अमरोहा के डिप्टी कलक्टर मांगेराम चौहान से दूसरा मत के संपादक ए आर आज़ाद की बातचीत

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ज़मानत की शर्त को हरित बंध-पत्र में बदल दिया

आपमें पर्यावरण और पौधों को लेकर कुछ करने के पीछे की कहानी क्या है?

यह 2019 की बात है।  जब मै एक न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ सुन रहा था, जिसमें पालम हवाई अड्डे के टेंपरेचर को 48 से 50 डिग्री बताई गई थी। इस न्यूज़ को सुनकर जैसे में तहसील पहुंचा तो वहां पर क्षेत्रीय थाने द्वारा मेरे समक्ष सीआरपीसी की धारा 151 के अंतर्गत दो अभियुक्तों को पेश किया गया। जिससे शांति भंग की आशंका थी। जब मैंने उनसे झगड़े का कारण पूछा, तो दोनों मेरे समक्ष लड़ने लगे। तब मुझे एहसास हुआ कि तापमान पृथ्वी का ही नहीं, लोगों का भी बढ़ा हुआ है। तभी विचार आया कि लोगों और पृथ्वी के तापमान को कम करने के लिए कुछ काम किया जाए। इस तरह से सोचा कि पृथ्वी का तापमान जैसा हमारे वनस्पति वैज्ञानिक बताते हैं कि वृक्ष लगाकर किया जा सकता है और लोगों का तापमान कम करने के लिए उनको रचनात्मक कार्य दिया जा सकता है।

इसकी शुरूआत आपने कहां से और कैसे की?

हमारे यहां जब एक अभियुक्त आते हैं तो उनके दो ज़मानती भी होते है। ज़मानत लेने के लिए आते है ये लोग। हमने ज़मानत की शर्त को हरित बंध-पत्र में बदल दिया। यानी हरित ज़मानत उसको कहा, जिसमें जो अभियुक्त है, उसको पांच पेड़ अपने ख़र्चे पर लगाने थे, और वो उसकी पसंद के पेड़ होने थे। अपने घर, खेत पर लगा सकता था। जगह नहीं उपलब्ध हो तो हमारी बताई हुई सरकारी ज़मीन पर लगा सकता है। इनके साथ जो ज़मानती थे, उनको भी रचनात्मक काम के रूप में एक एक पौधा लगाने की जि़म्मेदारी दी गई।

इस सफ़र में कोई मुश्किलें या रास्ता सपाट है?

इस तरह से एक केस में ये सात पौधों की शुरुआत हुई। और धीरे-धीरे ये चीज़ें ऐसे ही बढ़ती चली गर्इं। और जब इस ओर गहनता से देखा गया तो पता चला कि सीआरपीसी पूरे देश में लागू है। उत्तर प्रदेश का एक डॉटा हम लोगों ने देखा तो लगभग- लगभग 78 लाख पेड़ प्रति वर्ष लोगों के ख़र्चे पर लगाए जा सकते हैं।

उसकी देखभाल को लेकर मन कभी आशंकित नहीं हुआ?

जो अपनी पॉकेट से पेड़  लगाता है, उसको पालने की क्षमता भी वह रखता है। उसके प्रति उसका मोह भी होता है। और उसमें एक एहसास भी जगता है कि वह भी दुनिया के प्रति अपने एक कर्तव्य को निभा रहा है। शुरुआत में यह सफर थोड़ा     मुश्किल तो नहीं था पर समझाने के लिए थोड़ा समय लगा।

किस तरह समझाना कठिन हो रहा था?

वकीलों को लगा यह चीज़ कैसे संभव होगी? उनको जब समझाया गया और प्रकृति में उनके भी योगदान को बताया गया तो उनकी भी समझ में बात आ गई। और धीरे-धीरे यह मामला चल पड़ा। जो हमारे ज़मानती थे, उन पर जो फीस का बोझ बढ़ता था, उसमें भी बहुत कमी आ गई। लोगों को पता लग गया कि यह एसडीएम महज़ सात पेड़ों पर ज़मानत देंगे। किसी को जेल नहीं भेजेंगे। इस तरह से इस योजना से लगभग 10 हज़ार से अधिक पौधे लग चुके हैं।

आप शहरी समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?

शहरी समाज के लोग जागरूकता फैलाने का काम कर सकते हैं। चूंकि उनके पास जगह की कमी है। जो वृक्ष सरकारी लगे हुए हैं उनको गोद लेकर या उनको रक्षा-सूत्र बांधकर अपना बना सकते हैं। इसके लिए हमने एक रक्षा बंधन भी बनाया है। वृक्ष सुरक्षा-बंधन बना, जिसमें सरकारी या आस पास लगे पांच पेड़-पोधों को रक्षा-सूत्र बांधकर उनको पालने की जि़म्मेदारी लोगों को दी।

लोगों में किस तरह आपने जागरूता फैलाई?

हमने वॉल पेंटिंग कराई, तहसील में वृक्षारोपण एवं जल संरक्षण की रैलियां निकाली। राशन उपभोक्ताओं के यहां शपथ-पंजिका रखवा कर उनको जोड़ा। इसके अतिरिक्त हम लोगों ने जो हमारे ऑफिस हैं, उनके बाहर शपथ लिखवाई। इसके अलावा जितने लोग धरना प्रदर्शन करने आते, उन्हें पहले शपथ दिलाई कि वृक्षारोपण करने, जल संरक्षण करने के लिए मैं लोगों को प्रेरित करुंगा-इसकी मैं शपथ लेता हूं। इस तरह से यह योजना बढ़ती चली गई।

आपके ‘परिणय’ पौधे का आपके संबंधियों पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ा?

जहां तक शादी का मामला है। अक्सर शादी समारोह में मुख्यता इसी बात पर जोर रहता कि शादी में क्या लिया गया और क्या दिया गया? जब मैंने शादी में आना-जाना शुरू किया, तभी से यह सवाल मुझे चुभता था। मैंने निर्णय किया था किसी की शादी में दहेज के बारे में बात नहीं करूंगा। अब मुझे शुभ अवसर मिला अपने पुत्र कि शादी करने का। परिवार ने मेरा साथ दिया। और जो रिश्तेदार थे, उनको थोड़ी-सी हिचक थी कि उचित होगा या नहीं होगा? लेकिन वे मान गए। वे सब इस बात से गदग़द हैं। उनकी नज़रों में इस बात को लेकर हमारे और सम्मान बढ़ गए। और वे भी चाह रहे हैं कि हम लोग भी इसे आगे इंप्लीमेंट करें।

आपके साथियों ने इस तरफ क़दम बढ़ाने का आपसे कोई वादा किया?

मेरे कुछ साथियों ने भी इसको इंप्लीमेंट करने का निर्णय लिया है। मैंने उनसे कहा कि वे और भी बड़ी लकीरें खिंचें। हम लोग पार्टी करते हैं उसमें भोजन भी काफी ख़राब होता है। उसको भी किसी तरह सीमित किया जाए।