50 साल शासन करने के लिए ‘सबका साथ, सबका विकास’की मूल आत्मा को समझना ज़रूरी

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ए आर आज़ाद

भारतीय राजनीति में बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ दुनिया के सामने अपने वजूद को कामयाबी के साथ परोसने में अदभुत सफल रही है। उसकी सियासत  ने उसकी कामयाबी को ज़मीन से आसमान तक पहुंचा दिया। जैसी सफलता की कामना बीजेपी के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने की थी, उसी परिकल्पना में ढालकर बीजेपी ने संघ को सत्ता का तोह़फा दिया है।

ज़ाहिर है इंच भर की सत्ता का स्वाद चखने की वर्षों से तमन्ना लिए बीजेपी ने 2014 से पहले तक महज़ छह सालों तक के शासन का ही स्वाद चखा था।

इसके बाद बीजेपी केंद्र की सत्ता से लगातार एक दशक तक ़गायब रही। अचानक बीजेपी की नाटकीय ढंग से नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ 2014 में सत्ता वापसी हुई। मीडिया को अपने वश में करने में महारथ हासिल कर लेने वाली बीजेपी ने सत्ता और सल्तनत हासिल करने के नायाब तरी़के ढूंढ़ लिए। जनमानस के लोभी मन को करीने से और सहजता के साथ समझते हुए जाल फेंका। जनता बीजेपी के जाल में फंसी ही नहीं, उसपर मोहित भी हो गई। नरेंद्र मोदी का जादू मीडिया ने कुछ इस तरह से पेश किया कि नरेंद्र मोदी एक ‘अवतार’ के रूप में संकट तारण बनकर टीवी पर छाने लगे।

जनता का बार-बार भरोसा टूटा लेकिन हर बार एक जादुई तिलिस्म के सहारे बीजेपी जनता को अपने खूंटे में बांधती रही। और जनता भी प्यासी हिरण की तरह दूर के बालू को पानी समझकर उसी तरफ दौड़ती रही। वह थककर भी और टूटकर भी उस खूंटे को नहीं तोड़ पाई, जिस खूंटे में उसे ऩफरत और हिंदू-मुसलमान की वैमनष्यता की रस्सी से बांध दिया गया था।

उसे मज़ा आ रहा था बीजेपी के सत्ता में आने का। 15 लाख रुपए एकाउंट में आने का। वह स्वाद चखना चाहती थी कालेधन का। और वह बहुत ़खुश थी नोटबंदी की उस जुगलबंदी पर भी।

जनता के लिए 2014 से 2019 तक के दरम्यान का जो समय जाल का जंजाल बना हुआ था, उस समय उपजे विरोध और अंतद्र्वंद को भी बीजेपी ने अपने फेवर में कर लिया। जिस 2019 के चुनाव पर जनता सब़क सिखाने की बात कर रही थी। वह चुनाव 2014 से भी कई मायने में ऐतिहासिक हो गया। परिणाम ने नरेंद्र मोदी के सारे दा़ग को धो दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 में एक नए ‘अवतार’ में अवतरित हुए। ज़ाहिर सी बात है कि इन दो लोकसभा चुनावों के दरम्यान हुए विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने अपना ग्राफ़ काफी तेज़ी के साथ बढ़ाया। उसका ग्रा़फ बढ़कर सात से इक्कीस तक हो गया।

ज़ाहिर सी बात है कि जब किसी भी देश की जनता ज़रूरत से ज़्यादा ़फरेबी, जालसाज, मक्कार, लोभी व स्वार्थी हो जाती है तो इस तरह के नब्ज़ को पकड़ने वाले राजनीतिक हकीम शेयर बाज़ार की तरह ही उछाल मारते हैं। और सियासत और हुक्मरानी में अंग्रेज़ों की तरह ही कामयाबी का सेहरा अपने माथे पर पहनते हैं।

संघ का इतिहास तो अंग्रेज़ों से मा़फी मांगने का रहा है। अंग्रेज़ों के साथ देने का रहा है। ज़ाहिर सी बात है संघ को अंग्रेज़ों के रास्ते सत्ता हथियाने के औज़ार और हथियार का भी पता है। जब अंग्रेज़ इस देश पर दो सौ साल हु़कूमत कर सकता है तो फिर इस देश का अंग्रेज़ों की राह का हिमायती 50 साल देश पर शासन करने का मंसूबा पालता है तो इसमें गुनाह क्या है? हालांकि उनके 50 साल में ही अतिश्योक्ति कह दी गई। मेरा तो मानना है कि इस समय देश की जनता की जिस तरह की मानसिकता है, उस मानसिकता के तहत उन्हें तो 500 साल तक लगातार शासन करने का आ़गाज़ कर देना चाहिए था। देश की इतनी बड़ी पार्टी और उस पार्टी के इतने बड़े रणनीतिकार सि़र्फ देश में 50 साल शासन करने की शंखनाद की और उसपर भी हायतौबा!

