बाघ

430

संजय कुमार सिंह

 

एक बाघ है मेरे मन में

रोजमर्रे की भीड़ और कटते जंगल से परेशान

थक कर शेष बचे जंगल में जाने कब से सोया हुआ

 

यह सभ्यता लील गई उसके संस्कारों को

आदमी की बस्ती में आना भी भूल गया वह

आदमी खुद उसकी जगह मांस खाता रहा

एक दूसरे का शिकार करता रहा

 

कहा जाए आदमी की पशुता को देखकर

वह खुद अंदर से आदमी हो गया

 

मैंने भी उसे जगाना छोड़ दिया

घास-फूस खाने की उसकी मजबूरी से

आदमी ने कई बार मजाक किया/वह चुप रहा

उसे हुड़की दी गई, नहीं जागा।

लेकिन बाघ तो बाघ होता है

जब उसे जानवर की तरह

आदमी ने चुनौती दी

तब वह बाहर आ गया

 

बाघ बाहर आता है,तो क्या होता है

वह बैल है कोई, जो बांध देंगे?

वह अभी भी बाहर ही घूम रहा है

मैं उसे जंगल तक हांकने की कोशिश में हूं

उम्मीद है बाघ वहां चला जाएगा

और सो भी जाएगा

अब आदमी की इच्छा जो हो

बाघ की इच्छा मैं जान गया हूं

उसका कहना है,

जब वह आदमी बन गया है,

तो फिर उसे बाघ नहीं बनाया जाए

 

2.

सभ्यता का यह कौन-सा पाठ है

जहां न बाघ, बाघ है और न आदमी, आदमी?

पर एक फर्क है किसी ने विवश होकर रूप बदला

और किसी ने बहुरुपिए की तरह

जिसे मिलना था बुद्धत्व,वे गए आत्म-निर्वासन पर

और जिसे जाना था आत्म-निर्वासन पर उसे मिला बुद्धत्व/पर इस बार उसने राज-पाट का परित्याग नहीं किया/लौट कर शान से सब ग्रहण किया/ ज्ञानोपदेश के लिए उसे कहीं जाना भी नहीं पड़ा/ हालांकि वह बाघ की तरह दहाड़ता है/ फिर भी लोग उसके बुद्धत्व की चर्चा करते हैं/ असली बाघ मौन है

यह दूसरा बाघ कौन है?

 

3.

जो भी हो प्रजा में उस बाघ का नहीं,

इस बाघ का क्रेज है/ वह तो वहां सोया हुआ है मन के किसी जंगल में आदमी बनकर/ और यह बाघ?है,तो आदमी

पर हू-ब-हू  बाघ जैसा!

हम प्रतिरूप रच रहे हैं प्रतीकों से

यह जाने बगैर कि बाघ का डर फिर भी बाघ का डर है

बाघ से सभी डरते हैं/ औरत और बच्चे तो सबसे अधिक

बाघ कितना भी प्रपंच करे वह बाघ ही होता है

यह सही है जब तक बाघ के सामने बाघ नहीं आए

आदमी का काम गीदड़-भभकी से भी चल जाता है

मगर कभी-कभी बाघ के सामने बाघ आ जाता है !

वास्तविकता यही भी है कि बाघ लुप्त हो रहे हैं

संभव है आने वाले समय में

उसकी कोई निशानी नहीं बचे!

 

4.

भाई

एक समय आएगा

जब बाघ को खोज कर निकाला जाएगा

बाघ को बाघ बनाया जाएगा

और आदमी को आदमी बनाया जाएगा,

कोई कितना बर्दाश्त करेगा इस बाघ को?

 

5.

बाघ अगर है,तो सबके अंदर है

वह मरे तो सब के अंदर मरे

और जगे तो सबके अंदर जगे

आप, आदमी होकर आदमी को

बाघ की तरह दबोचिएगा?

यह नहीं चलेगा, अपने सही रूप में रहिए

गलत प्रतीक और प्रतिरूप नहीं चुनिए

 

बाघ को बाघ की तरह और

आदमी को आदमी की तरह बरतिए

कोई आदमी बाघ नहीं है, और कोई बाघ आदमी नहीं

उल्टा चलिएगा,

दुर्घटना होगी

ऐसे ही ट्रैफिक जाम है

बोलिए आदमी के कारण है

कि बाघ के कारण?

आदमी को ट्रैफिक का नियम सिखलाइएगा

कि बाघ को?

बाघ को जाने दीजिए

आदमी में आदमी का

चलन चलाइए

सम्प्रति- प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला कॉलेज पूर्णिया-854301