डॉ. कलाम की तरह सपनों को दीजिए उड़ान

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ए आर आज़ाद

 

आज हम आपको एक ऐसे प्रेरक पुरुष और देश की अममोल शख्सियत से रूबरू करा रहे हैं। आपने इस महान व्यक्तित्व को समझने का अगर प्रयास कर लिया तो आपने कामयाबी के पहले सोपान पर क़दम रखने का पहला पड़ाव पार कर लिया। मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे भारत रत्न कि जिन्हें देशवासी और पूरी दुनिया बड़ी ही आत्मीयता और सम्मान के साथ डॉ. कलाम कहकर संबोधित करती है।

जी हां! मैं बात कर रहा हूं आपके उसी प्यारे डॉ. कलाम की जो भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति रह चुके हैं। आज के तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे अबुल पाकिर जैनुल आबेदिन अब्दुल कलाम ने प्रोफेसर, लेखक, वैज्ञानिक और एयरो स्पेस इंजीनियर की शक़्ल में अपनी पहचान बनाई। उन्हें वैज्ञानिक के तौर पर सर्वाधिक जाना गया। दरअसल उन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन मतलब इसरो में रहते हुए अपनी विलक्षण प्रतिभा का लोहा मनवाया। बेलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण-यान में अपनी सोच और काम के जरिए विलक्षण प्रतिभा का डंका बजाया। यही वजह रही कि दुनिया ने उन्हें मिसाइल मैन के रूप में जगभर में स्थापित कर दिया। और एक के बाद स्वदेशी मिसाइल बनाकर दुनिया में भारत का नाम उजागर कर दिया। अग्नि और पृथ्वी मिसाइल उनकी देन है। पोखरण परमाणु-परीक्षण के जरिए डॉ. कलाम ने देश के मस्तक को पूरी दुनिया में ऊंचा कर दिया।

वैज्ञानिक के कई अहम ओहदों पर रहते हुए अपने कामों से सबको चकित और अचंभित किया। डॉ. कलाम की उपलब्धि लेखक, प्रोफेसर और वैज्ञानित तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्होंने सियासत में भी अपना आगाज सीधे देश के सर्वोपरि उच्च पद पर यानी राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर किया। 2002 में डॉ. कलाम राष्ट्रपति चुुने गए। एनडीए के उम्मीदवार होने के बावजूद वे 90 फीसदी बहुमत से भारत के राष्ट्रपति बने। डॉ. कलाम का कार्यकाल 18 जुलाई,2002 से राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही शुरू हुआ और 25 जुलाई, 2007 को निपुणता पूर्वक पद संभालते हुए समाप्त हुआ। एनडीए और यूपीए के खास पसंदीदा राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने अगली बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया। क्योंकि इस बार यूपीए ने उनपर भरोसा नहीं जताया था। विरोध से दूर रहने वाले और पक्षपात से गुरेज करने वाले डॉ. कलाम युवाओं के लिए प्रेरक बने रहे।

राष्ट्रपति रहते हुए भी और राष्ट्रपति के पद को छोड़ने के बाद भी उनकी पहली प्राथमिकता युवा रहे। उन्होंने युवाओं को कामयाबी का मंत्र देने के लिए स्कूल, कॉलेज, प्रौद्योगिकी संस्थानों आदि में जाते रहे, बच्चों से बात करते रहे; जीवन जीने की कला सीखाते रहे। जीवन से विष बाहर करने के लिए देशप्रेम का अमृत बांटते रहे। उनके युवा-प्रेम का सबूत- ‘विंग्स ऑफ फायर’पुस्तक है। यह उनकी जीवनी है। अपनी इस जीवनी की पुस्तक में युवाओं के मार्गदर्शन का पूरा ब्लू-प्रिंट तैयार दिखता है। आत्मिक विचारों के धनी डॉ. कलाम ने अपनी दूसरी पुस्तक- ‘गाइडिंग सोल्स- डॉयलॉग ऑफ द प्रपज ऑफ लाइफ’ लिखी। इस पुस्तक में आत्मिक विचारों का सुंदर समावेष है। उनकी पुस्तकों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। करोड़ों लोगों के हाथों तक पुस्तक पहुंची और जिन्होंने डॉ. कलाम के इन सुंदर विचारों को अपने मन-मस्तिष्क  में जगह दी, उनमें कामयाबी का पंख लग गया। वे तमिल में कविता लिखा करते थे। वेन्नई वाद्ययंत्र बजाने का उन्हें अच्छा-खासा शौक था। इसे बजाने में उन्हें असीम आनंद आता था। डॉ. कलाम भक्ति संगीत के भी मुरीद थे। वे हिंदू और मुस्लिम संस्कृति को साझे तौर पर आत्मसात करते रहे।

