शाश्वत कृष्णा
पटकथा
लिख रहा हूं मैं पटकथा जो आज
कल उसका परिणाम आएगा
मेरे रक्त का हर एक बूंद
धरा पर बदलाव लाएगा
कल मैं रहूं या ना रहूं पर
मेरा वचन है वसुंधरा को
मेरे सोच का सैलाब
मनुष्यता को नई दिशा दिखाएगा
परम सत्य
समस्त कारणों का कारण मैं हूं
आदि-अनंत, धर्म-अधर्म
मृत्युहरण मैं, मोक्ष का वरण भी मैं हूं
मैं ही सत्य हूं, मैं ही सनातन
ना हिंदू हूं, न मुसलमान हूं
नाहिं बुद्ध, न महावीर हूं
नाहिं नानक, न ओंकार हूं
मैं ही हर युग का विस्तार हूं
पहचानो मुझे
मैं ही श्रीकृष्ण, मैं निराकार हूं
मैं ही पावन ़कुरान का आयत प्रत्येक
मैं ही निर्मल गीता का श्लोक हर एक
मैंं ही युग का आरंभ भी हूं
मै ही युग का अंत भी हूं
मैं ही समस्त अवतार भी
मैं ही समस्त विकार हूं
मैं ही जटिल प्रश्न भी हूं
मैं ही सरल समाधान हूं
मैं ही ब्रह्मांड का निर्माता भी
मैं ही उसका विग्रहकर्ता
मैं ही जीव, मैं परमात्मा हूं
मैं ही श्रीकृष्ण, मैं विश्वात्मा हूं
मैं ही माया, मैं ही त्याग हूं
मैं मनुष्य का अभिन्न भाग हूं
प्राण भी मैं, त्राण भी मैं ही
रावण भी मैं, राम भी मैं हूं
शिव भी मैं, परशुराम भी मैं हूं
श्रीकृष्ण भी मैं, शेष बलराम भी मैं हूं
नर्क भी मैं, दिव्य धाम भी मैं हूं
पहचानो मुझे
तुम्हारे हर कर्म का परिणाम ही मैं हूं….