ए आर आज़ाद
रमजान को इस्लाम में तीन हिस्सों में बांटा गया है। यानी 30 दिन के रोजे को तीन भागों में तय किया गया है। इस हिस्सों को ही अशरा के नाम से जाना जाता है। यानी रमजान को तीन अशरों में बांटा गया है। पहला अशरा एक से दस रमजान कहलाता है। दूसरा अशरा 11-20 रमजान कहलाता है। और तीसरा व आखिरी अशरा 21-30वां रोजा कहलाता है। हालांकि तीसरा अशरा नौ दिनों का भी हो सकता है। लेकिन पहला और दूसरा अशरा हमेशा-हमेशा दस-दस दिनों का होता है।
हम अब आपको बताते हैं कि तीनों अशरों को किन-किन नामों से बुलाया जाता है। पहले अशरे यानी 1-10 रमजान को रहमत खंड कहा जाता है। यानी यह बंदों पर रहमत का अशरा होता है। इस पहले दस दिन रहमत के होते हैं। यानी इस पवित्र माह रमजान में अल्लाह की इबादत और इतायत करने वालों पर रहमत की बारिश होती है। इस अशरे में ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करनी चाहिए। दान देना चाहिए। ज़़कात करना चाहिए और मानव-सेवा में लीन रहना चाहिए। हर किसी की मदद करनी चाहिए। जो जरूरत मंद आपसे मांग न सके, ऐसे लोगों की तो खोजकर मदद करनी चाहिए। इस अशरे में हर इंसान को प्यार भरी नजर से देखना चाहिए। उस पर उल्फत लुटानी चाहिए। और मुस्कुराहट के साथ उसकी मदद करनी चाहिए।
दूसरा अशरा यानी 11-20वां रमजान होता है। इस दूसरे अशरे को माफी के लिए जाना जाता है। इस अशरे में जमकर इबादत करनी चाहिए और अल्लाह से गिरगिराकर माफी मांगनी चाहिए। क्योंकि यही वो वक्त है जब अल्लाह अपने बंदों को माफ करने के लिए इंतजार में रहता है। कोई तो आए मुझसे माफी मांगे। गिरगिराए, अपने गुनाहों को कुबूल करे। गुनाहों की माफी मांगे, उसके गुनाह माफ किए जाएंगे।
तीसरा अशरा यानी 21-30 या 21-29 रमजान में आता है। यह अशरा सबसे अहम और कीमती माना गया है। इस अशरे में जहन्नम की आग से खुद को महफूज करने का एक मौका ़फराहम किया जाता है। इस अशरे में हर एक मुसलमान को अपने लिए जहन्नम की आग से बचने की अल्लाह से दुआ मांगनी चाहिए। इसी अशरे में एक और नेक काम की तौफीक अल्लाह अपने बंदों को देता है। यह नेक काम और सबसे बेहतरीन इबादत एहतकाफ कहलाता है। एहतकाफ में मुस्लिम मर्द मस्जिद के एक कोने में बैठकर दस दिनों तक ख़ामोशी के साथ अल्लाह की इबादत में गुम रहते हैं। ठीक उसी तरह से घर की महिलाएं अपने घर के एक कोने में एहतकाफ पर बैठकर अल्लाह की इबादत में दस दिनों तक बड़ी खामोशी के साथ इबादत में लीन हो जाती हैं। इस दौरान उन्हें दुनिया के किसी भी कामों से मतलब नहीं होता है। कहा जाता है एहतकाफ में बैठने वाले को अल्लाह बहुत पसंद करता है, उसके बहाने तमाम घर वालों, पड़ोसी और समाज तक को महफूज रखता है। और बला व वबा से बचाता है और तरक्की का एक रास्ता खोलता है और गरीबी व मुफलिसी और बेबसी की रस्सी को भी ढीला कर देता है।
यानी रमजान का महीना इतना नेमत और आफियत वाला है। हम इस महीने इबादत और इंसानियत पर ध्यान दें। अपने लिए, घर वालों के लिए, पड़ोसी के लिए, समाज के लिए और सूबे व देश की तरक्की व अमन व अमान के लिए दुआएं मांगे। अल्लाह जरूर दुआएं कुबूल करेगा। आमीन।