यह अटल-आडवाणी की बीजेपी नहीं है क्या?

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ए आर आज़ाद

जितिन प्रसाद के बहाने कांग्रेस से बीजेपी में नेताओं के पलायन पर देशभर में एक नई बहस छिड़ गई है। बुद्धिजीवी अब यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि क्या वास्तव में बीजेपी के पास नेताओं की ऐसी कमी हो गई है कि उन्हें बाहरी नेताओं के लिए जाल फेंकना पड़ रहा है या मान-मनौव्वल करनी पड़ रही है या फिर उन्हें लालच के जाल में फंसाने की रणनीति पर अमल किया जा रहा है।

 

ऐसा इसलिए कि बीजेपी खुद को आदर्शवादी, विचारवादी और सिद्धांतवादी पार्टी कहती है। और जिस पार्टी में इन तीनों गुणों का समावेष हो, वह पार्टी बाहरी विचारधारा को आत्मसात करने के लिए पांव-पावरे क्यों बिछाना पसंद करेगी? इसका सीधा मतलब है कि आज की बीजेपी यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी मतलब अटल बिहारी वाजपेयी की बीजेपी से इतर और अलग है। इसका आशय यह भी लगाया जाना चाहिए कि
आज की बीजेपी अब आदर्शवादी, विचारवादी और सिद्धांतवादी पार्टी के तौर पर नहीं है। उसने अपना मुखौटा ही नहीं बदला है, बल्कि अपना सबकुछ बदल दिया है। अब उसे न तो विचारधारा से मतलब है और ना ही पार्टी के लिए सिद्धांत नाम की कोई चीज का कोई मतलब ही रह गया है।