कहानी- भिखमंगे

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जियालाल आर्य

 

बेली रोड का नामकरण जवाहरलाल नेहरू मार्ग हो गया है, परन्तु अभी भी आम लोग इसे बेली रोड नाम से ही जानते हैं। नाम बदला परंतु यहाँ की संस्कृति में बदलाव नहीं आया। आज भी उच्च न्यायालय से लेकर हनुमान मंदिर तक हस्तरेखा देखकर भाग्य बताने वाले, तोता से भाग्य का पर्चा निकलवाने और भिक्षाटन से जीवकोपार्जन करने वाले यत्र-तत्र सड़क के किनारे बैठे मिल जाएंगे। भिक्षा पर जीवित रहने वाले भी दो तरह के मिलेंगे। एक चन्दन टीका लगाकर स्वच्छ वस्त्र-सुसज्जित, एक हाथ में तुलसीदल-जल का लोटा और दूसरे में कुछ फूलों से भरी डलिया। अपने यजमान को, चम्मच से तुलसीदल के साथ आशीर्वाद देते मिलेंगे। ये प्राय: दुकानों, प्रतिष्ठानों और मुक़दमेंबाज़्ों को आशीर्वाद देकर दक्षिणा-दान देते मिलेंगे। मुक़दमे और कॉलेज के विद्यार्थी ज्योतिषियों को हाथ दिखाते और तोता भगवान से भाग्यफल वंचवाते दिखाई देते हैं।

दूसरे भिक्षाटनी गंदे वस्त्रों में हाथ में जस्ता का कटोर थामे भीख के लिए रिरियाते दिखेंगे। आजकल तो मंदिरों के आस-पास, गली-कूचों में हाथ-गाड़ी पर बैठे दोनों हाथों में और पैरों में कपड़ा बांधे कोढ़िया बने भीख मांगते देखे जाते हैं। हनुमान मंदिर के पास ऐसे भिखारियों/ भिखमंगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक रहती है।

परीक्षा निकट आते ही विद्यार्थियों को मूर्ति के समक्ष हाथ जोड़े देखना आम बात हो गई है। ऐसे ही चुनाव आने पर राजनेताओं को मंदिर में और ज्योतिषियों से अपना भविष्य जानने के लिए छिपकर अपनी कुण्डली दिखाते हैं और मुंहमांगा दान देते हैं।

राजभवन की ओर मुड़ती सड़क के तिमुहाने के किनारे भीड़ की संख्या बढ़ती जा रही थी। एक बड़ी गाड़ियां वहां रूकी। नेता ने शीशा गिराकर पूछा, ‘क्या है, क्यों भीड़ लगी है? किसी ने कहा, ‘एक लाश पड़ी है। उसी को लोग देख रहे हैं।’’

‘किसकी मृत्यु हो गई है? क्या उसका अपना कोई नहीं है?’ नेता ने जानना चाहा।

‘मरने वाला भिखमंगा है। ऐसे लोगों का अपना कौन होगा।’ उत्तर मिला।

गाड़ी में बैठे दूसरे नेता ने कहा, ‘चलिए लाश मिलना शुभ माना जाता है। काम बन जाएगा। एम.एल.ए. का टिकट मानो मिल गया।’

‘ड्राइवर गाड़ी बढ़ाओ। लेकिन हमारे विपक्षियों का जोर कम थोड़े ही है। वे तो सीधे पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री से बातें कर रहे हैं।’

‘बात करने दीजिए। क्षेत्र में आपकी जाति का बाहुल्य है। टिकट आपको मिलना ही है। चलिए अभी दो टूक बात करते हैं कि यदि आपको टिकट न मिला तो दूसरे दल के नेता स्वागत में हाथ फैलाएं हैं। मुख्यमंत्री बेवकूफ नहीं है। उन्होंने ‘विश्वास यात्रा’ ऐसे ही थोड़े की थी।’ दूसरे नेता ने ढांढ़स बंधाया।

‘लेकिन ऐसी बात करने से मुख्यमंत्री नाराज़्ा न हो जाए।’ नेता ने कहा।

लाश एक भिखारी की थी जो कई दिनों से बीमार था। भीख नहीं मिली भूख से मर गया। लाश के आस-पास भीड़ बढ़ती जा रही थी। सड़क पर कुछ भिखारी, लोगों से चंदा या भीख मांग रहे थे, लाश को दफ़नाने के लिए। उनके पास कुछ नवयुवक भी खड़े होकर लोगों को भीख देने के लिए प्रेरित कर रहे थे। एक दो नेता टाइप के नौजवानों ने थोड़ा हटकर चंदा वसूलना शुरू कर दिया। एक गरीब भिखारी की अंत्येष्टि के लिए चंदा दीजिए। आने-जाने वाले लोग यथाशक्ति चंदा भी देने लगे। अंत्येष्टि के नाम पर दान देना पुण्य होता है। सड़क किनारे कई स्थानों पर चंदा मांगने वाले नवयुवक खड़े हो गए। एक डिब्बा में कुछ सिक्के डाल दिए। उसे हिलाते तो खन-खन की आवाज़्ा होती। लोग उसी डिब्बे में रुपया, दो रुपया के सिक्के डाल देते।

मित्रवत दो पुरुष बगल से गुजरे। एक ने कहा, ‘आज के बच्चे कितने संवेदनशील हो गए हैं। मृतक से कोई संबंध नहीं, पुनरपि उसकी अंत्येष्टि के लिए चंदा वसूल रहे हैं।’

दूसरे ने कहा, ‘हमें तो यह चंदा लेने का एक बहाना लगता है। अंत्येष्टि तो कॉरपोरेशन के लोग करा ही देंगे। परंतु ये लड़के, देखिएगा, शाम को किसी रेस्तरां में शराब मीट खाते, मौज-मस्ती कर रहे होंगे।’

‘आपकी बात से मैं इनकार नहीं करता, परन्तु इनमें संवेदनशीलता के अंकुर तो हैं। ऐसे नवयुवकों का उपयोग हमारे नेता कैसे करते हैं, उन पर निर्भर करता है।’

‘ठीक है लेकिन नेताओं को देश के भविष्य की चिंता कहाँ है। वे तो अपने और अपने परिवारों की तिजोरी भरने में व्यस्त है। इन नवयुवकों के मार्गदर्शन के लिए उनके पास टाइम कहां?’

इसी बीच एक नेता की इस्कारपियो गाड़ी रूकी। नेतानुमा व्यक्ति बाहर आया, पूछा, ‘क्या बात है? यह भीड़ क्यों?’

भीड़ से किसी ने कहा, ‘एक भिखारी की लाश पड़ी है। सुबह से ही। लोग चंदा मांगकर इसे दफ़नाने की कोशिश कर रहे हैं। देखिए कब तक हो पाता है।’

‘तुम सब ‘बुरबक’ हो। अंत्येष्टि कहीं चन्दा से होती है। यह तो सरकार का काम है। और सरकार कान में तेल डाले बैठी है। आइये आप लोग धरना पर बैठिए।’ तुरंत इंतज़्ााम हो जाएगा।’

नेता ने कहा।

नेता ने गाड़ी सड़क के मध्य में खड़ी करवा दी और गाड़ी में बैठे उनके आदमी बाहर आ गए। उन लोगों ने नारा दिया। ‘अशोक भैया ज़्िान्दाबाद स्वाभिमान पार्टी जि़न्दाबाद।’

देखते-देखते सड़क के दोनों ओर ट्रैफ़िक रुक गया। लाश उठाकर बीच सड़क में रख दिया। नेता ने भाषण शुरू किया, ‘साथियों, मित्रों, पटना के निवासियों आप स्वयं देख लीजिए। एक गरीब सुबह से ही मरा पड़ा है। सरकार का कहीं पता नहीं। डी.एम.,एस.पी., को ख़्बर तक नहीं है। सरकार की बी.पी.एल. (ग़रीबी रेखा के नीचे) सूची कहाँ है। भीख मांग कर जीवन-बसर करने वाला भूख से मर गया। बीपीएल योजना कहां गई। ऐसे हजारों लोग भीख मांग कर ज़्िांदा है। यह बेचारा किसी पार्टी का नहीं है। ग़रीबी रेखा की सूची में पार्टी वालों का ही नाम आता हैं। वे ग़रीब हो या नहीं।’

इसी बीच एक नेता भीड़ को चीरता हुआ बीच में आ गया। वह बोलने लगा तो पहले वाला नेता चुप हो गया। उसका गला सूख गया था। उसके अंगरक्षक ने कहा, ‘सर, गाड़ी में कोकाकोला की बोतल है, लाएं।’

‘अरे बेवकूफ़, इस भीड़ में कोकाकोला पिया जाता है। सब किया कराया नष्ट हो जाएगा। चलो गाड़ी में। काले शीशे में दिखाई नहीं पड़ेगा। वही गला तर करके फिर मैदान में…।’