एक ़गरीब परिवार में जन्मा बालक किस तरह पढ़ाई-लिखाई में अव्वल आता गया आज उनकी उपलब्धि को देखकर मन में सवाल उत्कंठा बनकर हर किसी के मन में खड़े हैं। इनके पिता एक गरीब परिवार से थे। नाव बनाना और उसे किराए पर देकर गुजर-बसर किया करते थे। आमदनी का ज़रिया का दायित्व का बोझ इनके पिता पर कुछ ज्यादा ही था। दरअसल डॉ. कलाम के पांच भाई एवं पांच बहन थे। घर में तीन परिवार एक साथ रहता था। डॉ. कलाम के पिता निर्धन होते हुए भी कड़ी मेहनत, लगन, साहस और कुछ कर गुजरने की धुन में लगे रहते थे। ज़ाहिर है डॉ. कलाम पर भी पिता का प्रभाव पड़ा। और यही साहस, उत्साह, लगन और कुछ कर गुज़रने का जज़्बा उन्होंने बचपन में ही अपने पिता से जज़्ब कर लिया था।

पांचवी कक्षा में उनके शिक्षक ने पक्षी के उड़ने के विज्ञान को समझाने की कोशिश की तो छात्र जब नहीं समझ सके तो शिक्षक ने सभी छात्रों को समुद्र के किनारे उड़ते पक्षियों को दिखाकर सली़के से जब समझाया तो यह बात डॉ. कलाम के ज़हन में बैठ गई और उसी वक़्त उन्होंने तय कर लिया कर कि अब उन्हें विमान विज्ञान में जाना है। और कुछ ऐसा करना है, जिससे दुनिया बोल उठे-वाह! डॉ. कलाम।

प्राथमिक शिक्षा तो गांव में किसी तरह चल गई। लेकिन उसे आगे जारी रखने के लिए कुछ काम करके पैसे जुटाने की नौबत भी आन पड़ी। उस समय इस कमी की पूर्ति के लिए उन्होंने अ़खबार बांटने का भी काम किया। अ़खबार बांटते-बांटते उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल कर ली। और फिर उनके ़कदम उड़ान भरते रहे। उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। और फिर कभी ़गरीबी, बेबसी और लाचारी ने उनका पीछा भी नहीं किया। वे कामयाबी के शिखर पुरुष साबित हुए।

डॉ. कलाम ने अपने वैज्ञानिक जीवन और दर्शन के बीच अपने गुरुओं को हमेशा याद रखा। उन्होंने कहा भी कि ‘‘यह मेरा पहला चरण था, जिसमें मैंने तीन महान शिक्षकों विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीष धवन और ब्रह्म प्रकाश से लीडरशिप सीखी। यह वक़्त मेरे सीखने और ज्ञान परिमार्जन का था।’’

डॉ. कलाम ने पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद युवा भारत को संबोधित करते हुए जो कहा था,- वह आज भी प्रासंगिक है। उनका कथन है,- ‘‘दो हज़ार वर्षों के इतिहास में भारत पर छह सौ वर्षों तक दूसरे लोगों ने शासन किया। अगर आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति ज़रूरी है। शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण मिसाइल को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति-संपन्न हो।’’

कुरान और भगवत गीता दोनों पर ज्ञान रखने वाले डॉ. कलाम देश को महाशक्ति बनाने की दिशा में आगे बढ़ाते चले गए। उन्होंने एक सपना देखा था। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनने का सपना। इस सपने को उन्होंने अपनी प्रतिभा, लगन और अथक प्रयास से पूरा करने के लिए अपनी जान लगा दी। उनसे देश को अभी और कुछ लेना बाकी था। लेकिन ईश्वर चाहते थे कि अब डॉ. कलाम का काम उनके प्रशंसक करें और देश के युवा जो उनके मुरीद हैं। नतीजतन 83 वर्ष की उम्र में 27 जुलाई,2015 को मेघालय के शिलांग में उनका देहांत हो गया। यानी 15 अक्तूबर, 1931 को जन्में डॉ. कलाम 83 वर्ष की उम्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए दुनिया से कुच कर गए। डॉ. कलाम की ज़िंदगी पर एक फिल्म भी बन चुकी है। ज़ाहिर सी बात है डॉ. कलाम के सपनों को पूरा करने के लिए और इस देश को दुनिया का सिरमौर बनाने के लिए अपने अंदर हमें भी और आपको भी लगन की लौ जलानी होगी, वैसी ही छटपटाहट दिखानी होगी और कुछ कर गुज़रने का भाव मन में जगाना होगा। देश को डॉ. कलाम की उम्मीद के पैमाने पर उड़ान भरने के लिए अपनी क्षमता विकसित करनी होगी। हमें भी धुन का पक्का होना होगा। और अपने अथक प्रयासों से देश का मान बढ़ाने के लिए प्रगतिशील सोच के साथ आगे बढ़ना होगा और ऩफरत की दीवार को ज़मींदोज करते हुए आगे बढ़ते रहना होगा।