शाइस्ता किताबों के वर्क़ खोल रहीं हूँ
मैं सच की तरफदार हूँ सच बोल रहीं हूँ
रखती नहीं दिल में मैं किसी से भी अदावत
मशहूर है जग में मेरी तहज़ीब-ओ-शराफ़त
रहता है जहाँ शामों सहर खुशबुओं का फेरा
भारत है वो मुल्क और वही देश है मेरा
लखनऊ की हसीं शाम बनारस का सवेरा
है प्यार-ओ-मोहब्बत का जहाँ साया घनेरा
गंगा की हसीं लहरें ये जमुना के किनारे
भाते हैं हर एक दिल को ये ख़ुशरंग नज़ारे
जब भी कोई गद्दारे वतन देश आया
तो देश के वीरों ने उसे मार भगाया
भारत के निवासी हैं किसी से न डरेंगे
हम एक थे हम एक हैं हम एक रहेंगें
काफूर हुए दिल से गुलामी के अंधेरे
अब आ नहीं सकते यहाँ गद्दार लुटेरे
आज़ादी का परचम कभी झुकने नहीं देंगें
दुश्मन को मुकाबिल कभी जमने नहीं देंगें
क़ायम रहे यकजहती का दस्तूर हमेशा
ख़ुशहाल रहे मुल्क-ओ-मज़दूर हमेशा
मस्जिद की हो मीनार या गुरुद्वारों शिवालय
छाये रहें हर शय पे मोहब्बत के उजाले
महका रहे इस बाग़ के फूलों का नज़ारा
सदफ़ रहे आबाद सदा देश हमारा
सदफ़ इश्त्याक़