आख़िर क्या है भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए?

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ए आर आज़ाद

 

दरअसल धारा 124 ए इंडियन पैनल कोड की वो धारा है, जिसके तहत राजद्रोह का क़ानून किसी पर आयद होता है। और इस धारा के तहत मौजूदा सरकार चाहे तो किसी को भी को इस क़ानून के लपेटे में ले सकती है। मसलन आप अगर कोई लेख लिखते हैं और वह लेख सरकार को पसंद नहीं है तो सरकार चाहे तो आपको इस लेख लिखने के जुर्म में आप पर इंडियन पैनल कोड की धारा 124 ए लगाकर आपको जेल भेजवा सकती है। अगर आप अपने पोस्टर से कोई संदेश देते हैं। और सरकार समझती है कि यह पोस्टर हमारे ख़िलाफ़ है तो यह आपका पोस्टर ही आपके लिए आपका जुर्म बन जाता है। और जब चाहे तब सरकार आपको धारा 124 ए के लपेटे में लपेट सकती है। यानी आपको जेल से लेकर सज़ा तक हो सकती है। इसी तरह कार्टून बनाना भी सरकार को नागवार गुज़रने पर आपके लिए ख़तरे की घंटी साबित हो सकती है। आप पर भी धारा 124 ए की तलवार लपलपा सकती है।

दरअसल यह क़ानून तो है वैसे लोगों के लिए जो देश की एकता और अखंडता को नु़कसान पहुंचाने की साज़िश रचता हो। इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो। और इस तरह के कारनामे को सार्वजिनक रूप से अंजाम देता हो। इसके साथ ही साथ अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है। सरकार विरोधी भाषा बोलता है। और इस तरह की सामग्री का समर्थन करता है। और उसे प्रोत्साहन देता है। देश के संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता हो। और राष्ट्रीय चिह्नों का अपमान करता हो। लेकिन जब सरकार और उसके मुखिया यानी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश और संविधान का मतलब ़खुद समझ बैठें तो फिर वे पत्रकारों के लेखन और विरोध में लिखे गए लेखों, कार्टूनों, भाषणों और पोस्टरों को भी भारतीय दंड संहिता 124 ए के दायरे में लाकर अपनी खुंदस मिटाने का प्रयास भी करते हैं। और जो नहीं करते हैं, वे भी भविष्य में इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। और इसके लिए सज़ा का भी प्रावधान है। इस क़ानून के दायरे में अगर सरकार किसी को भी लपेटती है तो उसे कम से कम तीन सालों की सज़ा होती है। इस सज़ा का अधिकतम प्रावधान उम्रक़ैद की सज़ा पर जाकर ठहरता है।

ज़ाहिर सी बात है कि धारा 124 ए को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और डराने का एक मज़बूत औज़ार बना दिया गया है। दरअसल सबको मालूम है कि मीडिया देश का सजग नागरिक है। उसका काम ही है देश को जगाना। जब आप देश को जगाते हैं तो ज़ाहिर है कि उसमें सरकार की कमियां भी निरुपित हो जाती हैं। अब अगर आप देश के लोगों और देश के लिए अपना नज़रिया पेश करते हैं। और आपके उस नज़रिए से सरकार को लगने लगता है कि वह पत्रकार सरकार विरोधी है, तो आपकी इस समझ के लिए पत्रकार कैसे दोषी? यह सवाल और यही सवाल इस धारा को समाप्त करने के लिए हमें और आपको बेचैन भी करता है कि क्योंकि देश प्रथम है। सरकार प्रथम नहीं। प्रधानमंत्री प्रथम नहीं। देश यथावत रहता है। सरकार आती और जाती हैं। प्रधानमंत्री आते और जाते हैं। प्रधानमंत्री का काम है शासन करना और बेहतर शासन करना। देश की पूरी जनता को एक समान देखना और एक समान सबके लिए नीति बनाना। लेकिन अगर किसी सरकार का मुखिया जनता विशेष को चुनकर अपमानित करे और जनता विशेष को पुरस्कृत करे तो फिर कलम को ख़ामोश भी नहीं रहना चाहिए। कलम को आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। और इस तरह की सरकार और उसके मुखिया की यानी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री और उस कैबिनेट की आलोचना करना कहीं से देशद्रोह नहीं, बल्कि यह देशप्रेम कहलाएगा।

ज़ाहिर है देश के बेबाक पत्रकारों को और निष्पक्ष पत्रकारों को सरकार का विश्वासपात्र बनने की जगह देश और समाज का विश्वासपात्र बनना चाहिए। समाज व देश को अपनी थाती समझनी चाहिए। और समाज व देश के लिए नु़कसान होने वाले हर पहलुओं पर निर्भिकतापूर्वक अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए।