कर्नाटक में लगी ‘आग’ बिहार में धधकेगी! कहीं झूलस न जाएं मंत्री अशोक चौधरी

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वीरेंद्र यादव

जदयू के किसी एमएलसी को देनी पड़ सकती है ‘शहादत’

भवन निर्माण और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी लगातार राजनीतिक रूप से ‘टुअर’ होते जा रहे हैं। राजनीतिक रूप से लगता है कि अशोक चौधरी को मुख्य्मंत्री नीतीश कुमार का संरक्षण प्राप्त है, लेकिन व्यांहारिक रूप में राजनीतिक परिस्थतियां उनके प्रतिकूल होती जा रही हैं। हाल ही में आए सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय से उनका मंत्री बने रहना भी असंभव होता दिख रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने कनार्टक उच्चय न्याएयालय के फैसले पर मुहर लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि राज्य पाल कोटे से मनोनीत कोई भी विधान पार्षद मंत्री नहीं बन सकता है।

पिछले आठ महीने से ‘एक्सटेंशन’ पर चल रहे मंत्री अशोक चौधरी को भरोसा था कि राज्येपाल कोटे से विधान पार्षद बनकर मंत्री पद पर बने रहेंगे, लेकिन सर्वोच्चई न्यारयालय के फैसले से उनकी उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। कनार्टक की यदुरप्पाह सरकार ने एक व्यक्ति को राज्यपाल कोटे से एमएलसी बना दिया और उन्हें फिर मंत्री भी बना दिया। इसी मामले में उक्त एमएलसी को मंत्री बनाये जाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि मनोनीत एमएलसी मंत्री नहीं बन सकते हैं। उक्त व्यक्ति उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय चले गए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया है।

वर्तमान राजनीतिक हालत में अशोक चौधरी 16 मई तक मंत्री बने रह सकते हैं बिना किसी सदन की सदस्यता के। अब तक राज्यपाल कोटे से एमएलसी बनने की पूरी संभावना थी और इसी आधार पर उन्हों ने विधान सभा कोटे की रिक्त  हुई दो सीटों के माध्यम से परिषद में जाना उचित नहीं समझा। हालांकि एक अन्ये मंत्री मुकेश सहनी ने उपचुनाव के माध्यम से विधान परिषद पहुंचकर अपनी कुरसी दो वर्षों के लिए सुरक्षित कर ली।

अशोक चौधरी 2014 में कांग्रेस के टिकट पर राजद के सपोर्ट से एमएलसी बने थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जदयू का दामन थाम लिया। फिर उन्हें मंत्री बना दिया गया। उनका परिषद का कार्यकाल पिछले मई महीने में समाप्त हो गया था, लेकिन छह महीने तक मंत्री बने रहने में कोई अड़चन नहीं थी। उम्मीद थी कि विधान सभा कोटे की नौ सीटों के लिए होने वाले चुनाव में जदयू के कोटे से एमएलसी बन जाएंगे। लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। चुनाव पिछले साल अगस्त-सितंबर महीने में हुआ था।

अशोक चौधरी नई सरकार में फिर मंत्री बन गये। राज्यपाल कोटे में मनोनयन का पक्को भरोसा था। लेकिन इसमें भी संशय कायम था। पिछले साल महाराष्ट्र के राज्यपाल ने कैबिनेट के सदस्य को राज्यपाल कोटे से मनोनीत करने से मना कर दिया था और कहा था कि कैबिनेट अपने सदस्ये के नाम की सिफारिश नहीं कर सकता है। इसी कारण मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान सभा कोटे से चुनाव लड़ना पड़ा था। यही फार्मूला अशोक चौधरी पर भी लागू हो सकता था। लेकिन यह राज्यधपाल के स्वविवेक का मामला था और संभव है कि बिहार के राज्यपाल को कैबिनेट सदस्य के मनोनयन पर कोई आपत्ति नहीं हो। क्योंकि इस देश में संविधान की निष्ठा से ज़्यादा पार्टी की निष्ठा होती है।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने अशोक चौधरी के मंत्री बने रहने की संभावना को ही असंवैधानिक करार दिया है। कर्नाटक में लगी आग के बिहार में धधकने की संभावना बढ़ गयी है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में देंखे तो राज्यपाल कोटे से मनोनयन के बाद अशोक चौधरी मंत्री की बनने योग्यता ही खो देंगे। वर्तमान परिस्थिति में अशोक चौधरी को एमएलसी बनने के लिए मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा।

लेकिन सभी रास्ते बंद नहीं हैं। एक रास्ता है, जिसके माध्यम से अशोक चौधरी एमएलसी भी बन सकते हैं और मंत्री भी बने रहे सकते हैं। लेकिन यह राह आसान नहीं है। इसके लिए मई से पहले जदयू के विधान सभा कोटे से निर्वाचित किसी एक सदस्य को इस्तीफ़ा देना होगा। उस सीट पर उपचुनाव में अशोक चौधरी को उम्मीदवार बनाया जाए और निर्वाचित हो जाएं। अगले साल 2022 के जुलाई महीने में जदयू के पांच सदस्य  सीपी सिन्हा, तनवीर अख़्तर, रणविजय सिंह, गुलाम रसूल और कमरे आमल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। मुख्यमंत्री कुछ सौदे और शर्तों के साथ जदयू के किसी एक सदस्य को परिषद से इस्तीफ़ा दिलवा सकते हैं। उस सीट पर होने वाले उपचुनाव में अशोक चौधरी उम्मीदवार बन सकते हैं।

अशोक चौधरी की पिछले आठ महीनों से विधान परिषद की सदस्यता अधर में लटकी हुई है और अब मंत्री बनने की संभावना पर भी तलवार लटकने लगी है। वैसी स्थिति में राजनीति के खेल को देखने के अलावा जनता के पास कोई विकल्प नहीं है।