नए नेता का जोश भरा भाषण चल रहा था। ‘साथियों, जब तक मुख्यमंत्री स्वयं नहीं आते। यह लाश नहीं उठेगी। मृतक के आश्रित को दस लाख रुपया और सरकारी नौकरी देनी होगी। यह लोकतंत्र है। हमारे-आपके वोट से सरकार बनती है, परंतु गद्दी पर बैठते ही सरकार गूंगी, बहरी और अंधी हो जाती है। उसे जगाने के लिए नारा दीजिए।, इन्क़लाब ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद। मुख्यमंत्री मुआवज़्ाा दो, नहीं तो गद्दी छोड़ दो। अंधे-बहरों की सरकार, नहीं चलेगी। नहीं चलेगी।’

नारों की गूंज चारो ओर बिखरने लगी। सड़क के दोनों ओर गाड़ियों की लम्बी कतारें लग गई। ट्रैफिक के सिपाही ने कंट्रोल रूम को सूचना दी। वहाँ से विशेष दस्ता के साथ पुलिस अधिकारी आ गए। समझने-समझाने का वातावरण नहीं था। पुलिस को देखकर नारों का ज़्ोर बढ़ने लगा। बाहरी लोगों को पता नहीं था, जाम क्यों लग गया। कोई सरकार को कोसता, कोई शासन को, कोई मुख्यमंत्री को गाली देता, कोई मंत्रियों को। जिसके जी में जो आता वही बककर संतोष करता।

पुलिस ने ज़्िालाधिकारी को सूचना दी। एसडीएम आए। एडीएम आए। मामला नहीं सुलझा। जि़लाधिकारी स्वयं उपस्थित हुए। नेताओं से बात होने लगी। पहली मांग मुख्यमंत्री स्वयं आए। यह मात्र एक घटना नहीं। नीति का मामला है। भूख से मृत्यु हुई है। कहाँ है बी.पी.एल. सूची? कहाँ है मुफ़्त वितरण का अनाज। एक तरफ गल्ला सड़ रहा है दूसरी तरफ लोग भूख से जान दे रहे हैं।

जि़लाधिकारी ने नेताओं से अलग बात की। उन्होंने अपनी मांग फिर दुहराई। ‘दस लाख का मुआवज़्ाा और आश्रित को नौकरी।’ जि़लाधिकारी ने समझाया। ‘आज लोग अपनी मांग लिखकर दे दीजिए और जो नियमानुसार देय है, वह मैं आज ही दे दूंगा। पर, पहली प्राथमिकता है, मृतक की अंत्येष्टि का। अंत्येष्टि का पूरा भार सरकार वहन करेगी। मृतक के आश्रित को बुलाइये जो भी उचित है वह किया जाएगा। एक लाख का मुआवज़्ाा भी उसी को दिया जाएगा।’

दोनों नेताओं ने आपसी विमर्श किया और जनता को संबोधित किया, ‘भाइयों जिलाधिकारी महोदय आ गए हैं। उन्होंने हमारी मांगें मान ली है। अब आप लोग लाश को उठाइये। बाँस घाट ले चलिए। हम लोग आपके साथ हैं।’

मृत भिखारी के भिखारी साथी मृत स्थल पर छूट गए। मृतक की लाश को जुलूस के रूप में बाँस घाट ले जाया गया। जैसे-जैसे बाँस घाट की दूरी निकट आती गई, जुलूस छोटा होता गया। अंत में कुछ नेता, उनके चमचे और कलक्ट्रेट के कर्मचारी बचे। उन्होंने अंत्येष्टि कराई। जि़लाधिकारी के निर्देशानुसार नेताओं को कलक्ट्रेट चलने का अनुरोध किया गया।

नेताओं ने आपस में विमर्श किया। मृतक का आश्रित कहाँ से लाएँ। वह तो भिखमँगा था। एक नेता ने कहा, ‘सवाल एक लाख का और नौकरी का है। वह तो साला मर गया। आश्रित और उत्तराधिकारी कहाँ मिलेगा।’

दूसरे नेता ने सुझाव दिया, ‘ये हमारे चमचे कब काम आएंगे। ये भी ग़रीब ही है। का रे बुधरामवा, तेरा ही तो बाप था वह, जो पटना में भीख मांग कर जी रहा था। तू कब से ढूंढ़ रहा था। मिला भी तो मरने पर। चल एक लाख ले ले। नौकरी तुम्हारी और रुपया हम लोगों…।

अंत्येष्टि के पश्चात बाँसघाट पर दूसरी लाश लेकर कुछ लोग आ गए।

‘राम नाम सत्य है’ का नारा वातावरण में गूँज गया।