लघुकथा:- आज्ञाकारी

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भुवनेश्वर चौरसिया “भुनेश”

एक अमीर आदमी जो कि कई कंपनियों का मालिक था। वह जब बूढ़ा हो गया तो वह कंपनी चलाने योग्य न रहा। एक दिन उसने अपने लड़के से कहा,-देखो बेटे मैं अब बूढ़ा हो चुका हूं। इसलिए कंपनी का कार्यभार कल से आप संभालोे।

लड़के ने कहा- जी पिता जी!

लड़का अगले दिन से कंपनी जाने लगा। कंपनी पहुंचकर वह सीधे अपने दफ्तर में बैठ जाता।

कंपनी में क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा है, इससे उसे कोई मतलब नहीं रह गया था।

बेईमान कर्मचारियों की चांदी कट रही थी। इस तरह देखते-देखते एक साल बीत गया। एक दिन बूढ़ा मालिक कम्पनी घूमने आया तो वहां का दृश्य देखकर उसका दिमाग चकरा गया।

बेटे के दफ्तर में गया। और सीधे उस पर बरस पड़ा। तुमने कंपनी की ऐसी-तैसी कर दी। तुम दफ्तर में आकर चुपचाप बैठे रहते हो? कंपनी को चलाने के लिए मालिक को भी काम करना पड़ता है।

बेटे से रहा न गया। वो भी उतावला होकर बोला,- आपने ही तो कहा था कंपनी की देखभाल करना है। अगर मुझे यहां आकर मालिक होते हुए भी काम ही करना पड़े तो यह मेरे लिए लानत है।

बूढ़े पिता ने अपने बेटे की इस बात को सुनकर अपना सिर पकड़ लिया।