बौद्ध धर्म के प्रति आंबेडकर की आस्था

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ए आर आज़ाद

अब सवाल उठना लाजमी है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कब और क्यों बौद्ध धर्म को आत्मसात किया। बौद्ध धर्म की छाप वैसे तो बचपन में ही चौथी क्लास की सफलता के बाद गिफ्ट में मिली पुस्तक से पड़ गई थी। लेकिन छूआछुत की परिणति और उससे ऊपजे विद्रोह की भावना ने भी उन्हें इसके लिए प्रेरित किया। और आज़ादी के बाद और अपने जीवन के अंतिम समय में उन्होंने खुलकर तथागत को आत्मसात कर लिया। इतिहास में दर्ज सबूतों के मुताबिक जब वे भिक्षुओं और विद्वानों को संबोधित करने के लिए सिलोन गए थे तो शायद वहीं से उनके मन में तथागत के प्रति आत्मसमर्पण करने का भाव पैदा हो गया था। यानी आप कह सकते हैं कि 1950 के बाद से ही उनके मन में बौद्ध धर्म को लेकर उत्कंठा हाबी हो गई थी। आपको बता दें कि सिलोन का नया नाम अब श्रीलंका हो गया है। 1954 में उन्होंने म्यानमार का दो बार दौरा किया। दो बार रंगून भी गए। और इसके बाद उन्होंने भारत में भारतीय बौद्ध महासभा का गठन भी किया। दरअसल बौद्धधर्म को अपनाने से पहले पुणे के पास नया बौद्ध विहार की स्थापना के मौके पर डंके की चोट पर कहा कि मैं बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक लिख रहा हूं। जैसे ही यह काम पूरा होगा, मैं औपचारिक रूप से  बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूंगा। और इस घोषणा के अनुरुप उन्होंने मरने से पहले यानी 1956 में अपनी पुस्तक को परवान पर चढ़ा दिया। हालांकि यह पुस्तक उनकी मौत के बाद 1957 में प्रकाशित हुई।

अब हम यह जानने की ये कोशिश करेंगे कि आंबेडकर ने अपनी इस पुस्तक के प्रस्तावना में क्या लिखा था। आंबेडकर ने अपनी बौद्ध धर्म की इस पुस्तक के प्रस्तावना में लिखा था कि, मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती। अगर एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है।। सभी धर्मों के  घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया।

दरअसल डॉ. भीमराव आंबेडकर में हिंदू धर्म के प्रति ही नाराजगी नहीं थी। बल्कि इस्लाम धर्म में व्याप्त कुछ कुरीतियों से भी वे विचलित थे। वे पर्दा प्रथा को भी महिलाओं के प्रति घोर अत्याचार मानते थे। वे पाकिस्तान बंटवारे के भी खिलाफ थे। और इतना ही नहीं उन्होंने धारा 370 का विरोध किया। दरअसल 5 अगस्त 1919 को जिस जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को एनडीए सरकार ने खत्म किया, उसे बहुत पहले से खत्म करने का इरादा डॉ. भीमराव आंबेडकर रखते थे। उन्होंने तो इसे वजूद और इसे बहाल करने पर ही सवाल उठाया था।

डॉ. भीमराव आंबेडकर का एक स्मारक दिल्ली के अलीपुर रोड पर है। 26 अलीपुर रोड के उनके मकान को आंबेडकर स्मारक के रूप में दुनिया के लिए खोल दिया गया है।