकदम बनेगा।
आपको यह उम्मीद है कि यह आपकी आंखों के सामने होगा?
इतनी जल्दी नहीं। जिस चीज़ को करने में 70 साल लग गया, उस चीज़ को करना इतना आसान नहीं है। लेकिन होगा।
आप इसे सपने के तौर पर देख रहे हैं?
नहीं विश्वास के तौर पर।
अच्छा आपने दूसरा मत को देखा-पढ़ा। दूसरा मत पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
स्पष्ट लिखते हैं। निर्भय होकर लिखते हैं। हर छोटे-बड़े लोगों का इंटरव्यू लेते हैं। यह एक बहुत बड़ी बात है। मेरी शुभकामना है।
आप पत्रिका को पसंद करते हैं?
जब आती है, तब पढ़ते हैं।