हायतौबा इसलिए कि सियासत और हु़कूमत में ़फ़र्क है। सियासत के कुछ उसूल होते हैं। वह नियम और ़कायदे में बंधी होती है। लेकिन हु़कूमत ़खुद नियम और ़खुद ़कानून होती है। जब तक रहती है, अपनी सुनती है। अपनी करती है। अपनी देखती है। उसे कोई सुधार नहीं सकता। उसे कोई पछाड़ नहीं सकता। हु़कूमत वक़्त की ़गुलाम होती है। वह सि़र्फ समय का सुनती है। और समय के साथ आती है और समय के साथ चली जाती है।

अब बीजेपी देश में सियासत करती है या हु़कूमत यह देश की जनता को देखना है। बीजेपी अगर सियासत करती है तो अमित शाह का दावा अतिश्योक्ति है। और बीजेपी अगर हु़़कूमत कर रही है तो अमित शाह का यह दावा अतिश्योक्ति से ज़्यादा किंवदंती है। संभव है कि वह हु़कूमत करते हुए कुछ ऐसे फैसले कर बैठे  जिसपर किसी का कोई ज़ोर न चल सके। लोग ठंडे और शीतलहर में तंबू गाड़कर बैठे रहें। मौत के साए में जीते रहें। एक-एक कर मरते रहें। उनके कानों में जूं नहीं रेंगेगी। क्योंकि बीजेपी सियासत नहीं हु़कूमत कर रही है। शाहीन बा़ग आपके सामने हैं। किसान आंदोलन आपकी नज़र में चश्मे की तरह चढ़ा हुआ है। आप साफ़ देख सकते हैं। आपको साफ़ दिख सकता है।

़गौर करने वाली यह भी बात है कि जब कांग्रेस ने लगातार शासन किया तो किसी को कोई दिक़़्कत नहीं हुई। कांग्रेस जब भी शासन करती है तो किसी को कोई दिक़़्कत नहीं होती है। लेकिन जैसे ही बीजेपी के हाथ में सत्ता की बागडोर आती है तो देश तिलमिला उठता है। इसका कारण बीजेपी को भी ढ़ूंढ़ना चाहिए और संघ को भी इन वजहों की तह में जाकर चिंतन करना चाहिए।

देश और दस्तूर के हिसाब से जब शासन और सत्ता चलती है तो किसी को कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन जब कोई हु़कूमत देश के संविधान से इतर होकर अपनी महानता के स्वर को देश के स्वर से ऊंचा कर देती है तो फिर आ़फत की आंधी और विरोध का तू़फान उठना स्वाभाविक हो जाता है।

कांग्रेस और बीजेपी में ़फ़र्क यह है कि कांग्रेस सत्ता में भी अपने वास्तविक स्वभाव में रहती है और सत्ता खोकर भी उसका ़कुदरती स्वभाव नहीं बदलता है। बीजेपी के साथ उल्टा है। वह सत्ता में रहती है तो उसका स्वभाव कुछ और होता है। और सत्ता की पीठ पर बैठते ही उसके स्वभाव और हाव-भाव दोनों एक साथ बदल जाते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि बीजेपी जब हु़कूमत में रहती है तो मदमस्त हाथी की तरह। और हु़कूमत से जब बाहर हो जाती है तो उसका स्वभाव उच्श्रृंखल हो जाता है।

ज़ाहिर सी बात है कि बीजेपी के शासन में न तो झरने की रवानी होती है न आम जनमानस में अपनी हु़कूमत का एहसास। एक अजनबी के शासन में रहने का भाव और एक तरह भय के माहौल का ़खौ़फ आंखों में पसरा रहता है और दिल डरा रहता है। क्यों? बीजेपी ऐसा क्या कर देती है कि उसके शासन से आम जनमानस के भीतर मुक्ति की एक छटपटाहट शुरू हो जाती है। लगाम और लगान लगाने की प्रवृत्ति का उदय कहां से हुआ और उस संस्कार को किसने आत्मसात किया? क्या यह सबकुछ किसी से अब ढ़का-छुपा हुआ है? ज़ाहिर सी बात है कि जनता को भी बदलना होगा और 50 साल तक देश में पंचायत से लेकर संसद तक अपना राज ़कायम करने के लिए बीजेपी को भी बदलना होगा और अमित शाह को अपनी रणनीति भी बदलनी होगी।

ऐसा इसलिए कि इस देश में कोई भी आक्रांता बनकर ज़्यादा दिन नहीं चल सकता है। इस देश पर लगातार और बार-बार वही शासन कर सकता है, जिसके हृदय में वास्तविक रूप से ‘सबका साथ, सबका विकास’ की धारणा हो। जिस      शासक के मन-मस्तिष्क मेंं इसे जुमला बनाकर इसकी आड़ में सत्ता में बने रहने की परिकल्पना होगी, वह अपने उम्मीदों पर अपने विचारों से ही पानी फेरेगा। शायद अभी भी समय है बीजेपी के पास ‘सबका साथ, सबका विकास’ की मूल आत्मा को समझने के लिए। जब जागो तभी सवेरा। देखिए बीजेपी कब जगती है और देश में कब नया सवेरा होता है।

(लेखक प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं)