ए आर आज़ाद
जानने की कोशिश करते हैं कि मेडिकल ऑक्सीजन बनती आखिर कैसे है? तो आइए जानते हैं।
दरअसल हम सब जानते हैं कि हवा में 21 फीसदी ऑक्सीजन होती है। और 78 फीसदी नाइट्रोजन। और एक प्रतिशत गैस होती है। इन एक प्रतिशत में तीन गैस शामिल होती हैं। इन्हें हम हाइड्रोजन, नियोन और कार्बन डाईऑक्साइड के नाम से जानते हैं। विज्ञान कहता है कि पानी में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा अलग-अलग जगहों पर जुदा हो सकती है। एक फॉर्मूले के तहत 10 लाख मॉलिक्यूल में से ऑक्सीजन के 10 मॉलिक्यूल होते हैं। यही वजह है कि इंसान की बनिस्वत मछलियां पानी में आसाना से सांसें लेती हैं।
जब किसी प्लांट में ऑक्सीजन तैयार किया जाता है तो इस प्लांट में हवा से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है। यह सबकुछ आसान नहीं है। इसे एयर सेपरेशन तकनीक के ज़रिए किया जाता है। ऑक्सीजन बनाने के लिए हवा को कंप्रेस किया जाता है। इसके बाद फिल्टर किया जाता है। हम सब जानते हैं कि फिल्टर किसी भी चीज से अशुद्धियां दूर करने के लिए की जाती है। जब हवा फिल्टर हो जाती है तो इसे ठंडा किया जाता है। हवा के ठंडा होने के बाद हवा को डिस्टिल किया जाता है। यानी इस प्रक्रिया से हवा यानी ऑक्सीजन बाकी गैसों से अलग हो जाती है। और इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप ऑक्सीजन लिक्विड की शक्ल में अवतरित हो जाती है।
हालांकि वैज्ञानिक युग की तरक्की ने बहुत कुछ आसान कर दिया है। और इसी खोज की बदौलत ऑक्सीजन निर्माण का एक और आसान तरीका भी निकाल लिया गया है। इन दिनों ऑक्सीजन बनाने का एक पोर्टेबल मशीन तैयार की गई है। इसे मरीज के पास रख दिया जाता है। यह मशीन हवा से ऑक्सीजन को अलग-थलग करके मरीज़ तक पहुंचाती है।