मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
अद्र्धवार्षिक परीक्षाएं नज़दीक़ आ चुकी थी, परंतु मयंक अपनी पढ़ाई को छोड़ मोबाइल व लैपटॉप पर गेम खेलने में मस्त था। गेम खेलने से समय बचता तो उसे टेलीविज़न पर कार्टून, सीरियल देखने में निकाल देता। देर रात तक इलेक्ट्रिक दुनिया में खोया रहकर सुबह देर से जागता। इसलिए कभी ठीक से होमवर्क भी पूरा नहीं करता। नतीजतन गुरुजनों की जमकर डांट खानी पड़ती थी।
मयंक की नित्य प्रतिदिन वाली यही दिनचर्या बन चुकी थी। धीरे-धीरे उसके अंदर से उत्साह, स्फूर्ति, उमंग सब ख़त्म होने लगें। उसकी स्मरण शक्ति भी क्षीण होने लगी थी। वह हमेशा चिढ़ा चिढ़ा सा रहने लगा। समय बीता अद्र्धवार्षिक परीक्षाएं ख़त्म हुईं और परिणाम आया। मयंक ज़ीरो बटा सन्नाटा वाला रिपोर्ट कार्ड लेकर घर पहुंचा तो उसके मां-बाप बहुत दुखी हुए।
उन्होंने मयंक के विषय में अपने एक रिश्तेदार अभय से बात की। अभय एक योगगुरु थे। उन्होंने मयंक के माता-पिता को एक बाल उपयोगी पुस्तक भेंट की। और उन्हें कुछ ज़रूरी बातें भी बताई।
घर आकर मयंक के माता-पिता ने सबसे पहले मयंक को बाज़ार ले जाकर उसे उसकी मनपसंद की चीज़ ़खरीद कर दी। फिर धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक उपकरणों से उसे दूर करने की कोशिश की।
मयंक को सर्योदय से पूर्व उठाकर स्नानादि करने की आदत डाल दी। नित्य योग, ध्यान, व्यायाम और प्राणायाम करना सिखाया। कुछ समय बाद मयंक स्वयं ही उक्त सभी क्रियाएं करने लगा। क्योंकि अब उसे इसमें आनंद आने लगा था।
धीरे-धीरे मयंक की पूरी दिनचर्या ही बदल गई। अब उसकी पढ़ाई में भी मन लगने लगा और जो पढ़ता था वो उसे बड़ी आसानी से याद भी हो जाता। उसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो चुकी थी। हमेशा चिढ़ा -चिढ़ा सा रहने वाला मयंक अब ़खुश व शांत रहने लगा।
समय बीता वार्षिक परीक्षा संपन्न हुई। परीक्षा परिणाम आया तो मयंक पूरे विद्यालय में प्रथम आया। उसके इस बदलाव को देखकर पूरा विद्यालय दंग रह गया।